बड़े होने का अर्थ केवल आयु में या लम्बाई (कद) में बढ़ना नहीं अपितु अपने अंतस् में गुणों का संग्रह करना है। ज्यों-ज्यों मनुष्य की आयु बढ़ती है उसके अनुभवों के खजाने में वृद्धि होती जाती है।महापुरुषों का कथन है कि समाज के मार्गदर्शन के लिए अपने विचारों को सबके साथ साझा करना।
यदि मनुष्य आयु में वृद्ध हो पर उसमें समझदारी न हो तो वह सम्मान के योग्य नहीं होता। उसके अल्प ज्ञान के कारण लोग उसकी अवहेलना करते हैं क्योंकि वह व्यक्ति किसी का दिशानिर्देश नहीं कर सकता। वह स्वयं अपने पर और दूसरों पर बोझ की तरह होता है।
ऐसे ही लोगों के लिए कवि ने कहा है-
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर॥
इस दोहे का अर्थ है कि खजूर के पेड़ की तरह बड़े अर्थात् लंबे होने का कोई लाभ नहीं। ऐसा पेड़ पथिक को छाया नहीं दे सकता और उसका फल भी इतनी दूर यानी ऊँचाई पर लगता है जिसे हाथ बढ़ाकर कोई तोड़ नहीं सकता। इस वृक्ष के फल खाकर कोई अपनी भूख शांत नहीं कर सकता।
पेड़ की उपयोगिता तभी तक है जब तक वह विश्राम करते यात्री को छाया दे। और भूख से परेशान व्यक्ति को फल खिलाकर उसका पेट भरे। खजूर का पेड़ बहुत ज्यादा लंबा होने के कारण ये दोनों ही परोपकार के कार्य नहीं कर सकता। इसलिए इस पेड़ उचित गौरव नहीं मिलता।
इसी प्रकार आयु बढ़ने पर उस व्यक्ति को सम्मान नहीं मिलता जो विद्वत्ता व व्यवहारिक ज्ञान से परे है। जिसके पास बैठकर किसी को सद् परामर्श या ज्ञान न मिले तो वह इस धरा पर बोझ की तरह ही है।
जहाँ तक हो संभव हो हर प्रकार की समृद्धि व योग्यता बटोरते हुए छायादार व फलदार वृक्ष की तरह स्वयं को बनाएं खजूर के पेड़ की तरह नहीं ताकि समाज में आप एक सम्मानित स्थान बना सकें।
चन्द्र प्रभा सूद
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गुरुवार, 27 अप्रैल 2017
बड़ा हुआ तो क्या हुआ
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