महिला दिवस पर विशेष-
नारी तुम श्रद्धेय हो, पूज्या हो
अपने घर-परिवार का मान हो
सभ्य समाज की मार्गदर्शिका
इस मानव सृष्टि की कारक हो।
पर, क्या तुम्हें सब मिल पाया
मनचाहा मान-सम्मान जग में?
नहीं, कदापि नहीं तुम्हारा सब
भेंट चढ़ा दिया पुरुष समाज ने।
आदिकाल से ही तुम पुरुष की
भोग्या बन करके जीती रही हो
उसके इशारों पर नाचना ही तो
तुम्हारी नियति रही सदा-सदा।
रामराज्य भी तुम पर किए गए
उस घोर अन्याय का साक्षी है
जब निर्दोष सीता के रूप में था
अग्नि परीक्षा में ही झौंक दिया।
गर्भावस्था में बिना कुछ बताए ही
उन कष्टदायी मार्गों पर यूँ बेसहारा
भटकने को मजबूर कर दिया गया
छोड़ दिया गया घर की शान को।
महाभारत काल में तुम न बच सकी
धर्मराज ने ही अपने झूठे अहं को
पुष्ट करने हेतु तुझ पत्नी द्रौपदी को
दाव पर खुशी-खुशी लगा दिया था।
कभी सीता-सावित्री, उर्मिला बना
कभी दमयन्ती बना पीड़ित किया
तारामती रूप में पति ने तुम्हें दासी
बनाके बाजार में नीलाम कर दिया।
कभी धर्म के नाम पर आततायियों
द्वारा तुम्हारा मान-मर्दन किया गया
तो कभी जाति के नाम पर तुम्हारा
शील हरण कर अपमानित किया।
कभी युद्ध के नाम पर बलात तुम्हारे
स्वाभिमान को जीतकर कुचला गया
और कभी अपनी आनबान के लिए
जौहर के लिए मजबूर किया गया।
कभी समाज के इन भूखे भेड़ियों से
बचाने के नाम पर सती कर दिया
शिक्षा से वंचित कर गुलाम बनाया
जीवनभर के लिए गुलामी नाम की।
तो कभी घर-परिवार की दुहाई दे
घर में ही बंधक बना दिया गया है
तुम्हारे पंखों को कतर करके तुम्हें
ऊँची उड़ान भरने से ही रोक दिया।
इक्कीसवीं सदी में बदला कुछ
शायद बहुत कुछ तो नहीं बदला
हम देख रहे हैं हर दिन यहाँ-वहाँ
शोषण तो इस युग में भी जारी है।
बलात्कार का संत्रास झेलती नारी
दहेज की अग्नि को समर्पित होती
धर्म, जाति और राजनीति की इस
बलिवेदी पर नित्य चढ़ाई जाती है।
सोचती हूँ कि कब आएगा वह युग
जब नारी की अस्मिता रक्षित होगी
उसे वही सम्मान मिलेगा जीवन में
जिसकी वह सदा अधिकारिणी है।
उसे न अपमान का घूँट पीना पड़ेगा
न तार-तार उसका स्वाभिमान होगा
हर पल डर के साये में न जीना होगा
अपनी मंजिल छूने की आजादी होगी।
चन्द्र प्रभा सूद
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