गुरुवार, 5 फ़रवरी 2015

मेरा मौन

सोचती हूँ काश मेरा मौन भी हो जाए मुखर
भाषा उसकी पढ़े औ पा सके उसकी  खबर

अब तलक न खोज पाई थी मैं अपना सबर
कह दो करते हैं सदा हम आप सबकी कदर

ऐसा कुछ कहा नहीं जो मच गया है ये गदर
जाने कब बन बैठे अब तुम खुद ही यूँ सदर

चाल चलते जा रहे हम इस तरह से बेखबर
कर दिया है जो अपना था वही तुमको नजर

वाचाल ही बनके न खाएँ ठोकरें यूँ दरबदर
न होगा तब भला जब पा सकोगे न ये कदर

खिंच जाएगा तब सब बन कर ही यह रबर
जालिम जमाना है बड़ा जो ले सबकी खबर

तुम चलो तनिक हाथ थामे मेरा मेरे मौनवर
लिख दिया नाम तुम्हारा मेरे हृदय-पटल पर

जाने कब कुछ दरक जाए काँच-सा पल हर
पलटवार कर भाग जाओगे तब किसके दर

बनाया तुझे है साथी यूँ न छोड़ दे मझधार
तू ही निभा दे अब मेरे जीवन के ये किरदार

सहलाता मुझे न करता यह पल-पल खटर
काश मेरा मौन ही सबकी रख पाता खबर

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