गुरुवार, 14 जून 2018

फूलों की तरह मनुष्य

आज लीक से हटकर कुछ ऐसी चर्चा विशेष करते हैं जिसे अपने दैनिक जीवन में हम सभी देखते, सुनते और अनुभव करते हैं। फिर भी इसके विषय में हम न तो चर्चा करते हैं और न ही ध्यान देते हैं। हर वस्तु का अपना मूल्य होता है। फूलों को ही लेते हैं जिनकी आवश्यकता मनुष्य को हर मौके-बेमौके होती है। फूल वही होते हैं जिन्हें हम भगवान की मूर्ति पर चढ़ाते हैं, दूल्हे-दुल्हन के गले में डालते हैं, आशीर्वाद देते समय उनकी वर्षा करते हैं, किसी के सम्मान में उसके गले में डालते हैं और रास्ते में बिछाते हैं। हर शुभकार्य करते समय उनसे सुन्दर सजावट करते हैं। उनसे अपना श्रृंगार करते हैं। सबसे अधिक आश्चर्य की बात यह है कि एक मुर्दे पर भी उन्हीं फूलों को चढ़ाते हैं।
           कहने का तात्पर्य यह है कि फूल वही हैं परन्तु उनका उपयोग विविध रूपों में किया जाता है। कभी उन्हें हम सिर पर बिठा देते हैं तो कभी उन्हें पैरों से कुचल देते है। ये वही फूल हैं जिनकी सुन्दरता के विषय में प्राचीनकाल से आज तक रचनाकारों ने खूब लिखा है। अपनी सुन्दरता और सुगन्ध के कारण ये फूल हर किसी को अपनी और आकर्षित कर लेते हैं। उन्हें निहारते हुए उनकी रचना करने वाले की सराहना किए बिना मनुष्य नहीं रह सकता। इन सब उपयोगों के साथ-साथ ये फूल शहद बनाने के काम भी आते हैं। अनेक औषधियों में इनका प्रयोग रोगियों को स्वस्थ करने के लिए किया जाता है।
           फूलों की तरह मनुष्य भी अपनी आभा और खुशबू चारों और बिखेर सकते हैं यदि वे चाहें तो। अब आप कहेंगे कि कैसी बात कर रही हो? कौन नहीं चाहता कि उसका यश चारों दिशाओं में फैले? कौन दुनिया में आगे नहीं बढ़ना चाहता?
              हर व्यक्ति चाहता है कि समाज में उसका एक विशेष स्थान हो। सभी लोग उसे जानें और पहचानें। वह सबके लिए आदर्श बन जाए। लोग उसे अपना पथ प्रदर्शक मानकर उसकी बात को सुनें, समझें और उनका अनुसरण करें। बहुत अच्छी कल्पना है यह। इसके लिए प्रयास करना भी तो आवश्यक है। मनुष्य यदि समय रहते कठोर परिश्रम करके विद्यार्जन करता है और स्वयं को योग्यता की कसौटी पर खरा उतारने का यत्न करता है, तभी वह अपने मनचाहे लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।
         यही वे मनुष्य हैं जो समाज में सबके पूजनीय बन जाते हैं। इन्हें सर्वत्र सम्मान मिलता हैं। फूलों की तरह वे अपनी सुगन्ध चारों ओर बिखेरते हैं, समाज ऐसे ही महानुभावों को सदा अपने सिर पर विराजमान करता रहता है। इन्हें सम्मान देने के लिए इनकी राहों पर फूलों को बिछाया और सजाया जाता है। उन पर फूलों की वर्षा भी की जाती है। ये लोग समाज के आभूषण के समान होते हैं। इन्हें सम्हालकर रखना आवश्यक होता है।
           इनके विपरीत वे लोग जो अपना व अपने पारिवारिक दायित्वों को पूर्ण नहीं कर सकते, जिन्दगी की बाजी हारते हुए ये पिछड़े हुए कहलाते हैं। इनकी ओर से सभी विमुख हो जाते हैं। इन लोगों का आसपास होना या न होना किसी के लिए महत्वपूर्ण नहीं होता। मृतप्रायः जीवन जीने के लिए विवश ये लोग धीरे-धीरे स्वयं ही अपने में सिमटने लगते हैं। इनके मनों में हीं भावना पनपने लगती है। दूसरे शब्दों में कहें तो ये मुरझाए हुए फूलों के समान होते हैं। कोई नहीं जानता कि समय की आँधी उन्हें किस ओर ले जाएगी?
          मनुष्य को अपने जीवन को इस प्रकार ढालना चाहिए कि वह हर स्थिति में फूलों की तरह मुस्कुराता रहे। सुख-दुख, हानि-लाभ आदि द्वन्द्वों को सहन करता हुआ, बिना पीछे मुड़े, बिना रुके सदा आगे कदम बढ़ाते रहना चाहिए। जो स्थितियाँ उसके वश में नहीं हैं, उन्हें ईश्वर की मर्जी मानकर उस पर छोड़ देना चाहिए। कर्म करना अपना अधिकार है, उसके लिए सतर्क रहना चाहिए। इन्सान घर-बाहर, देश-विदेश आदि में कहीं भी रहे उसकी महक कम नहीं होनी चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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