मनुष्य को बहुत अधिक बोझ नहीं उठाना चाहिए। अपनी पीठ पर उतना ही बोझ लादकर चलना चाहिए जितना वह आराम से उठा सके। फिर वह बोझ चाहे रिश्तों का हो अथवा सामान का। इसके अतिरिक्त चाहे वह बोझ उसके अभिमान का ही क्यों न हो। देखा जाता है कि अपनी सामर्थ्य से अधिक बोझ लेकर चलने वाला इस ससार में अक्सर डूब जाता है।
रिश्तों की अहमियत हम सब लोग जानते हैं परन्तु जब ये रिश्ते मनुष्य के लिए बोझ बन जाएँ तो उनसे दूरी बनाना ही उचित होता है। वैसे तो सभी रिश्ते बहुत ही नाजुक और महत्त्वपूर्ण होते हैं। उनको सदा सहृदयता और सद् भावना से ही निभाना चाहिए। उनमें टकराव की स्थिति उत्पन्न न हो, इससे बचने का यथासम्भव प्रयास चाहिए।
पर यदि उनमे आपसी भाईचारा तथा विश्वास समाप्त हो जाए तो वे भार की तरह हो जाते हैं। एकतरफा रिश्ता लम्बे समय तक हाथ थामकर साथ नहीं चल पाता। ऐसे रिश्ते जो जीवन में नासूर बनकर कष्टदायी बन जाते हैं, उनके लिए अपने मन की शान्ति भंग नहीं करनी चाहिए। उन्हें छोड़ देना ही श्रेयस्कर होता है।
यात्रा के लिए जब कभी जाना हो तो यत्न यही करना चाहिए कि सीमित सामान ही लेकर जाया जाए। कम सामान होने पर उसे सम्हालना सुविधाजनक होता है। यदि ढेर सारा आवश्यक अथवा अनावश्यक सामान लेकर चला जाएगा तो फिर बहुत-सी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। उस सामान की रखवाली करने के कारण अपने घूमने-फिरने का आनन्द कम हो जाता है।
मनुष्य पर उसके घमण्ड का बोझ बहुत अधिक होता है। वह अपने अहं में अन्धा होकर अच्छे और बुरे का विवेक खो बैठता है। अहंकार का नशा जब सिर पर चढ़कर नाचने लगता है तब मनुष्य स्वयं को भगवान से कम नहीं समझता। वह इतराता फिरता है। मद में चूर वह आकाश में उड़ता फिरता है। उसके पैर जमीन पर नहीं पड़ते।
कहते हैं एक धोबी के पास एक गधा और एक घोड़ा था। धोबी घोड़े से बहुत प्यार करता था और खूब देखभाल करता था। गधे पर वह सारा सामान लादता रहता था। घोड़ा गधे की दुर्दशा पर उसका मजाक बनाता था। उसने गधे को समझाया कि जब उसका काम करने का मन नहीं करता तो वह बहाना बना लेता है। तब मालिक परेशान हो जाता है तब फिर उसकी बहुत देखभाल करता है।
गधा अपने ऊपर लादे जाने वाले बोझ से बहुत व्यथित रहता था। मालिक था कि दिन-प्रतिदिन बिना सोचे-समझे उसका भार बढ़ाता रहता था। वह दिन भर बोझ उठाते-उठाते उदास रहने लगा था। वह भी घोड़े की तरह कभी आराम करना चाहता था।
एक दिन उसने सोचा कि वह अपने मालिक को सबक सिखाएगा। शाम को जब धुले हुए सूखे कपड़े लेकर आ रहा था तो रास्ते में नदी पार करते समय उसने नदी में गिरने का नाटक किया।
उसके ऊपर लदे हुए वे सारे कपड़े भीग गए और वे बहुत भारी हो गए। वे भारी कपड़े घर तक ले जाने में उसकी कमर टूटने लगी। उसके मालिक को उस पर जरा-सा भी तरस नहीं आया। उसे ऊपर से अपने मालिक की मार भी खानी पड़ी।
यह गधा केवल कोई धोबी का गधा नहीं है। हम मनुष्य भी जीवन भर रिश्तों और अपने अहं का बोझ अपने सीने पर ही ढोते रहते हैं और दूर से देखती हुई नियति हम पर हँसती रहती है।
मोहमाया के बन्धनों में जकड़े हम चाहकर भी इस बोझ को उतारकर नहीं फैंक पाते। सड़े और नासूर बन रहे इन बन्धनों से मुक्त होने का सार्थक प्रयास कर सकते हैं। इसलिए बोझ कैसा भी हो, उसे सिर से उतारकर फैंकने से सुख की साँस लेकर चैन की बाँसुरी बजा सकते हैं।
चन्द्र प्रभा सूद
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सोमवार, 14 मार्च 2016
सामर्थ्य के अनुसार बोझ
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