कहीं ये सुविचार पड़े थे,उनसे प्रेरित होकर लेख लिखने का मन बनाया। किसी भी वस्तु का मूल्य कभी मायने नहीं रखता बल्कि उसकी उपयोगिता पर निर्भर करता है। उस वस्तु विशेष का उपयोग किस प्रकार और कहाँ हो रहा है? स्त्रियाँ पैरों में जो पायल और पैर की अँगुलियों में बिछुए पहनती हैं वे माथे पर लगाई जाने वाली बिन्दी से कहीं अधिक मँहगे होते हैं। परन्तु बिन्दी माथे पर ही सजती है और पायल व बिछुए पैरों में। यहाँ मूल्य का कोई महत्त्व नहीं। पायल व बिछुए माथे पर नहीं सजाए जा सकते और बिन्दी पैरों की शोभा कदापि नहीं बन सकती। यदि कोई स्त्री ऐसा करेगी तो मूर्ख कहलाएगी।
सन्मार्ग पर प्रायः लोग नहीं जाना चाहते क्योंकि यह मार्ग कठिन और लम्बा होता है। पर कुमार्ग पर चलना सबको भाता है क्योंकि यह मार्ग सदैव आकर्षक और सरल दिखाई देता है। इसलिए लोग इस मार्ग का चयन कर लेते हैं, चाहे बाद में इसके लिए पछताना ही क्यों न पड़े। यह इन्सानी कमजोरी ही तो है जो उसे सुविधपूर्वक जीने के लिए विवश करती रहती है। शायद इसीलिये दारू बेचने वाले को कहीं जाना नहीं पड़ता पर दूध बेचने वाले को घर-घर जाना पड़ता है। दूघ वाले से सभी पूछते हैं कि दूध में पानी तो नहीं डाला? परन्तु शराब पीने वाले अपने हाथों से से उसमें पानी को मिलाकर पीते है।
पुस्तकालय में कितनी ही धार्मिक पुस्तकें पड़ी रहती हैं। उनका आपस में कभी झगड़ा नहीं होता परन्तु इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि जो लोग उन ग्रन्थों का नाम लेकर विवाद खड़ा करते हैं उन्होंने शायद ही उन ग्रन्थों को पढ़ा हो। इसीलिए कहते हैं-
'अधजल गगरी छलकत जाए।'
यानी अल्पज्ञान बहुत खतरनाक होता है। इसी प्रकार ही मन्दिर-मस्जिद आदि सभी धर्मस्थल भी बहुत विचित्र स्थान होते हैं, यहाँ गरीब लोग फटे-पुराने कपड़े पहने बाहर खड़े होकर भिक्षा माँगते हैं और लोग उन्हें हिकारत से देखते हुए दुत्कार देते हैं। अमीर आदमी बढ़िया-सूट और सुन्दर अलंकरण पहने अपने धन का प्रदर्शन करते हुए मन्दिर के अन्दर भीख माँगते हैं। जिस मालिक ने इस सृष्टि को भरपूर दिया है, उसी परमात्मा को रिश्वत देने का दुस्साहस भी वे लोग करते हैं।
अब मित्र की बात भी करते हैं। कड़वा ज्ञान देने वाला ही सच्चा मित्र होता है, मीठी बात करने वाले तो चापलूस होते है। जो मित्र अपने मित्र को गलत रास्ते पर जाने से रोकेगा तो वह कड़वा बोलने वाला ही होगा। वही मनुष्य का सच्चा हितैषी होता है। जो मित्र की हाँ-में-हाँ मिलते हुए उसे कुमार्ग पर जाने से न रोके, वह मित्र नहीं शत्रु होता है। यहाँ उदाहरण लेते हैं। सब्जी में अधिक नमक डाल दिया जाए तो वह कड़वी हो जाती और खाने योग्य नहीं रहती। अधिक मिठाई खाने पर बहुत स्वाद आता है पर वह स्वास्थ्य को हानि पहुँचाती है। इसीलिए शायद नामक में कभी कीड़े नहीं पड़ते परन्तु मिठाई बहुत जल्दी खराब हो जाती है। एक मीठा सत्य यह भी है कि जिन्दगी बहुत ही अच्छी है। यदि बुरी होती तो जीवन के समाप्त होने पर अपने परिजनों को रुलाकर कभी नहीं जाती।
मानव का स्वभाव बहुत विचित्र है, उसे समझना कठिन है। एक तरफ वह लाश को छूता है तो स्नान करता है, दूसरी और बेजुबान जीवों को मारकर खा जाता है। ऐसा करते हुए उसे घिन्न नहीं आती। बहुत खुश होकर उन्हें खाता है और अपनी शेखी बघारता है।
मनुष्य के भाग्य में जो होता है, वह किसी भी प्रकार उसे प्राप्त हो जाता है। परन्तु जो उसके भाग्य का नहीं होता, वह उसके पास आकर भी चला जाता है। मनुष्य को यह जीवन बहुत जन्मों के पुण्यकर्मों के पश्चात मिलता है इसे व्यर्थ में नहीं गँवाना चाहिए। जिसका भी जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है। इसलिए ईश्वर की अर्चना करते रहना चाहिए। अन्यथा इन्सान इस दुनिया में रोते-रोते हुए खाली हाथ आता है और उसी प्रकार चला जाता है। अपने आने को सार्थक बनाने का प्रयास करना चाहिए जिससे दुनिया हमारे शुभकर्मों के कारण रोए पर हम हँसते हुए उससे से विदा ले सके।
चन्द्र प्रभा सूद
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मंगलवार, 26 जून 2018
सुविचार
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