युवावर्ग में आज अकेलेपन की समस्या घर करती जा रही है। इस भौतिक युग में जीवन में आपाधापी इतनी अधिक बढ़ गई है कि आज युवा अपना मार्ग सुनिश्चित ही नहीं कर पा रहा।
युवा आज बहुत महत्त्वाकांक्षी है। वह अपना कैरियर बनाना चाहता है वही उसकी प्राथमिकता है जो उचित भी है। इस भौतिक युग में समय के साथ ताल मिलाकर चलना वह बखूबी जानता है। वह उच्च शिक्षा प्राप्त करके दूर आकाश की ऊँचाइयों को छूना चाहता है। देश-विदेश जहाँ भी उसे मौका मिलता है अपने लक्ष्य को पाने की ओर बढ़ जाता है। इसलिए इस ओर वह इतना अधिक व्यस्त है कि जीवन के अन्य सभी पहलुओं की ओर नहीं देखना चाहता तथा उनके साथ सामंजस्य नहीं बिठा पा रहा।
जितना ही वह सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ता जा रहा है उतना ही अकेला होता जा रहा है। दिन भर सिर्फ काम और काम। कभी मीटिंग और कभी टूर। सवेरे घर पर समय से निकलने के बाद घर वापिस लौटने का कोई समय नहीं। बस इसके अतिरिक्त और कोई गतिविधि नहीं और न ही कोई सामाजिक जीवन। शादी-ब्याह, पार्टी, तीज-त्योहार कुछ भी निभाना समय के अभाव के कारण बहुत कठिन हो जाता है। यह भी उनके अकेलापन का बड़ा कारण बन जाता है।
अपने व्यावसायिक कार्योँ में व्यस्त रहने वाला युवावर्ग स्वयं अपने लिए न समय निकाल पाता है और न ही अपने बारे में सोच पाता है। अपने कैरियर के लिए सजग युवा तरक्की और तरक्की की आशा में अपनी उम्र की बढ़ती आहट को नहीं सुन नहीं पाता।
अपने जीवन साथी के विषय में सोचने का समय उसके पास नहीं है और यदि विवाह के बंधन में बंध जाता है तो जीवन की भागदौड़ में जीवनसाथी व बच्चों के लिए समय नहीं निकाल पाता। तब व्यर्थ की तकरार में उनका समय व्यतीत होता है जिसके बढ़ जाने पर तालाक तक के हालत पैदा हो जाते हैं।
तालाक के बाद कुछ युवा पुनर्विवाह कर लेते हैं और कुछ अपने कटु अनुभवों के बाद अकेले रहना पसंद करते हैं।
बहुत सी स्थितियों में युवा को अपना भविष्य संवारने के लिए घर-परिवार से दूर दूसरे शहर या विदेश में इच्छा से या अनिच्छा से नौकरी करने के लिए अकेले ही जाना पड़ता है। यह वह स्थिति है जब अकेलापन उसका साथी बन जाता है।
कुछ युवा सही समय पर अपने अहम के कारण दूसरों में कमी निकालते रहते हैं जिससे आयु बीत जाने पर अकेले हो जाता है। कभी-कभी परिस्थितिवश पारिवारिक दायित्वों का निर्वाह करते हुए भी अंतत: वह अकेला रह जाता है।
कुछ युवा आजकल स्वेच्छा से अकेलेपन का वरण करते हैं उनके ऐसा करने के पीछे कोई साख कारण नहीं होता।
युवा पति या पत्नी में से किसी एक की मृत्यु के बाद दूसरा साथी बच्चों के लिए या अन्य किसी कारण से पुनः विवाह न करके अकेला रहने का निर्णय कर लेते हैं।
युवा स्वेच्छा से एकाकी रहना चाहता है, अपना भविष्य बनाना चाहता है, उसके पास यह सब सोचने का समय नहीं है यह सब ठीक है। परन्तु युवावस्था के पश्चात जब वृद्धावस्था की ओर वह बढ़ता है तब उसके पास अपना कहने के लिए कोई नहीं होता। तब तक माता-पिता इस लोक से विदा ले चुके होते हैं और भाई-बहन अपनी-अपनी गृहस्थी में व्यस्त हो जाते हैं। इस प्रकार वह दिन-दिन अकेला होता जाता है। तब उस समय अपने जीवन की ओर मुड़ कर देखना ही शेष बचता है।
मंगलवार, 27 जनवरी 2015
युवाओं का अकेलापन
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