आँख मूँद करके किसी बात को मानने के बजाय न कहने की आदत भी डालिए। जीवन में बहुत से ऐसे मोड़ आते हैं जब मनुष्य के समक्ष दुविधा की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। उस समय भी यदि न नहीं कह पाए तो बहुत बड़ी समस्या में भी घिर सकते हैं। तब न कहिए और सुखी रहिए। सुनने में थोड़ा विचित्र लग रहा है पर यह एक सच है। इसका स्वयं अनुभव कीजिए फिर बताइयेगा कि ऐसा करना उचित है।
घर-परिवार में अक्सर ऐसा होता है कि माता-पिता, पति-पत्नी, आस-पड़ोस में आम व्यवहार में कई बातें नापसंद होती हैं। उस समय उनकी बातों को न चाहते हुए भी चुप रह जाते हैं और बाद में अपने मन में जलते-कुढ़ते रहते हैं। तब उस समय हमारे पास अपना मन मसोस कर रह जाने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं बचता। ऐसा करने से स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। हम अनचाहे रोगों को दावत दे देते हैं। कई बार देखा है सोचते और कुढ़ते लोग कुंठा का शिकार हो जाते हैं।
उस समय यदि मन कड़ा करके न कह देते तो शायद मानसिक परेशानी से मुक्ति मिल जाती। इसका यह तात्पर्य कदाचित नहीं कि हर बात के लिए न कह दिया जाए। कभी-कभी अनावश्यक न कह देने से परिवारों में विघटनकारी स्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। ऐसे समय चुप लगाना श्रेयस्कर होता है या फिर विवाद की स्थिति टलने के बाद अपने मन की बात स्पष्ट करनी चाहिए।
माता-पिता संतान के हित चिन्तक होते हैं। अगर बच्चों को उनके किसी व्यवहार के लिए रोकते हैं या डाँट-डपट करते हैं तो बच्चों को उनका कहना मानना चाहिए। यह नहीं सोचना चाहिए कि वे उनका कहना न मानकर उन्हें नजरअंदाज कर रहे हैं। हाँ, इस प्रसंग में मैं इतना अवश्य कहना चाहूँगी कि यदि बच्चों को माता-पिता की कोई बात पसंद नहीं आती तो उन्हें चुप रहकर उनकी बात माननी चाहिए।
समय बीतने पर जब उनका गुस्सा ठंडा हो जाए तब अपनी बात दृढ़ता पूर्वक रखनी चाहिए यदि वह बात उचित है तो। यदि वे मान जाएँ तो बहुत अच्छी बात है और न मानें तो यह समझ लेना चाहिए कि उनकी माँग नाजायज़ है। वे बड़े हैं और अधिक अनुभवी हैं तथा उन्हें दुनियादारी का ज्ञान भी बच्चों से अधिक होता है।
इसके अतिरिक्त भी बहुत-से ऐसे पल आते हैं जब बच्चे सही होते हैं और माता-पिता को अनावश्यक हठ करके उनकी बात को न नहीं करनी चाहिए।
बड़ों की गलत बातों को न अवश्य कहना चाहिए पर फिर भी कोशिश यही होनी चाहिए कि परिवार में किसी भी प्रकार से कटुता न आए। इसी प्रकार मित्रों को भी उनकी नाजायज बात या योजना के लिए न कर देनी चाहिए और उनको समझदारी से अपने न कहने का कारण स्पष्ट कर दें। यदि वे सच्चे मित्र होंगे तो आपकी बात से सहमत होकर स्वयं भी वह गलत कार्य नहीं करेंगे।
इसी प्रकार आस-पड़ोस में भी दूसरों के गलत फैसलों पर अपनी मोहर न लगाएँ बल्कि उन्हें सही-गलत के बारे में भी समझाएँ। वे लोग यदि विवेकी होंगे तो आपकी बात की गहराई को समझकर आपका लौहा मानेंगे और सयम-सयम पर आपसे विचार-विमर्श भी करेंगे।
सभी सुधीजन जहाँ आवश्यक हो वहाँ न कहकर अपनी सुख-शांति बनाए रखने का यत्न करें।
शनिवार, 17 जनवरी 2015
न कहना सीखें
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