'जल ही जीवन है'- यह पंक्ति मनुष्य जीवन के लिए सटीक है। यह जल हमारी जीवनी शक्ति है। निस्संदेह जल के बिना हमारा कोई अस्तित्व ही नहीं रह जाता।
डॉ जेफरी उटज़ का कहना है कि मनुष्य के शरीर में अन्य सभी खनिज आदि के साथ 60% पानी होता है। पैदा होते बच्चे के शरीर में 78% पानी होता है और जब वह एक वर्ष का होता है तो 65% पानी उसके शरीर में रह जाता है।
पृथ्वी पर 72% जल है जिसमें 97% खारा या नमकीन पानी है। इसका उपयोग हम नहीं कर पाते।
जल के बिना हमारे कोई भी कार्य नहीं हो सकते। यानि कि शरीर की, गन्दे हुए घर की, मैले वस्त्रों की, झूठे बर्तनों की, गाड़ियों आदि की सफाई कदापि संभव नहीं। हमारा भोजन इस जल के बिना नहीं बन सकता। यदि कभी एक दिन भी पानी घर में समाप्त हो जाए तो उस स्थिति की कल्पना करना बहुत ही कठिन है। उस समय हम हर संभव यत्न करके या पैसा खर्च करके अपने घर के पानी के टैंक भरवा लेते हैं जिससे हमें जल के इस संकट से न झूझना पड़े।
जल हमारे यातायात का भी साधन है। पानी के जहाज मनुष्यों और सामान को इधर-उधर ले जाते हैं। नौकाओं से नदी पार करके आवागमन करते हैं। नौका की सैर का भी आनन्द उठाते हैं। इस जल को पूल में छोड़कर तैराकी करते हैं।
जो भी अन्न, सब्जी आदि हम खाते हैं, उनकी उत्पत्ति भी जल के बिना संभव संभव नहीं। किसान दिन-रात परिश्रम करके हमारे लिए अन्न व सब्जियाँ उगाता है और हम उन्हें चटखारे लेकर खाते हैं।
सबसे महत्त्वपूर्ण बात है कि जीवन के सारे आनन्द हम इस जल की बदौलत उठाते हैं। बिजली भी जल से ही बनती है और उसी से हमारे घरों के सभी उपकरण- फ्रिज, टीवी, एसी, फूड, प्रोसेसर, वाशिंग मशीन, माइक्रोवेव आदि चलते हैं। इसी की दूधिया रौशनी में हमारे घर व शहर जगमगाते हैं।
विचारणीय है कि जिस जल के बिना हम एक पल की भी कल्पना नहीं कर सकते उसकी बरबादी करते हैं। उसे व्यर्थ नष्ट करते समय हम भूल जाते हैं कि जब जल ही नहीं बचेगा तब हम क्या करेंगे? इस अमृत को हम स्वयं प्रदूषित कर रहे हैं और अनेक बीमारियों को दावत दे रहे हैं।
जल को हम सोच-समझकर खर्च नहीं करते। पानी बह रहा है तो हम परवाह नहीं करते। दाँतों पर ब्रश करते समय, शेव करते समय पुरुष सारा समय नल खुला छोड़ देते हैं। ऐसे ही बाल्टी के स्थान पर फव्वारे के नीचे स्नान करते समय भी पानी व्यर्थ गंवाते हैं। पशुओं को नहलाने और गाड़ियों की धुलाई में हम अंधाधुंध जल बहाते हैं। इसी प्रकार घरों और सड़कों पर पाइप लाइनों से पानी लीक होता रहता है। थोड़ा-सा ध्यान देने पर पानी की बरबादी व संभावित परेशानियों से बचने के प्रयास हम कर सकते हैं। बारबार विद्वान चेतावनी देते हैं कि तीसरा विश्व युद्ध जल के लिए होगा।
जल का अपना कोई भी रंग-रूप नहीं होता। अर्थात जिस पात्र में उसे डालकर रखा जाएगा उसका रूप वैसा ही होगा। अपने घर में विविध पात्रों में इसे डालकर अनुभव कर सकते हैं। जिस रंग को इसमें मिला देंगे यह वैसे ही रंग का हो जाता है। हम कह सकते हैं कि मनुष्य को भी जल की तरह हर परिस्थिति में ढल जाना चाहिए। पर इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि वह दूसरों की बातों आने वाला या कान का कच्चा बन जाए।
जल मानव जीवन के लिए बहुत ही उपयोगी है। यथासंभव इसके संरक्षण का उपाय करना चाहिए। आजकल वाटर हारवेस्टिंग की चर्चा जोरों पर है। शायद इसी से ही कुछ जल संरक्षित हो सके। सरकार, स्वयंसेवी संस्थाओं और हम सबको मिलकर जल को बचाना होगा तभी इस समस्या से राहत मिल सकती है।
गुरुवार, 18 जून 2015
जल ही जीवन
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