किसी देश का केन्द्र उसकी राजधानी होता है। उसी प्रकार हमारे शरीर की धुरी या केन्द्र बिन्दु नाभि होती है। प्रत्येक देश अपनी राजधानी को सजा-सँवारकर रखता है। उसी तरह हमें भी अपनी नाभि का ध्यान पूरी तरह से रखना चाहिए। देश-विदेश के मुख्य अतिथिगण वहाँ आते हैं। उसे देखकर उस देश की माली हालत की जानकारी होती है। वहीं पर अन्य देशों के दूतावास भी होते हैं। इसी प्रकार हमारी नाभि हमारे शरीर की रक्तवाहिनियों से जुड़ी रहती है। यदि मनुष्य की नाभि में विकार आता है तो सारा शरीर उससे प्रभावित हो जाता है। उस समय मनुष्य को कई परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
मनुष्य को यह ईश्वर की ओर से एक बहुत अद्भुत देन है। आजकल लोग इसके विषय में सोचते ही नहीं हैं। उन्हें ज्ञात ही नहीं है कि इसकी रक्षा करके हम अपनी रक्षा करते हैं। हमारे बुजुर्ग इसकी सार सम्हाल किया करते थे। प्रतिदिन इस पर देसी घी या तेल लगाया करते थे। वे ऐसा कहा करते थे कि मनुष्य की नाभि यदि ठीक रहेगी तो बहुत-सी बीमारियों से मनुष्य बच सकता है। घी या तेल लगाने से बहुत सारी शारीरिक दुर्बलताओं का उपाय हो सकता है।
नाभी में तेल डालने का भी एक कारण होता है। कहते हैं कि हमारी नाभी को ज्ञात रहता है कि हमारी कौन-सी रक्तवाहिनी सूख रही है अथवा उसकी कार्यक्षमता घट रही है। इसलिए वह उसी धमनी में तेल को प्रवाहित करती है जिसमें विकार आया होता है। इस प्रकार पोषण मिलने से वह वाहिनी अपना कार्य पुनः ठीक से करने लगती है।
अपने अनुभवजन्य बात बताती हूँ कि जब मेरा बेटा छोटा था और उसके पेट में दर्द होता था तो मेरी दादी जी कहती थीं कि इसकी नाभि में हींग और पानी या तेल का मिश्रण लगा दीजिए। इससे छोटे बच्चे के पेट को कष्ट दे रही वायु या गैस निकल जाती है और बच्चा स्वस्थ हो जाता है।
नाभि बेली बटन के नाम से भी जानी जाती है। चिकित्सकीय भाषा में अम्बिलीकस के रूप में जानी जाती है। यह पेट पर एक गहरे निशान की तरह होती है। सभी स्तनपायी जीवों में नाभि होती है। मानव में यह काफी स्पष्ट होती है। इसके साथ 72000 से भी अधिक रक्त धमनियाँ जुड़ी होती हैं। हम सब जानते हैं कि माता के गर्भ में शिशु की उत्पत्ति उसकी नाभि के पीछे होती है। गर्भधारण के नौ महीनों के पश्चात अर्थात 270 दिन बाद एक सम्पूर्ण बाल स्वरूप बनता है। नवजात शिशु से गर्भनाल को अलग करने के कारण बनती है। बच्चे को माता के साथ जुडी हुई नाड़ी से ही पोषण मिलता है। इस नाड़ी को बच्चे के जन्म के पश्चात काट दिया जाता है। एक विशेष बात और है कि मनुष्य की मृत्यु के तीन घण्टे तक उसकी नाभि गर्म रहती है।
यदि किसी की नाभि या धरण खिसक जाती है तो पेट फूलना, दस्त, मरोड़ होना आदि की समस्या रहती है। आयुर्वेदिक विधि से किया गया इसका उपचार सफल होता है। किसी जानकार व्यक्ति से नाभि को साध दिया जाता है तो समस्या से मुक्ति मिल जाती है।
कुछ परेशानियों का इलाज नाभि के माध्यम से हो सकता है। इन्हें कहीं पढ़ा था, आपके साथ साझा कर रही हूँ। आँखें जब शुष्क हो जाती हैं, नजर कमजोर हो जाती है, चमकदार त्वचा और बालों के लिये सोने से पहले तीन से सात बूँदें शुद्ध घी या नारियल के तेल को नाभी में डालनी चाहिए और नाभि के आसपास डेढ ईंच की गोलाई में फैला देना चाहिए।
घुटने में दर्द होने पर सोने से पहले तीन से सात बूँद इरंडी का तेल नाभी में डालकर उसके आसपास डेढ ईंच में फैला देन चाहिए।
शरीर में कम्पन तथा जोड़ों में दर्द और शुष्क त्वचा के लिए रात को सोने से पहले तीन से सात बूँद राई या सरसों के तेल की नाभि में डालकर उसके चारों ओर डेढ ईंच में फैला देना चाहिए।
मुँह और गाल पर पिम्पल होने पर नीम का तेल तीन से सात बूँद नाभि में डालकर उसके चारों ओर डेढ ईंच में फैला देना चाहिए।
नाभियाँ वास्तव में अलग-अलग लोगों में माप, आकार, गहराई और स्वरूप के मामले में काफी भिन्न होती है। नाभि केवल निशान होती है और इसे किसी भी तरह से आनुवंशिकी द्वारा परिभाषित नहीं किया जाता है। एक जैसे दिखने वाले जुड़वाँ लोगों के बीच अन्य किसी पहचान चिह्न के अभाव में पहचान करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सकता है। नाभि का समुद्रशास्त्र में भी बड़ा महत्व बताया गया है। कहा जाता है कि जो बातें व्यक्ति की आँखों से व्यवहार से और बातचीत से नहीं जानी जा सकतीं, उन्हें नाभि को देखकर जाना जा सकता हैं।
आजकल नाभि दिखाने का फैशन हो गया है। उसके लिए नाभि के ऊपर मोती लगाया जाता है या उसके चारों ओर चमकने वाला पदार्थ लगाया जाता है। खैर, नाभि शरीर का महत्त्वपूर्ण अंग है, इसकी सुरक्षा और सफाई का ध्यान पूरी तरह रखना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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शनिवार, 16 जून 2018
नाभि शरीर का केन्द्र
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