शरीर प्राण के बिना मिट्टी हो जाता है जिसे कुछ समय के लिए भी प्रियजन घर में नहीं रख सकते। सभी यही कहते हैं जल्दी करो अन्यथा इस मृत शरीर से दुर्गन्ध आने लगेगी। जिस शरीर को हम सजा-संवार कर रखते हैं उसे पलक झपकते ही अपने प्रिय से प्रिय बन्धु-बांधव अग्नि के हवाले कर देते हैं।
हमारे इन प्राणों को चलाने के लिए ईश्वर ने सारा तामझाम किया है। हमारे शरीर में विद्यमान सभी अंगों-प्रत्यंगों का निर्माण इसी उद्देश्य से किया है। ईश्वर ने हर जोड़ पर एक आटोमेटिक मोटर फिट की हुई है जिनके कारण हम अपने जोडों को हिलाडुला सकते हैं व उन्हें मोड़ सकते हैं। भौतिक मोटरें कुछ समय चलने के उपरांत जाम हो जाती हैं या खराब हो जाती हैं। उसी प्रकार ईश्वर प्रदत्त ये मोटरें भी जाम हो जाती हैं या खराब हो जाती हैं।
ये सब हमारी गलती से होता है। आप कहेंगे कि ऐसा कैसे हो सकता है? हम क्यों परेशान होना चाहेंगे? इसका कारण हमारा असंयमित आहार-विहार होता है। हम जंक फूड खाते हैं या संतुलित भोजन नहीं खाते। इसके अतिरिक्त हमारा जागना, सोना व खाना अनियमित समय पर होता है। इन सब कारणों से शरीर अस्वस्थ हो जाता है।
इनके जाम होने पर या टूट जाने पर हमें डाक्टरों के चक्कर लगाने पड़ते हैं। अंधाधुंध पैसा खर्च करना पड़ता है। बहुत समय तक फिजीयोथेरेपी करवानी पड़ती है। इस समस्या से आसानी से छुटकारा नहीं मिलता। कभी-कभी तो ये टेढ़े हो जाते हैं या मुड़ जाते हैं। उस स्थिति में मनुष्य को बहुत कष्ट होता है।
उस समय हम अपने कर्मों को दोष देते हैं या फिर भगवान को कोसते हैं। ऐसा करके हम अपने-आप को सांत्वना तो दे देते हैं पर अपनी आदतों में सुधार लाने के बारे में नहीं सोचते।
हाँ, आयु बीतने पर वृद्धावस्था में इनकी कार्यशक्ति क्षीण हो जाती है व आयु बीतने पर शरीर मृत्यु की ओर बढ़ता है नया जन्म पाने के लिए। जैसे अन्य भौतिक मोटरें भी समय रहते पुरानी होकर चलने में असमर्थ हो जाती हैं व उसे फैंककर नई खरीदनी पड़ती है।
इन मोटरों के अतिरिक्त हमारे शरीर में ईश्वर ने एक पंप या टुल्लू पंप भी फिट किया हुआ है जो हमारे हृदय में लगा हुआ है। वह रक्त प्रवाहित करने का कार्य करता है। इसके ठीक से कार्य न कर पाने की स्थिति में हृदय में अवरोध(blockage) हो जाती है। इससे साँस फूलने लगता है व बेचैनी होने लगती है। उस समय स्टन्स डालकर इसका उपचार किया जाता है। ईश्वर न करे यदि heart attack हो जाए तो प्राण घातक भी हो सकता है।
इस हृदय का उपचार करवाने में लाखों रूपयों को व्यय करना पड़ता है। उस समय डाक्टरों के परामर्श पर खानपान में जबरदस्ती सुधार करना पड़ता है। पर यदि समय रहते स्वैच्छा से हम अपनी आदतों में सुधार कर लें तो धन और परिश्रम से कमाए गए धन की बरबादी नहीं होगी। फिर हमें आयु पर्यन्त औषधियों पर नहीं जीना पड़ेगा।
हमारे ऊपर अब यह निर्भर करता है कि हम कैसा जीवन जीना चाहते हैं? रोगी रहकर खाने-पीने से लाचार होकर जीना चाहते हैं या स्वस्थ रहकर सुख-शांति से जीवन व्यतीत करना चाहते हैं। मेरे विचार में सभी लोगों को स्वस्थ रहना ही अधिक उपयुक्त प्रतीत होगा। इसीलिए महाकवि कालिदास ने कहा है-
शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्।
शरीर स्वस्थ होगा तभी हम अपने धर्म या कर्त्तव्य का पालन कर सकते हैं। नीरोगी काया मनुष्य के लिए ईश्वर का वरदान है।
रविवार, 11 जनवरी 2015
शरीर में मोटरें
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