चंदन वृक्ष की सुगन्ध और शीतलता के कारण अजगर जैसे विशाल विषधर उस पर लिपटे रहते हैं उस पर उनके विष का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। उसी प्रकार उत्तम प्रकृति के महान लोगों पर भी बुरी सगति का कोई असर नहीं होता। रहीम जी ने इसी बात को बड़े सुन्दर शब्दों में कहा है-
जो रहीम उत्तम प्रकृति , का करि सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग॥
अर्थात चंदन की तरह ही उत्तम प्रकृति के लोग होते हैं जिनके ऊपर किसी भी प्रकार के विष का प्रभाव नहीं पड़ता।
चन्दन के पेड़ की यही विशेषता है कि इन विषधरों के लिपट जाने से कोई उसकी महत्ता कम नहीं होती। चदन के वृक्ष की न ही शीतलता कम होती है और न ही उसकी सुगन्ध को चारों दिशाओं में फैलने से कोई रोक सकता है।
जिन लोगों में सतोगुण की अधिकता होती है अथवा जो सात्विक प्रवृत्ति के लोग होते हैं उन्हें कोई भी संगति प्रभावित नहीं कर सकती। कुसंगति भी उनके पास आती है तो शीतलता ही ढूँढती है और उनकी खुश्बू का आनन्द लेकर प्रसन्न होती है।
यह मैंने इसलिए कहा कि महापुरुषों की संगति में आकर बड़े खूँखार अपराधी भी सात्विक और शुद्ध हृदय बन जाते हैं। महर्षि वाल्मीकि, अंगुलिमाल डाकू आदि हमारे सामने प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। रत्नाकर डाकू साधुओं की सगति में आने के बाद रामकथा के रचयिता महर्षि वाल्मीकि बन गए। अंगुलिमाल डाकू महात्मा बुद्ध की शरण में आकर उनके प्रिय शिष्य बन गए थे। इसी प्रकार इतिहास के पृष्ठों को खंगालने पर हमें ऐसे कई और उदाहरण मिल जाएँगे।
अब विचार इस विषय पर करना है कि इन उत्तम प्रकृति के लोगों के पास ऐसा क्या होता है जो ये सबको बरबस अपनी ओर चुम्बक की तरह आकर्षित कर लेते हैं? वास्तव में ये लोग पारस पत्थर की तरह मूल्यवान होते हैं। इनके सम्पर्क जो एक बार आ जाता है तो वह सोना बन जाता है।
दूसरे शब्दों में कहें तो वह धीरे-धीरे अपने दुर्गुणों का त्याग करता हुआ इनकी छत्रछाया में महान बन जाता है। तब उसकी सुगन्ध भी चारों ओर फैलने लगती है। सद् गुणों को अपने में आत्मसात कर लेने की उसकी प्रवृति उसे महान लोगों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर देती है। फिर उसके पास भी आकर लोग शीतलता पाते हैं। इसी प्रकार यह क्रम चलता रहता है।
उत्तम प्रकृति के लोगो की महानता उनकी विशाल हृदयता, दूसरों के प्रति दया व सहानुभूति की भावना और बिना किसी भेदभाव के सबके कष्टों को हरने की इच्छा आदि गुणों के कारण होती है। लोग इन्हें इनके इन महान गुणों के कारण ईश्वर की पूजते हैं।
जो भी दुखित या पीड़ित इनके द्वार पर अपनी समस्याओं को सुलझाने की याचना लेकर जाता है उसे ये कभी निराश नहीं करते। ये यथासभव उसे प्रसन्न करके ही भेजते हैं। आज के इस भौतिक युग में जहाँ लोगों के पास अपने लिए समय नहीं होता वहाँ इस प्रकार किसी के दुखों को दूर करने वाला महानुभाव मिल जाए तो यह बहुत बड़ी बात है।
ईश्वर ऐसे लोगों को वरदान स्वरूप धरा पर अवतरित करता है। ये चन्दन की तरह अपनी सुगन्ध देश-विदेश में सर्वत्र फैलाते हैं। इनके पास आकर कोई भी व्यक्ति खाली हाथ निराश नहीं लौटता। इनकी शीतलता को अपने भीतर महसूस करता रहता है।
उत्तम प्रकृति के लोगों के पास यदि विषधर जैसा कुसंग भी आ जाए तो उन्हें कोई अन्तर नहीं पड़ता। वे उसके साथ भी सहृदयता का व्यवहार करते हुए शरण देते हैं। हमें यत्नपूर्वक ऐसे लोगों को ढूँढना चाहिए और उनकी सगति में रहकर महकना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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बुधवार, 16 नवंबर 2016
चन्दन विष व्यापे नहीं
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