दूसरों की राह में काँटे बिछाने वालों को जीवन में फूल नहीं मिला करते, यह शाश्वत सत्य है। यथासम्भव यही प्रयास करना चाहिए कि मनुष्य जाने-अनजाने किसी के भी दुख का कारण न बने।
यह संसार एक सुन्दर बगीचे की तरह है। इसमें जैसी खेती की जाती है, फसल भी वैसी ही काटी जाती है। प्यार, मुहोब्बत, भाईचारे, विश्वास आदि के बीज बोने वाले लोगों को प्यार आदि मिलते हैं। सब लोग ऐसे सज्जनों पर आँख मूँदकर विश्वास करते हैं और उनका साथ देने के लिए सदा तैयार रहते हैं।
इसके विपरीत ईर्ष्या, द्वेष आदि की फसल बोने वालों को दुनिया से नफरत ही मिलती है। दूसरों का अहित करने वाले उन लोगों का साथ कोई भी पसन्द नहीं करता, उन्हें छोड़ देने में देर नहीं करते।
दूसरों को दुख देकर खुश होने वाले अपने जीवन में कभी सुख नहीं पा सकते। कभी-न-कभी तो उन लोगों का अंतस् उन्हें झकझोरता ही है कि सारा जीवन उन्होंने षडयन्त्र करते हुए बिता दिया है। अपने जीवन के अन्तिम काल में जब उनका कोई भी सहायक नहीं बनता तब उन्हें इस बात का अहसास होता है तब प्रायश्चित करने से भी कुछ हल नहीं निकल पाता।
जिस प्रकार कमान से निकला तीर वापिस नहीं आता उसी प्रकार उन कुविचार रखने वालों की भी स्थिति होती है। सुख और दुख तो मनुष्य के पास उसके जीवन में कर्मभोग फल होते हैं, जिन्हें भोगे बिना उनसे छुटकारा सम्भव नहीं होता।
मनीषी जन मानते हैं कि दुख और तकलीफ भगवान की बनाई हुई ऐसी प्रयोगशाला है, जहाँ मनुष्य की योग्यता और आत्मविश्वास को परखा जाता है। दुख के समय मनुष्य को अपने आत्मविश्वास को डिगने नहीं देना चाहिए बल्कि दृढ़तापूर्वक कुमार्ग का सहारा लिए बिना कष्टदायक समय को विनयपूर्वक ईश्वर की उपासना करते हुए और स्वाध्याय करते हुए गुजर जाने देना चाहिए जैसे तूफान आने पर पेड़ झुककर अपने ऊपर से उसे गुजर जाने देते हैं। मनुष्य दुखों की अग्नि में तपकर ही कुन्दन बनकर उभरता है।
यह बात हर व्यक्ति को गाँठ बाँध लेनी चाहिए कि दुख भोगने वाला समय बीतने के बाद आगे जाकर मनुष्य सुखी हो जाता है पर दूसरों को दुख देने वाला कभी सुखी नहीं रह सकता। दुखी व्यक्ति के मन से निकलने वाली हाय उसे कभी चैन से नहीं बैठने देती।
इसे भी झुठलाया नहीं जा सकता -
जो तोको काँटा बोए ताको बोइए फूल।
तोको फूल के फूल हैं वा को हैं तिरसूल॥
अर्थात रास्ते में काँटे बोने वालों के लिए अपनी ओर से फूल बोने चाहिए। कवि का कहना है कि तुम्हें इस नेक कार्य के बदले फूल मिलेंगे और उसे काँटे मिलेंगे।
मनीषी इसीलिए समझाते हैं कि 'जैसा करोगे वैसा भरोगे' अथवा 'जैसी करनी वैसी भरनी'। इसके अतिरिक्त भी कहते हैं-
बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से खाए।
इन उक्तियों का यही अर्थ है कि मनुष्य जैसा व्यवहार दूसरों के साथ करता है, उसके बदले में वैसा ही पाता है। बबूल का पेड़ बोकर आम के फल की आशा करना व्यर्थ है।
दूसरों को कष्ट की सौगात देने वालों को रिटर्न गिफ्ट में कष्ट और परेशानियाँ ही मिलेंगी। इसके विपरीत अपने जीवन में दूसरों को खुशियाँ बाँटने वालों को बदले में खुशियाँ ही मिलती हैं।
एक सज्जन व्यक्ति और एक दुर्जन व्यक्ति की वैचारिकता में यही अन्तर होता है। दुर्जनों के चेहरे पर कठोरता का तथा मन में क्रूरता का भाव होता है और सज्जनों के चेहरे व हृदय में सरलता का भाव होता है।
दूसरों को कष्ट की भट्टी में धकेलकर उनके शत्रु बनने के स्थान पर उनके आँसू पौंछने वाले मददगार बनना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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रविवार, 6 मार्च 2016
दूसरों की राह में काँटे बिछाना
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