मानवीय कमजोरी है कि वह अपने गुणों का बढ़ा-चढ़ा कर बखान करता है और अपने दोषों को नजरअंदाज करता है। इसके विपरीत दूसरे के गुण उसे नगण्य प्रतीत होते हैं और उनके दोषों को पहाड़ की तरह बढ़ा-चढ़ा कर बताने में उसे आत्मिक सुख का अनुभव होता है।
हम दूसरों की कमियों को उजागर करने में कोई कोर-कसर नहीं रखना चाहते। उन्हें नमक-मिर्च लगाकर चटकारे लेकर सुनाते हैं। हम हमेशा इस बतरस का आनन्द उठाते हैं। जब अपनी बारी आती है तो उसे सहन नहीं कर पाते। तब दूसरों को भला-बुरा कहकर या गाली-गलौच करके अपनी भड़ास निकालते हैं।
वैसे देखा जाए तो इंसान गलतियों का पुतला है। जाने-अनजाने पता नहीं वह कितनी गलतियाँ करता है और जिनका प्रायश्चित्त भी उसे करना पड़ता है। कभी-कभी उसे उनका मूल्य भी चुकाना पड़ता है। यदि निम्न दोहे को याद रखा जाए तो मनुष्य दूसरों के छिद्रान्वेषण करने के बजाय अपनी कमियाँ देखेगा-
बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलया कोए।
जो दिल खोजा आपना मुझसे बुरा न कोए॥
स्वयं को खोजने पर ही ज्ञात होता है कि हम स्वयं भी बहुत-सी गलतियाँ करते हैं और बार-बार उन्हें दोहराते भी हैं। यदि इंसान गलती न करे तो वह भगवान बन जाएगा। भगवान हर दोष एवं हर विकार से परे है। परन्तु मनुष्य चाहकर भी दोषों-विकारों से मुक्त नहीं हो पाता और कभी लालचवश और कभी स्वार्थवश रास्ते से भटककर दोषी बन जाता है।
समस्या केवल यह है कि दूसरों की निन्दा करना हमें अपना शगल लगता है। इस बात को हम भूल जाते हैं कि दूसरे की ओर जब हम एक अंगुली उठाते हैं तो बाकी चार अंगुलियाँ हमारी ओर उठी रहती हैं। जिसका सीधा-सा तात्पर्य है कि वे हमें चेतावनी दे रही हैं कि हम संभल जाएँ क्योंकि हम दूसरों के बनिस्बत चार गुणा अधिक गलतियाँ कर रहे हैं।
फिर भी हम समझ नहीं पाते और पुनः पुनः गलतियों को दोहराते हैं।
निम्न दोहे में हमें समझाया है कि निन्दा करने वाले से घबराना नहीं चाहिए उसे अपने बहुत पास रखना चाहिए-
निंदक नियरे राखिए आँगन कुटी छवाए।
पानी औ साबुन बिना निर्मल करे सुभाए॥
निन्दक दूसरों को उनकी कमियाँ बताकर उन्हें सुधरने का मौका देता है। वैसे तो सफाई का कार्य साबुन और पानी से करते हैं पर निन्दक हमारा शुभचिंतक होता है जो उनके बिना ही हमारे स्वभाव को निर्मल बना देता है।
दूसरों के दोषों को बताते-बताते वह स्वयं को भूल जाता है और एक के बाद एक गलती करता रहता है। दूसरे तो अपनी गलती को सुधारने का यत्न करते हैं पर वह अपनी ही धुन में रहता हुआ पतन की ओर बढ़ता है।
अपने दोषों पर गहरी नजर रखकर उन्हें दूर करने का प्रयास करना समझदारी है। दूसरों की निन्दा-चुगली में अपना समय बरबाद न करके सकारात्मक कार्यों में लगाना चाहिए जिससे हम सर्वांगीण विकास कर सकते हैं।
दूसरों की निन्दा-चुगली करने वालों से ईश्वर कदापि प्रसन्न नहीं होता। अत: आत्मोत्थान करने वालों को इस बुराई से यथासंभव बचना चाहिए।
शनिवार, 7 फ़रवरी 2015
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