सोमवार, 11 जून 2018

कविता

चाहती हूँ मैं तुझी से नाम तेरा जोड़ दूँ
हो चला है खेल ये विश्वास कैसे तोड़ दूँ।

चाल तूने जो चली कैसे अभी मैं मोड़ दूँ
तू मनाले आजमा ले राह तेरी छोड़ दूँ।

भेद पाया आज तेरा चाहती थी होड़ दूँ
पार कैसे जा सकूँ थी यूँ कहानी मोड़ दूँ।

सोचती थी आज मैं भी काल को ही मोड़ दूँ
हो नहीं पाया तभी तेरे लिए ही छोड़ दूँ।

हो सके तो चार धामों के लिए ही जोड़ दूँ
काश जाने आह कोई या दिलों को तोड़ दूँ।
चन्द्र प्रभा सूद
Email : cprabas59@gmail.com
Blog : http//prabhavmanthan.blogpost.com/2015/5blogpost_29html
Twitter : http//tco/86whejp

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें