भारतीय पारिवारिक व सामाजिक परिवेश में गृहस्थ आश्रम का महत्व शेष तीनों आश्रमों- ब्रह्मचर्य आश्रम, वानप्रस्थ आश्रम और संन्यास आश्रम से अधिक है। इसका कारण सीधा-सा यह है कि गृहस्थ आश्रम अन्य तीनों आश्रमों का पालन करता है।
ब्रह्मचर्य आश्रम में शिक्षा ग्रहण की जाती है। विद्यार्थी अभी आजीविका कमाने के योग्य नहीं होता। इसलिए वह अपना भरण-पोषण नहीं कर सकता और अपने माता-पिता पर आश्रित रहता है।
वानप्रस्थ आश्रम अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त होकर सामाजिक कार्यों में जुटने का समय होता है। सारी आयु संघर्ष करने के उपरांत घर-परिवार की कमान अपने योग्य बच्चों को सौंपकर ईश्वर की ओर उन्मुख होने का प्रयास करना आवश्यक होता है। अत: रिटायर्ड लाइफ व नाती-नातिनों के साथ जीवन का आनन्द उठाना एक अलग ही अनुभव होता है।
सन्यास आश्रम में घर-परिवार का त्याग करके समाज को दिशा देने का कार्य किया जाता है। सन्यासी स्वाध्याय करके मनन करते हैं व ईश्वर की उपासना में जुटे रहते हैं। अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ये समाज के पूज्य गृहस्थियों पर ही आश्रित रहते हैं।
गृहस्थी का मूल आधार पति-पत्नी होते हैं। इन दोनों के संबंधों में जितनी अधिक मधुरता होगी घर-परिवार में उतना ही सौहार्द होगा।प्रश्न यह है कि पति-पत्नी के संबंध कैसे हों? महाकवि कालिदास ने शिव व पार्वती को आदर्श पति-पत्नी मानते हुए उनकी स्तुति की है-
वागर्थाविव सम्पृक्तौ वागर्थ प्रतिपत्तये।
जगत: पितरौ वन्दे पार्वतीपरमेश्वरौ।
अर्थात् जिस प्रकार शब्द और अर्थ आपस में मिले होते हैं, उन्हें एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता वैसे ही माँ भगवती और भगवान शिव की एक-दूसरे के बिना कल्पना करना संभव नहीं है। ऐसे शिव और पार्वती को मैं प्रणाम करता हूँ।
हमारे भारत में आदर्श पति-पत्नी के उदाहरण स्वरूप शिव-पार्वती, राम-सीता आदि का उल्लेख किया जाता है। आदर्श मानते हुए हम उनकी पूजा करते हैं।
गृहस्थी की गाड़ी चलाने वाले पति-पत्नी का आपसी व्यवहार संतुलित, दुराव-छिपाव रहित, निष्ठापूर्ण, सामंजस्य पूर्ण और परस्पर मित्रवत् होना आदर्श स्थिति है। दोनों को अपने पूर्वाग्रहों को छोड़कर एक-दूसरे का सच्चा हमसफर बनना चाहिए। यदि गुरू नानक देव जी के शब्दों में कहें तो उचित होगा- 'एक ने कही दूसरे ने मानी। नानक कहें दोनों ज्ञानी।'
इस तरह के परिवारों में सुख,शांति व समृद्धि का वास होता है। बच्चे आज्ञाकारी व यशस्वी होते हैं। हम सभी प्रबुद्ध जन मन से विचार करेंगे तो ऐसा समझ में आएगा कि आधुनिक परिवेश में आज सद्गृहस्थियों की बहुत आवश्यकता है। सामाजिक ढांचा चरमराने न पाए इसका हमें ही ध्यान रखना है।
मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015
गृहस्थाश्रम का महत्व
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