गृहस्थी को चलाने का दायित्व यद्यपि पति और पत्नी दोनों का होता है। परन्तु पति प्राय: यहकर पल्ला झाड़ने का यत्न करते हैं कि यह तुम्हारा अपना घर है, बच्चे भी तो तुम्हारे हैं और मैं भी तुम्हारा हूँ, जैसा चाहे अपने इस घर को चलाओ।
पत्नी को तथाकथित रूप से महिमा मण्डित करके अपनी जिम्मेदारियों से भागने का यह बहुत अच्छा उपाय है। उस समय का उपयोग वे घर से बाहर दोस्तों से गपशप करके, मौजमस्ती करके करते हैं। घर में क्या हो रहा है? इससे वे अनजान रहते हैं अथवा बेखबर रहने का ढोंग करते हैं।
जहाँ तक घर चलाने की बात है, उसके लिए यही कहा जा सकता है कि पति और पत्नी दोनों की समान सहभागिता की आवश्यकता होती है। आज यह ज्वलन्त प्रश्न है कि घर और बाहर दोनों मोर्चों को स्त्री सम्हाल सकती है तो पुरुष क्यों नहीं?
आज मंहगाई के दौर में यदि दोनों कार्य न करें तो जरूरतों को पूरा करना कठिन हो जाता है। दोनो घर से एक ही समय पर जाते हैं और संध्या समय भी एक ही समय पर वापिस लौटते हैं। कुछ अपवाद छोड़ दीजिए, उस समय भी प्राय: पुरुष चहते हैं कि वे महाराजा की तरह बैठे रहें और पत्नी उसकी तिमारदारी में जुट जाए। एक गिलास पानी वह खुद होकर न लें और एक कप चाय भी उन्हें टेबल पर बैठे हाजिर हो जाए।
यदि ऐसा न हो पाए तब तकरार होने से कोई नहीं रोक सकता। उस समय पुरुष भूल जाता है कि पत्नी भी उसकी ही तरह थकी-हारी आई है। वह भी एक इन्सान है, उसे भी एक गिलास पानी या एक कप चाय की इच्छा हो रही होगी।
पत्नी की कमाई पर ऐश करना या हक जताना तो पुरुष का अधिकार है परन्तु उसे उसी के अनुरूप सुख-सुविधा देने के दायित्व से वह भागता फिरता है। यह दोहरा मापदण्ड किसलिए? हमारी समझ से बाहर की बात है।
घर की औरत यदि दफ्तर से आकर किचन का कार्य देख रही है तो उसे भी उसका हाथ बटाना चाहिए, इससे उसके सम्मान को कोई आँच नहीं आती। बच्चों को उनकी पढ़ाई में सहायता करना भी उसका उतना ही दायित्व है। पढ़ी-लिखी पत्नी का क्या लाभ यदि वह यह सब काम न कर सके? ऐसा कहकर पुरुष फिर अपने कर्त्तव्यों से पलायन करना चाहता है।
पति बीमार हो तो चाहता है पत्नी उसकी तिमारदारी करे, उसके आगे-पीछे चक्करघिनी बनी घूमती रहे। परन्तु यदि पत्नी बीमार हो जाए तो वह सोचता है कि वह नाटक कर रही है। उस समय भी पत्नी की ओर से प्राय: पुरुष लापरवाह हो जाते हैं। ऐसे कष्ट के समय वे उसकी सहायता नहीं करते। यदि पत्नी कुछ कह दे तो फिर घर में महाभारत का युद्ध होने से कोई नहीं रोक सकता।
हम सब जानते हैं कि विदेशों में जहाँ काम करने वाले लोग नहीं मिलते। इसलिए वहाँ जाकर दोनों मिल-जुलकर कार्य कर लेते हैं। परन्तु अपने देश में पुरुष घर के कार्य करने में अपनी हेठी समझते हैं। वे बड़े गर्व से कहते हैं कि हमें तो कोई काम करना नहीं आता। देखा जाए तो यह कोई घमण्ड करने वाली बात नहीं, वास्तव में इस विषय पर सीरियस होकर सोचने की बहुत ही आवश्यकता है।
विशेष रूप से विचार्य है कि जब घर आप दोनों का है तो सभी दायित्व भी आप दोनों के साझे हैं। किसी एक पक्ष को दूसरे का शोषण करते हुए उसे मानसिक आघात नहीं देना चाहिए। पुरुष को अपने श्रेष्ठ होने के पूर्वाग्रह को त्यागकर अपने घर-परिवार के लिए पूर्णरूप से समर्पित रहना चाहिए। तभी गृहस्थी की गाड़ी के दोनों पहिए ठीक से चल पाते हैं अन्यथा मनमुटाव बढ़ते-बढ़ते अबोलापन होने लगता है। धीरे-धीरे अलगाव होने की स्थिति बनने लगती है जो किसी भी तरह समाज में स्वीकार्य नहीं हो पाती।
चन्द्र प्रभा सूद
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रविवार, 27 मार्च 2016
गृहस्थी का दायित्व पति-पत्नी दोनों का
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