आत्मविश्लेषण या आत्मचिन्तन करना बहुत आवश्यक है। जो प्रबुद्ध जन समय-समय पर आत्मचिन्तन करते रहते हैं वे अपनी छोटी-छोटी असफलताओं अथवा गलतियों से सीखते हुए उन्नति के मार्ग पर अग्रसर हो जाते हैं।
दैनन्दिन कार्यों को करते हुए प्रतिदिन कुछ पल अपने लिए भी चुरा लेने चाहिएँ। उन सीमित पलों को आत्मचिन्तन के लिए इस्तेमाल करना चाहिए। इसके लिए सबसे अच्छा समय होता है रात्रि में सोने का। सोते समय एकान्त में अपने पूरे दिन के लेखे-जोखे पर नजर डालनी चाहिए। दिन भर हमने क्या खोया और क्या पाया? और इसी प्रकार यह भी विचार करना चाहिए कि आज दिन में कितने अच्छे कार्य किए और कितनी बार हमसे गलतियाँ हो गईं? जो अच्छे कार्य हमने दिन में किए हैं उनके लिए ईश्वर को धन्यवाद करना चाहिए और उन कार्यों को भविष्य में भी करते रहना चाहिए। इसके विपरीत जाने-अनजाने जो गलतियाँ हमसे उस दिन हुई हैं उनके लिए ईश्वर से क्षमा याचना करते अगले दिन उन्हें न दोहराने का संकल्प लें। इस प्रकार प्रतिदिन बार-बार अभ्यास करने से अपने दोषों को सुधारने का हमें अवसर मिलता है। जब हम अपने दोषों को दूर करने का संकल्प ले लेते हैं तब धीरे-धीरे दोषों का त्याग करके विकास की ओर उन्मुख होते हैं। फिर हमें सफल व्यक्ति बनने से कोई भी रोक नहीं सकता।
यदि इस आदत को अपना लिया जाए तो किसी अन्य व्यक्ति को हमारा विश्लेषण करने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी। हम स्वयं अपने समीक्षक बनकर अपना सुधार करने में सक्षम हो जाएँगे। फिर उस समय हमारी कुटिया में बैठा निन्दक भी हमारी कमियाँ ढूँढते हुए माथा पीट लेगा। हम उसे अपनी कमियाँ ढूँढने का अवसर न देकर मात देने में समर्थ हो जाएँगे। फिर तो यह हमारे लिए सौभाग्य का अवसर बन जाएगा।
कुछ लोग प्रतिदिन डायरी लिखते हैं। यह डायरी लिखना एक बहुत ही अच्छी आदत है। इस प्रकार दिनभर के कार्य कलापों को डायरी के पन्नों में कैद कर लेना भी एक तरह का आत्मचिन्तन ही कहलाता है। इस लेखन में भी एक ईमानदार सोच व सच्चाई होती है जो हमें आईना दिखाती है। तो इस विश्लेषण से भी अपनी कमजोरियों पर नियन्त्रण रख सकते हैं।
आत्मचिन्तन अथवा डायरी लेखन के बहुत से लाभ हैं। इनमें एक यह है कि हम अपनी कमजोरियों पर काबू रख सकते हैं। जहाँ लगे कि हमसे गलती हो गयी है उसका सुधार कर सकते हैं। और यदि किसी से क्षमा याचना करने से बिगड़ी बात सकती है तो उसे मानने में ही भलाई है।
कभी-कभी जीवन में ऐसे पल आते हैं जब लाभ के स्थान पर हानि हो जाती है, जबरदस्ती हम कष्टों को न्यौता दे बैठते हैं। उस समय आत्मविश्लेषण करना बहुत आवश्यक होता है। यदि हम सजगता से विश्लेषण करते हैं तो हम अपनी कमी जान लेते हैं। उस कमी को दूर करके धीरे-धीरे पुनः सफलता के मार्ग पर आगे बढ़ सकने में समर्थ हो सकते हैं।
हमें आत्मविश्लेषण करने की आदत बनानी चाहिए। इस आत्मचिन्तन के बल पर हम अपने सपनों को साकार करने में समर्थ हो जाते हैं। ईश्वर भी हम मनुष्यों के सकारात्मक प्रयत्नों से प्रसन्न होता है और वह हमें सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ने में सहायता करता है।
गुरुवार, 4 जून 2015
आत्मविश्लेषण
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