गुरुवार, 15 अगस्त 2019

दर्द ही दवा

मनुष्य जब बहुत अधिक दर्द सहन करने के लिए विवश हो जाता है, तब एक समय ऐसा भी आता है, जब वही दर्द उसकी दवा बन जाता है। उस दर्द को सहन करते-करते मनुष्य के मन में उस कष्ट को बर्दाश्त करने की शक्ति आ जाती है। तब वह दुख शायद उसके जीवन का एक अहं अंग बन जाता है, मानो यह दर्द उस मनुष्य का अभिन्न मित्र बन गया हो। उसके बिना जीने की कल्पना करना उस मनुष्य के लिए कठिन हो जाता है।
         एक उदाहरण लेते हैं, कई बार ऐसा होता है कि मनुष्य अपने किसी प्रियजन की प्रतिदिन प्रतीक्षा करता रहता है। उसका इन्तजार करते करते उसकी आँखें पथराने लगती हैं या थक जाती हैं। फिर धीरे-धीरे उसे इसकी आदत होने लगती है। उस समय की जाने वाली यही लम्बी प्रतीक्षा उसके जीवन का एक अहं हिस्सा बन जाती है। तब वास्तव में उसे उस इन्तजार को करने में ही एक प्रकार का आनन्द आने लगता है।
          कहने का तात्पर्य यह है कि काले घने बादलों के समान दुख-कष्ट अनायास ही बिनबुलाए मेहमान की तरह किसी मनुष्य के जीवन में डेरा जमा लेते हैं। बादलों की तरह बरसकर वे चले जाते हैं। फिर धीरे-धीरे वातावरण से अन्धकार की चादर हट जाती है और प्रकाश हो जाता है। मनुष्य को ये दुख जब भोगने पड़ते हैं, उस समय वह दुखी होता है, रोता है। उससे उसे तभी मुक्ति मिलती है, जब उन कष्टों को वह भोग लेता है।
           यदा कदा ऐसे कष्ट भी जीवन में आ जाते हैं, जिनकी अवधि लम्बी होती है। अथवा अपने किसी प्रियजन का वियोग हो जाता है। उस कष्ट से उबर पाने में उसे वर्षों लग जाते हैं। इसी प्रकार व्यापार में हानि हो जाती है। जिसकी भरपाई करने में पूरा जीवन भी लग सकता है। अतिवृष्टि, अनावृष्टि, बाद, सुनामी, भूकम्प आदि दैवी आपदाओं के कारण मनुष्य असहाय हो जाता है।
           इन दैवी आपदाओं के कारण मनुष्य को लम्बे समय तक दुखों और परेशानियों को झेलना पड़ता है। मनुष्य इसे अपनी नियति मानकर सन्तोष कर लेता है। उसके पास और कोई उपाय भी तो नहीं होता। वह नियति के हाथों की कठपुतली बना बस अपने भविष्य को सुधारने का अथक प्रयास करता रहता है। कभी वह इस यत्न में सफल हो जाता है और कभी जीवन पर्यन्त उसे त्रासदी सहन करनी पड़ती है।
         इन्सान को कभी यह नहीं सोचना चाहिए कि उसका सपना क्यों पूरा नहीं हो रहा? यह सदा स्मरण रखना चाहिए कि साहसी लोगों के इरादा कभी अधूरे नहीं रहते। देर-सवेर ईश्वर उन्हें अवश्य पूर्ण करता है। ईश्वर मनुष्य को उसके पूर्वजन्म कृत कर्मों के अनुसार ही फल देता है। जिस इन्सान के कर्म अच्छे होते है, उसके जीवन में कभी अँधेरा नहीं हो सकता। जिस जीव ने अपने पूर्वजन्मों में कुकर्म किए होते हैं, उसे उनका दुष्परिणाम इस जन्म में भुगतना ही पड़ता है।
           पूर्वजन्मों में जीव ने क्या शुभाशुभ कर्म किए, इस विषय में वह नहीं जानता। उसके पास इसे जानने का कोई तरीका भी नहीं है। इतनी सावधानी उसे बरतनी चाहिए। इस जन्म में उसे ऐसे कर्म कर लेने चाहिए, जिससे आगामी जन्मों में उसके ऊपर कष्टों और परेशानियों की छाया न पड़े। तब उसके जीवन में सुख का प्रकाश दीर्घकाल तक रहे। उस समय उसे स्वयं को एक भाग्यशाली इन्सान समझकर ईश्वर का धन्यवाद करना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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