बुधवार, 7 अगस्त 2019

मनुष्य का सच्चा साथी

मनुष्य का सच्चा साथी इस संसार में कौन है? यह प्रश्न किसी मनुष्य के मन में उठना स्वाभाविक है। इस प्रश्न का उत्तर चौंकाने वाला हो सकता है। हम कह सकते हैं कि मनुष्य का सच्चा साथी उसके अपने माता, पिता, पति या पत्नी, बेटा या बेटी, बन्धु अथवा बान्धव नहीं होते, अपितु उसका अपना यह शरीर होता है। यह शरीर जीव को ईश्वर की ओर से उपहार के रूप में मिलता है।
         इस शरीर को मनीषी एक रथ की तरह मानते हैं। वह आत्मा रूपी यात्री को उसके गन्तव्य मोक्ष के पथ पर ले जाता है। एक बार जब यह शरीर काम करना बन्द कर देता है यानी अस्वस्थ हो जाता है, उस समय कोई भी उसका साथी नहीं बन सकता। जन्म से मृत्युपर्यन्त यह शरीर मनुष्य का साथ निभाता है। इसलिए इसका ध्यान रखना, इसे स्वस्थ रखना मनुष्य का दायित्व बनता है।
         मनुष्य जितनी तन्मयता से इस शरीर की देखभाल करता है, उतने ही लम्बे समय तक यह उसका साथ निभाता है। इसे स्वस्थ रखने के लिए मनुष्य को क्या खाना चाहिए क्या नहीं? स्वस्थ रहने के लिए मनुष्य को क्या करना चाहिए? मनुष्य अपने मन में उठने वाले तनाव के वेग को किस प्रकार वश में करता है? वह सारा दिन काम ही करता रहता है या कभी आराम भी करता है?
         यह शरीर जैसा होगा यानी स्वस्थ रहेगा या अस्वस्थ रहेगा, उसी के अनुसार वह उत्साहपूर्वक कार्य करता है अथवा कमजोर होकर अपने कार्य करने में असमर्थ हो जाता है। स्मरण रखने वाली बात यह है कि यह शरीर जीव का एकमात्र स्थायी पता है। मनुष्य का शरीर उसकी अपनी निजी सम्पत्ति होता है, इसका बटवारा वह किसी के साथ नही  कर सकता। इसलिए अपने इस शरीर की सार-सम्हाल करना केवल उसी का अपना दायित्व होता है।
       मनुष्य को सदा ही चुस्त और दुरुस्त रहने का प्रयास करना चाहिए। अपना ख्याल मनुष्य को स्वयं ही रखना पड़ता है। लक्ष्मी कभी स्थायी होकर नहीं रहती। पैसा आता है और चला जाता है। इसी प्रकार मनुष्य के रिश्तेदार और दोस्त भी स्थायी नही होते। वे जीवन में आते हैं और अपना हित साधकर चले जाते है। इस बात को सदा ही स्मरण रखना चाहिए कि स्वयं के अलावा कोई भी हमारे इस भौतिक शरीर की सहायता नहीं कर सकता।
         शरीर के सभी अंग ठीक से कम करते रहें, इसका खास तौर पर ध्यान रखना  चाहिए। फेफड़े सुचारू रूप से कार्य करें, इसके लिए नित्य प्राणायाम करना चाहिए, धूम्रपान आदि कुव्यसनों का त्याग कर देना चाहिए। इस शरीर को स्वस्थ रखने के लिए योग-आसन करने चाहिए। अपने दिल की धड़कनों की गति को बनाए रखने के लिए प्रातःकाल और सायंकाल सैर करनी चाहिए।
       अपनी आँतों के सही क्रियान्वयन के लिए मनुष्य को सदा घर का बना हुआ सात्विक व सुपाच्य भोजन करना चाहिए। इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि घर के बाहर खाना नहीं खाना चाहिए। जंक फूड, अधिक तला हुआ गरिष्ठ, बासी अथवा खराब भोजन खाने से परहेज करना चाहिए। उसकी किडनियाँ उसे धोखा न दे सकें, इसलिए दिनभर में बहुत सारा पानी पीना चाहिए।
         आत्मोन्नति के लिए मनुष्य को ईश्वर का नियमपूर्वक निरन्तर ध्यान करते रहना चाहिए। इससे मनुष्य को आत्मिक बल मिलता है। अपने मन को साधने का सदा प्रयास करते रहना चाहिए। उसके लिए यथासम्भव अच्छे और सकारात्मक विचार ही अपने मन में लाने चाहिए। नकारात्मक विचार यदि मन पर हावी होने लगें, तो उन्हें बिना समय गंवाए उसी ही पल झटक देना चाहिए।
        इस दुनिया में सफलतापूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने के लिए यथासम्भव सद् कर्म करने चाहिए। इन कर्मों को करने से मनुष्य का लोक और परलोक दोनों ही सुधर जाते है। इस सबसे पहले मनुष्य को अपने शरीर के साथ सच्ची मित्रता निभानी चाहिए।     
चन्द्र प्रभा सूद
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