मनुष्य का अकेलापन इस संसार में उसके लिए सबसे बड़ा अभिशाप होता है। मनुष्य तो क्या अन्य जीव-जन्तु भी अकेले नहीं रह पाते। इसलिए वे झुण्ड बनाकर रहते हैं। प्रायः पशु-पक्षी अपने-अपने साथियों के साथ समूहों में नजर आते हैं। भेड़, बकरी, हाथी आदि सभी पशु मिलकर चलते हुए दिखाई देते हैं। पक्षी भी अपने झुण्ड में ही उड़ते हैं। इससे वे सभी शायद अधिक सुरक्षित अनुभव करते हैं।
पालतू पशुओं के लिए भी यही चिन्ता की जाती है कि उन्हें अकेला न छोड़ा जाए। यदि किसी कारण से उन्हें कुछ दिनों के लिए अकेला छोड़ दिया जाए तो उन्हें अकेलापन सालने लगता है। वे उदास हो जाते हैं और खाना-पीना तक त्याग देते हैं। जब तक घर के सदस्य वापिस न लौट आएँ, तब तक उन्हें अच्छा नहीं लगता। यही कारण है कि उनके लिए भी आजकल बहुत से क्रच खुलने लगे हैं।
इसी प्रकार यदि अकेली मछली को घर में रखे एक्वेरियम में छोड़ दिया जाए तो उसे भी अकेलापन बहुत अधिक सताता है। फलस्वरूप वह शीघ्र ही दुनिया से विदा ले लेती है। इसलिए वहाँ अनेक प्रकार की मछलियाँ रखनी होती हैं जिससे वे सब मिलकर रह सकें और घर में आने वाले सभी बच्चों और बड़े लोगों का मनोरञ्जन कर सकें।
मनुष्य तो फिर एक सामाजिक प्राणी है, वह भला अकेला क्योंकर रहे। उसे सबके समीप आने के लिए अपने रिश्तों को समझने की, सहेजने की और समेटने की महती आवश्यकता होती है। यदि मनुष्य के मन के किसी कोने में ऐसा भाव घर कर जाए कि जिन्दगी में कुछ भी शेष नहीं बचा है, जीवन नीरस हो रहा है, जीवन मुरझाने लगा है, पलभर के लिए भी कोई खुशी नहीं मिल रही है तो उस समय मनुष्य को अपनों के प्यार की आवश्यकता होती हैं।
इसलिए रिश्तों के स्नेह की वर्षा उस पर करनी चाहिए। यदि मनुष्य ऐसा कर सके तो उसे अपने जीवन में वास्तविक आनन्द और प्रसन्नता मिल सकती है। मनुष्य को स्वयं खुश रहने के लिए खुशियाँ बाँटते रहना चाहिए और सदैव मुस्कुराते रहना चाहिए। रोते-बिसूरते रहने वालों से सभी बन्धु-बान्धव किनारा करने में ही अपनी भलाई समझते हैं। इस क्षणभंगुर जीवन में मनुष्य जितना दूसरों को साथ लेकर चलता है, उतना ही उसका समय आनन्दमय बन जाता है। अन्यथा अकेले हो जाने पर सबको कोसने से कोई लाभ नहीं होता।
दुर्भाग्य से यदि किसी की भी गलती से कोई अपना दूर हो जाता है तो उसे अपने करीब लाने के लिए बारबार ईमानदार प्रयास करना चाहिए। इस प्रयास में तभी सफलता मिल सकती है जब मनुष्य पूरे मन से अपने लक्ष्य में जुट जाए। आधे-अधूरे मन से किए गए प्रयत्न असफल हो जाते हैं। अपने जीवन को जीवन्त बनाने हेतु कदापि संकोच नहीं करना चाहिए।
इसका अनुभव तो बहुत से लोगों को होगा कि गमले रखा हुआ अकेला पौधा भी अधिक दिनों तक हरा-भरा नहीं रह पाता, वह मुरझाने लगता है। यदि उसके पास बहुत से दूसरे पौधे रख दिए जाएँ तो वे सब खिले रहते हैं। इसका यही अर्थ है कि पेड़-पौधों को भी अपने साथियों की बहुत ही आवश्यकता होती है। उन्हें भी अकेलापन काटने को दौड़ता है।
मैंने अपने पुराने स्टाइल के बने हुए घर में देखा है कि रोशनी के लिए एक कमरे में दीपक रखने के लिए आमने-सामने वाली दीवार में दो स्थान बनाए हुए थे। इसका कारण शायद यही रहा होगा।
मनुष्य हो या सृष्टि का अन्य कोई भी जीव, हर किसी को किसी-न-किसी के साथ की आवश्यकता होती है। अपने आसपास यदि कहीं कोई अकेला व्यक्ति दिख जाए तो उसे सहारा देने का यत्न करना चाहिए। अपना अमूल्य समय देकर उसे असमय मुरझाने से बचाना चाहिए। यदि दुर्भाग्य से मनुष्य अकेला हो तो उसे किसी मित्र का साथ लेकर, आनन्दपूर्वक जीने का साधन करना चाहिए। इस तरह एक मनुष्य स्वयं को भी मुरझाने से बचा सकता है।
चन्द्र प्रभा सूद
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शनिवार, 3 फ़रवरी 2018
अकेलेपन का दंश
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