भौतिक सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य की इस संसार में जिन लोगों को चाहत है उनके लिए मननशील होना बहुत आवश्यक होता है। इस जीवन के मार्ग में आने वाली सभी बाधाओं को दूर करते हुए उन्हें अपने जीवन में नित्य उन्नति के पथ पर अग्रसर होना चाहिए। इसीलिए हमारे मनीषी सफलता का मन्त्र देते हुए कह रहे हैं-
षड्दोषा: पुरुषेणेव हातव्या भूतिमिच्छता।
निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध: आलस्यं दीर्घसूत्रता॥
अर्थात ऐश्वर्य चाहने वाले मनुष्य को- निद्रा, तन्द्रा, भय, क्रोध, आलस्य और दीर्घसूत्रता इन छह दोषों से दूर रहना चाहिए।
जीवन में किसी प्रकार का कष्ट न आए और वह सुखपूर्वक बीते, इसके लिए थोड़ा-सा त्याग करना पड़ता है। सबसे पहले तो मनुष्य को अपनी नींद का त्याग करना चाहिए। यदि वह सोता रहेगा तो वह लूजर रहेगा। उसके जो साथी समय पर अपने कार्य करते हैं वे रेस में उससे आगे निकल जाते हैं और वह पिछड़ जाता है। उसे हार का स्वाद चखना पड़ता है जो वास्तव में बहुत कष्टकर होता है। इसीलिए कहते हैं-
उठ जाग मुसाफिर भोर भई अब रैन कहाँ जो सोवत है।
जो सोवत है वो खोवत है जो जागत है सो पावत है॥
इसका अर्थ है कि मनुष्य को जाग जाना चाहिए। अपने आवश्यक कार्यो को समय रहते निपटा लेना चाहिए। जो समय बीतने पर भी सोता रहता है वह अपना सब कुछ खो देता है।
तन्द्रा यानि यदि रात को ठीक से नींद पूरी न हो सके तो दिन भर सुस्ती छायी रहती है और बार-बार झपकी आती रहती है। इससे बचना चाहिए। प्रयत्न यही होना चाहिए कि नींद के साथ समझौता न किया जाए। आजकल के बच्चों में यह बीमारी बढ़ती ही जा रही है कि वे रात को देर तक पढ़ते रहते है और फिर दोपहर बाद जागते हैं। इसी तरह नाइट शिफ्ट में नौकरी करने वालों का भी यही हाल होता है। रात देर तक क्लबों व पार्टियों में रहने से भी समस्या बढ़ती है। इस तरह नींद के समय के गड़बड़ाने से बाडी क्लाक बिगड़ जाता है। इससे बहुत-सी बीमारियाँ मनुष्य को घेरने लगती हैं।
जब भय किसी मनुष्य के मन में घर करने लगता है तब वह किसी भी नए कार्य को करने से घबराता है। हर काम में खतरा तो जुड़ा होता है। जो खतरों से जीतकर आगे बढ़ता है वही सफलता प्राप्त करता है और जो डरकर कदम पीछे खींच लेता है वह जिन्दगी की दौड़ में पिछड़ जाता है।
क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है जो हर कदम पर उसे अपमानित करवाता है। उसके बनते हुए कामों को बिगाड़ देता है। अपनो से अलग-थलग करवा देता है। इसे जीतना हम मनुष्यों के लिए बहुत बड़ी चुनौती है।
आलस्य मनुष्य को सदा अवनति की ओर धकेलता है। हाथ पर हाथ रखकर बैठने से तो रोटी का निवाला भी मुँह में नहीं जाता। उसे खाने के लिए भी तो श्रम करना पड़ता है। यदि आलस्य के कारण भाग्य के भरोसे वह बैठा रहेगा तो उस पर जीवन में असफल रहने का ठप्पा लग जाएगा।
दीर्घसूत्रता के कारण मनुष्य अपना आज का कार्य कल पर टालता ही जाता है। वह कल कभी नहीं आता और उसका कार्य पूरा नहीं हो पाता। मनुष्य भूल जाता है-
कल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में प्रलय हो जाएगी, बहुरि करेगा कब?
अर्थात मनुष्य को इस संसार में जीने के लिए सीमित समय ही मिलता है। यदि उसे अपनी मूर्खता से बरबाद कर देगा तो अपने कार्यों को पूर्ण नहीं कर सकेगा।
जो भी संसार में नाम कमाना चाहता है, सभी सुखों को पाना चाहता है, सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ना चाहता है उसे निरन्तर कठोर परिश्रम करना चाहिए। निद्रा, तन्द्रा, भय, क्रोध, आलस्य और दीर्घसूत्रता इन दोषों को अथवा शत्रुओं को अपने जीवन में कदापि स्थान नहीं देना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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सोमवार, 26 अक्तूबर 2015
छह दोषों का त्याग
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