मनुष्य को दीपक की भाँति प्रकाशमान होना चाहिए। मनुष्य इसीलिए ही मनुष्य कहलाता है कि वह अपने परिवेश में चारों ओर रहने वाले दूसरे लोगों की सुधबुध ले। उसे अपने सद् गुणों से चारों ओर प्रकाश फैलाए।
जब सूर्य का प्रकाश तीव्र होता है उस समय किसी अन्य प्रकाश की आवश्कयता नहीं होती। उसके उपस्थित न होने पर ही अंधकार अपने पैर पसारने लगता है। ऐसे समय में एक छोटा-सा दीपक अंधेरे कमरे में यदि रख दिया जाए तब उसके प्रकाश से कमरे में उजियारा हो जाता है। वहाँ पर चलने-फिरने वाले लोगों का आवागमन इस प्रकार सुविधापूर्वक होने लगता है कि वे ठोकर खाकर गिर जाने से बच जाते हैं।
जिन मनुष्यों को उनके शुभकर्मों के कारण ईश्वर ने सामर्थ्यवान बनाया है उनको चाहिए कि वे समाज के पिछड़े वर्ग के लिए दीपक की भाँति बनें। उनके चेहरों पर यदि वे थोड़ी-सी प्रसन्नता भी ला पाएँ तो उनका मानव जीवन पाना सफल हो गया समझिए।
वास्तव में मनुष्य वही कहलाता है जो अपने देश, धर्म व समाज के लिए कुछ कर गुजरने का साहस रखता हो। जिस प्रकार दीपक छोटे-बड़े, अमीर-गरीब, धर्म-जाति आदि सभी प्रकार के बंधनों से ऊपर उठकर सबको बराबर प्रकाश देता है उसी प्रकार ये महापुरुष भी सबको एक समान मानते हुए अपने दायित्वों को करने में संलग्न रहते है।
अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए तो पशु-पक्षी भी जीते हैं। इंसान और अन्य जीवों में कुछ अन्तर होना आवश्यक है। हमारे ऋषि-मुनियों का मानना है कि सभी मनुष्येतर जीवों की भोगयोनि होती है। उस योनि में वे केवल अपने अशुभ कर्मो का दण्ड भोगते हैं। केवल मनुष्य जीवन ही कर्मयोनि होता है जिसमें शुभाशुभ सभी प्रकार के कर्मों को करने में वह स्वतन्त्र होता है।
अब यह उसकी इच्छा पर निर्भर है कि वह शुभकर्मो को करता हुआ परलोक सुधार ले अथवा अशुभ कर्मों की ओर प्रवृत्त होकर परलोक तो क्या यह लोक भी बिगाड़ ले।
इसलिए इस मनुष्य योनि में जितने अधिक शुभकर्म अथवा पुण्यकर्म अपने खाते में मनुष्य जोड़ पाएगा उतना ही सुख और ऐश्वर्य उसे आने वाले अगले जन्मों में भी मिलेगा।
दीपक नेह की चिकनाई और उसमें डाली गई बाती से स्वयं को जलाकर दूसरों को प्रकाश देता है। उसी प्रकार मनुष्य जब दूसरों को अपने प्यार से सराबोर करता है और अपने संयम एवं अनुशासनात्मक जीवन से तपा हुआ दूसरों पर अपनी छाप छोड़ने में सफल होता है तभी वास्तव में वह समाज में प्रकाशित होता है। सबके लिए पूजनीय बन जाता है लोग उसे सिर-आँखों पर बिठाते हैं। ऐसे सज्जन मनुष्य समाज के दिग्दर्शक बनते हैं और सबके अराध्य होते हैं।
समाज कल्याण मन्त्रालय द्वारा कई योजनाएँ सामाजिक रूप से पिछड़े इस वर्ग की सुरक्षा हेतु बनाई गई हैं। बहुत-सी समाजसेवी संस्थाएँ भी इस कार्य में सक्रिय हैं परन्तु उनके इन कार्यों के लाभ से अभी भी बहुत बड़ा वर्ग वंचित है। छोटी-छोटी सस्थाएँ भी इनकी भलाई के लिए कार्य कर रही हैं। इनके अतिरिक्त भी देश के गाँवों और प्रदेशों में अपने-अपने स्तर पर अनेक लोग इन परोपकारी कार्यों में निस्वार्थ भाव से जुटे हुए हैं।
अभी भी इन आर्थिक व सामाजिक रूप से पिछड़े लोगों के जीवनों को प्रकाश की महती आवश्यकता है। इनके सच्चे साथी बनकर यदि इनके जीवन को किसी तरह प्रकाशित किया जा सके तो मानव जन्म सफल हो जाएगा। वास्तव में इन्हीं दीपक स्वरूप व्यक्तियों का जीना ही इस ससार में जीना कहलाता है।
चन्द्र प्रभा सूद
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बुधवार, 7 अक्तूबर 2015
दीपक की तरह बनिए
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