मानव को ईश्वर ने झोली भर-भर कर नेमतें दी हैं। उन सबसे बढ़कर उसे बुद्धि दी है। इस बुद्धि के बल पर उसने अनेकानेक चमत्कार किये हैं, इसमें कोई दोराय नहीं। इस बात से भी हम इंकार नहीं कर सकते इसी बुद्धि के सहारे से उसने अत्याचार, अनाचार, भ्रष्टाचार भी किये हैं।
इसी बुद्धि के बल पर शक्तिशाली हाथी, खूंखार पशु शेर के साथ-साथ अन्य पशुओं को अपने वश में करके उन्हें पालतू बनाया है। वह चाँद-सितारों और कई ग्रहों पर पहुँचा है। समुद्र का सीना चीरकर उस पर यातायात की सुविधा जुटाई है। उसके अंदर अपनी पैठ बनाई है। तैर कर उसे पार किया है।
अपनी सुख-सुविधाओं के अनगिनत साधन जुटाए हैं। आकाश में भी अपने लिए मार्ग बनाया है।पर्वतों को चीर कर अपने लिए सुविधा जनक आवागमन की राह आसान बनाई है। अनेकों अविष्कार करके अपनी बुद्धि का लौहा मनवाया है।
इतना समझदार व चमत्कृत करने वाला इंसान कहाँ भटक गया? अपने घर-परिवार की समस्याओं को सुलझाने में बुद्धि उसकी बुद्धि कुंठित हो जाती है समझ नहीं आता। अपने ऐसे माता-पिता को जिन्होंने उसे इस धरा पर लाने का उस पर उपकार किया उन्हें वृद्धावस्था में असहाय छोड़ना, उनकी जरूरतों के प्रति उदासीनता तो उसे शोभा नहीं देता।
पारिवारिक दायित्व निभाने में उसकी कोताही सहनशीलता से परे है। परिवार में सामंजस्य स्थापित करना उसकी नैतिक जिम्मेदारी है जिससे वह चूक रहा है। पारिवारिक विघटन उस पर बहुत बड़ा कलंक है।
समय की दौड़ में न पिछड़ने का उसका संकल्प काबिले तारीफ है पर दौड़ते हुए अपनों का साथ न छूटे इसका ध्यान रखना उसकी प्राथमिकता है। ईश्वर उसे सद् बुद्धि दे कि वह अपनी शक्ति को सकारात्मक कार्यों में लगाए उससे घर-परिवार, समाज, देश या विश्व किसी के भी विनाश में उपयोग न करे।
चन्द्र प्रभा सूद
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बुधवार, 9 नवंबर 2016
मानवीय बुद्धि का वरदान
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