शनिवार, 3 अगस्त 2019

जीवन की वास्तविकता

जीवन में ऊँचाई पर चढ़ने या सफल होने के लिए प्रत्येक मनुष्य का अनुशासन में रहना अनिवार्य होता है। उसे अपने घर-परिवार, माता-पिता, गुरुजनों और समाज के साथ सदा सामञ्जस्य बनाकर चलना चाहिए। मनुष्य की यही समझदारी सामाजिकता कहलाती है। ऐसे मनुष्य को कभी पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ता क्योकि उसके चारों ओर उसे अपने ही दिखाई देते हैं।
          अपनों के बिना वह निपट अकेला हो जाता है और अधूरा रह जाता है। सोचने वाली बात यह है कि जब वह सबसे कटकर रहने लगेगा, तो अपनी खुशियाँ किसी के साथ साझा नहीं कर सकेगा। उस समय उसकी सफलता की खुशी एक तरह से बेमानी हो जाती है। तब उसे अपनी गलती का अहसास होता है कि उसने बड़ी भूल कर दी है। उस समय तो कुछ भी नहीं किया जा सकता।
          यहाँ उस घटना का जिक्र करना चाहती हूँ, जिसे वाट्सअप पर बिना किसी के नाम के पढ़ा था। कुछ संशोधन के साथ आपसे साझा कर रही हूँ।
          एक बार बेटे ने अपने पिता से पूछा, "पापा, ये सफल जीवन' क्या होता है?"
         पिता, बेटे को पतंग उड़ाने के लिए ले गए। बेटा पिता को ध्यान से पतंग उड़ाते हुए देख रहा था।
        थोड़ी देर बाद बेटा बोला, "पापा, धागे में बँधे होने के कारण यह पतंग अपनी आजादी से और ऊपर की ओर नहीं जा पा रही है। क्या हम इस धागे को तोड़ दें? तब यह और ऊपर चली जाएगी।"
        बेटे की बात सुनकर पिता ने धागे को तोड़ दिया। पतंग थोड़ा-सा और ऊपर उड़ी। उसके बाद वह लहरा कर नीचे आने लगी और दूर किसी अनजान जगह पर जा कर गिर गई।
        तब पिता ने बेटे को जीवन का दर्शन समझाया, "बेटा, जिन्दगी में जब हम मनुष्य ऊँचाई पर होते हैं, तब हमें अक्सर लगता की कुछ चीजें जिनसे हम बँधे हुए हैं, वे हमें और ऊपर की ओर जाने में बाधा बन रही हैं।"
          पिता के समझाने का अर्थ यही था कि वास्तव में मनुष्य को लगता है कि अनुशासन, घर-परिवार, माता-पिता, गुरु और समाज से उसे आजाद होना चाहिए। वास्तव में यही वे धागे होते हैं, जो उसे ऊँचाई पर बनाकर रखते हैं। इन धागों के बिना वह एक बार तो ऊपर चला जाएगा, परन्तु बाद में उसका वही हश्र होगा, जो धागे के कट जाने के बाद किसी पतंग का होता है।
         जीवन में मनुष्य यदि ऊँचाइयों पर बने रहना चाहता है, तो उसे कभी भी इन धागों से नहीं रिश्ता तोड़ना चाहिए। इन्हें मजबूती से थामकर रखना चाहिए। उसे सदा यही प्रयास करना चाहिए कि इन धागों में कभी गलती से भी गाँठ न पड़ने पाए। मनुष्य कितने भी ऊँचे पद पर क्यों न पहुँच जाए, अपनों के साथ के बिना वह कुछ भी कर सकता।
          अपने बन्धुजनों के साथ जब तक वह रचा-बसा रहता है, तभी तक मनचाही उड़ान भर सकता है। एक बात सदा स्मरण रखनी चाहिए कि पक्षी की तरह कितनी भी उँची उड़ान मनुष्य भर ले, अन्तत: आना तो उसे जमीन पर ही होता है। इसलिए अपने मन में अहंकार को स्थान नहीं देना चाहिए। न ही उसे अपने अहं के कारण कभी इन सब सम्बन्धों की अवहेलना नहीं करनी चाहिए।
         ये सभी उसके अपने प्रियजन उसे निरन्तर आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते रहते हैं। उनसे प्रोत्साहित होकर ही उसमें कुछ नया कर गुजरने का साहस आता है। जब वह कुछ नया कार्य कर लेता है, तो चारों उसकी वाहवाही होने लगती है। उसकी योग्यता की तूती बोलने लगती है। हर व्यक्ति उसके साथ अपना सम्बन्ध जोड़ने का प्रयास करने लगता है।
         दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि वह समाज में साधारण से विशेष बन जाता है। जो मनुष्य जमीनी वास्तविकता को समझ लेता है, वह कभी अपना आधार नहीं त्याग सकता। आसमान में कितनी लम्बी उड़ान भरने के बाद भी वह अपने पैर धरती पर जमकर रखता है। यही जीवन की सच्चाई है। मनुष्य इसे जितनी जल्दी समझ जाए, उतना ही उसका लाभ होता है।
चन्द्र प्रभा सूद
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