जीवन की सफलता इस पर निर्भर करती है कि जब हम इस दुनिया से विदा लें तब उस समय हमारे पीछे चलने वालों की भीड़ हो। उस भीड़ को देखकर व्यक्ति के प्रति लोगों के अनुराग का पता चलता है। हमारे बाद यदि लोग हमारी कमी को अपने जीवन में महसूस करें तब हम कह सकते हैं कि अमुक व्यक्ति ने निस्वार्थ रूप से दूसरों के लिए अपना जीवन जिया।
वैसे तो सारा संसार स्वार्थ के कारण ही परस्पर जुड़ता है। घर-परिवार के सभी सांसारिक रिश्ते मात्र स्वार्थ के होते हैं और वे अपने स्वार्थ के कारण ही याद करते हैं। व्यक्ति विशेष के चले जाने के बाद अपने सुखों या मिलने वाले दुखों के कारण ही उसे याद करते हैं।
विचार यह करना है कि मनुष्य उस स्थिति में पहुँचे कैसे कि वह सबकी आँखों का तारा बन सके। इसका उपाय बहुत ही सरल है पर निभाना उतना ही कठिन। यानि कि अपने आप को व्यष्टि से समष्टि की ओर प्रवृत्त कर दो। इसका सरल-सा अर्थ है कि एक के बारे में न सोचकर सबके बारे में चिन्ता करो।
एक मैं, मेरा पति या मेरी पत्नी, मेरे बच्चे, एक मेरा परिवार इन सबकी ही सारी आवश्यकताओं को पूरा करते हुए अपने शहर और उससे भी बढ़कर अपने देश का हित सोचो। अपनी भारतीय संस्कृति की मान्यताओं के अनुसार-
'वसुधैव कुटुम्बकम्'
अर्थात सारी पृथ्वी अपना घर है। सम्पूर्ण प्राणि-जगत से हमने अपने बंधुजनों जैसा व्यवहार करना है।
ईश्वर हर व्यक्ति को कोई न कोई विशेष कार्य या हुनर देकर इस पृथ्वी पर भेजता है। उसे हीरे की तरह तराश व संवारकर दुनिया के समक्ष लाने का प्रयास करिए। फिर देखिए वह आपका मुरीद हो जाएगा। कोई भी काम छोटा या काम बड़ा नहीं होता है सिर्फ हमारी सोच होती है। किसी के भी अधूरा रहने से हमें परेशानी होती है।
सदा यह भावना रखिए कि जो काम आप सबकी भलाई के लिए कर रहे हैं अगर वैसे काम आपकी तरह और लोग भी नहीं करते तो स्थितियाँ कुछ अलग ही होतीं।
सदा सकारात्मक सोच रखने से ही सफलता मिलती है। नकारात्मक विचारों को अपने मन से झटक दें। यथासंभव दूसरों की कमियों को अनदेखा करके उनके गुणों की प्रशंसा करनी चाहिए। दूसरों की बुराई करने से बचना चाहिए क्योंकि बुराई नाव मेँ हुए छेद के समान होती है। चाहे वह छेद छोटा हो या बडा नाव को डुबा देने में समर्थ होता है।
गलती करना मनुष्य का स्वाभाव है इसलिए बिना पूर्वाग्रह के अपनी भूल को स्वीकार लेने मेँ कभी संकोच नहीं करना चाहिए। किसी छोटे व्यक्ति के बड़े सपनों का मजाक बनाकर हँसना नहीं चाहिए। हो सकता है भाग्य उसका साथ दे और वह आपके बराबर आकर खड़ा हो जाए। उस समय झेंपना पड़ सकता है। जहाँ तक संभव हो अपने अधीनस्थ व्यक्ति को भी आगे बढ़ने का मौका दें और प्रोत्साहित करें। सबको अपना कार्य सुविधा से करने की स्वतन्त्रता दें दखल नहीं। समय का सदुपयोग करते हुए जो ईश्वर ने हमें भाग्य से दिया है उसी मेँ खुश संतोष कीजिए।
सफलता उन्हीं को मिलती है जो कुछ कर गुजरने की हिम्मत रखते हैं। कुछ पाने के लिए कुछ खोना नहीं पड़ता बल्कि कुछ करके दिखाना होता है। ईश्वर पर सदा पूरा भरोसा रखिए और यह विश्वास कीजिए कि प्रार्थना में अपार शक्ति होती है। इसलिए उससे प्रार्थना कीजिए कि वह जीवन में सफल होने के लिए सदा हमारी सहायता करे।
शनिवार, 13 जून 2015
जीवन की सफलता
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