फूल और शूल दोनों एक साथ, एक ही पौधे पर जन्म लेते हैं। हम इस बात से इन्कार नहीं कर सकते कि कभी-कभी अपने ही सहोदर (साथ जन्मे) काँटों के द्वारा गुलाब का फूल छलनी-छलनी कर दिया जाता है। उस समय की परिकल्पना कीजिए कि उस कोमल फूल को कितनी पीड़ा यह सोचकर होती होगी कि अपनों के द्वारा ऐसा दारुण दुख दिया गया है।
इसी प्रकार मनुष्य को जब अपने ही सगे भाई-बहनों अथवा मित्र-सम्बन्धियों के द्वारा जब मर्मान्तक पीड़ा पहुँचाई जाती है तब उसकी स्थिति कितनी विचित्र हो जाती है। वह मन से पूरी तरह टूटने लगता है। जिन कन्धों का सहारा उसे हमेशा दुखों-परेशानियों में मिलना चाहिए था वही कन्धे उसे झटककर इस दुनिया में निपट अकेला छोड़ रहे हैं और लहुलूहान करने के लिए तैयार हो रहे हैं।
हमारी भारतीय सस्कृति में पुनर्जन्म व कर्मसिद्धान्त को बहुत मान्यता दी जाती है। इसके अनुसार मनुष्य को अपने पूर्वजन्म कृत कर्मों के अनुसार जिन जीवों से सुख अथवा दुख मिलना होता है उनके साथ उसका संयोग अपने-आप हो जाता है। यही वे लोग होते हैं जो भाई-बहन, मित्र-बन्धु अथवा माता-पिता के रूप में जीव को इस जन्म में मिलते हैं।
जब मनुष्य को इनमें से किसी के द्वारा भी मानसिक पीड़ा पहुँचती है तो उस समय वह अपने सम्बन्ध की गरिमा को देखते हुए उनके साथ यदि दुर्व्यवहार नहीं भी कर सकता तो वह अपने मन-ही-मन में कुढ़ता रहता है। तब वह अपने भाग्य को कोसता हुआ ईश्वर पर दोषारोपण करता है जिसने ऐसे दुख देने वाले सम्बन्धी उसे इस जीवन में दिए हैं।
उसे कभी याद नहीं आता कि यह संसार रिश्तों की एक मण्डी है। रिश्तों की गरिमा बनाना-बिगाड़ना उसके अपने हाथ में है। जैसे रिश्ते हम अपने कर्मों से खरीदना चाहते हैं उन्हें पा लेते हैं। मण्डी में जाकर हम पैसे देकर या मूल्य चुकाकर अपनी मनचाही कोई भी वस्तु खरीदकर ले आते हैं और उसका उपभोग प्रसन्नतापूर्वक करते हैं।
उसी प्रकार हम अपने जीवन में जिन लोगों के लिए शुभकार्य करते हैं, उनकी सहायता करते हैं, उनके दुख दूर करने का यत्न करते हैं वे आने वाले जन्म में हमारे हितैषी बनते हैं और सहायता करते हैं।
परन्तु जिन लोगों के साथ हम अच्छा व्यवहार नहीं करते, उन्हें किसी भी रूप में हानि पहुँचाते हैं, वे आने वाले जन्म में हमारा अहित करते हैं और हमारी जड़ें खोदते हैं। इस प्रकार सारा हिसाब-किताब किसी-न-किसी जन्म में एवविध चुकता हो जाता है। वे अपना लेखा-जोखा बराबर करके हमसे विदा ले लेते है अथवा हम उनसे विदा लेकर अगले पड़ाव की ओर पुन: कुछ और लोगों के साथ अपने लेनदेन के हिसाब को शून्य करने के लिए चल पड़ते हैं।
इस प्रकार लेनदेन के हिसाब-किताब के चक्रव्यूह में जीव भटकता रहता है। उन सबका निपटारा करके ही उसे इनसे मुक्ति मिलती है। वह परम न्यायकारी बिना पक्षपात के सबको एक ही लाठी से हाँकता है।
पूर्व जन्मों में हमने क्या अच्छा किया और क्या बुरा किया हम नहीं जानते परन्तु इस जन्म में हम जो भी स्याह-सफेद कर रहे हैं, उसकी हमें पूरी जानकारी है। आने वाले जन्मों में यदि कष्टों अथवा परेशानियों से बचना चाहते हैं तो हमें दूसरों की राह में शूल नहीं फूल बिछाने चाहिएँ जिससे हमें उन शूलों से छलनी या लहुलूहान न होना पड़े। जीवन में ऐसी कल्पना करना व्यर्थ है कि सभी फूल हमारे हिस्से के और सभी काँटे दूसरों के भाग्य में। हमारे विद्वान हमें चेतावनी देते हैं-
जो तोको काँटा बोए ताको बोइए फूल।
तोको फूल के फूल हैं वा को हैं त्रिशूल॥
तभी जीव फूलों की तरह अपनी सुगन्ध और मुस्कुराहट बिखेरता हुआ अपने कंटक रूपी सहोदरों के चंगुल से बच सकता है।
चन्द्र प्रभा सूद
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शनिवार, 24 अक्तूबर 2015
अपनों से कष्ट
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