सबका सहयोग अपेक्षित
मनुष्य को अपना जीवन बाधारहित चलाने के लिए सबका सहयोग अपेक्षित होता है। घर-परिवार में शान्ति बनी रहनी चाहिए यह आवश्यक है। हर मनुष्य हर काम नहीं कर सकता। यदि वह अपनी अकड़ में रहेगा तो बहुत बड़ी समस्या का सामना उसे करना पड़ता है। इसलिए किसी मनुष्य को छोटा या बड़ा समझने की भूल उसे नहीं करनी चाहिए। और न ही किसी कार्य को छोटा समझकर मुॅंह बनाना चाहिए। छोटे-बड़े सभी कार्यों को करने के लिए उसे बहुत से दूसरे लोगों की आवश्यकता होती है।
प्राय: घर में काम करने वालों में आया और कामवाली बाई की प्रत्यक्ष रूप से भूमिका होती है। घर की सफाई, बर्तनों की धुलाई, कपड़ों की धुलाई, घर की झाड़-पौंछ इत्यादि वहीं करती हैं। यदि घर में एक दिन भी ये कार्य न हों तो बस तूफान आ जाता है। ऐसा लगता है कि सारा घर अस्त-व्यस्त हो गया है। घर में हर ओर गन्दगी का साम्राज्य दिखाई देने लगता है। फिर न खाना खाने का मजा आता है और न घर में बैठने में चैन आता है। मन जो है वह अलग से परेशान होने लगता है।
ऐसे समय में बच्चों की मौज हो जाती है क्योंकि प्रायः बाजार से खाना मंगवाकर खा लिया जाता है। अब कामवाली जब घरेलू कार्य करती है तो स्वयं के काम करने की आदत छूट जाती है। हम उन पर पूर्णतया आश्रित हो जाते हैं। जब सारे कार्य स्वयं करने पड़ते हैं तो बुखार चढ़ने लगता है। सारा समय चिड़चिड़ाहट का माहौल बन जाता है। ऐसा लगता है मानो घर का सुख चैन ही छिन गया है। यदि घर से बाहर कहीं जाना हो तो सब कैंसिल कर दिया जाता है।
घर से यदि सफाई कर्मचारी चार दिन तक कचरा लेने न आए तो रसोईघर में और घर में बदबू आने लगती है। यदि किसी लोकेलिटी से कचरा न उठे तो वातावरण में दुर्गन्ध फैल जाती है। बिमारियों के होने का खतरा बढ़ जाता है। इसी तरह यदि घर का सीवर बन्द हो जाए तो हम स्वयं उसे खोल नहीं सकते। उसके लिए सफाई कर्मचारी की सहायता लेनी पड़ती है। उसके बिना वह कदापि खुल नहीं सकता। ऐसा ही हाल दफ्तर आदि का भी हाल होता है।
अब बात करते हैं उनकी जो गाड़ी स्वयं नहीं चलाते। वे लोग ड्राइवर पर निर्भर रहते हैं। यदि वह कभी छुट्टी माँग ले तो वे भड़क जाते हैं। ऐसा करते समय वे भूल जाते हैं कि उस ड्राइवर का भी अपना घर-परिवार है और उसको भी तो किसी समस्या से दो-चार होना पड़ सकता है।
धोबी यदि कुछ दिन कपड़ों को प्रेस न करे तो घर में बिना प्रेस के कपड़ों का बहुत बड़ा ढेर लग जाता है। घर से बाहर जाते समय पहनने के लिए कपड़े नहीं मिलते तो कपड़े स्वयं प्रेस करने पड़ जाते हैं। एक-एक जोड़ी कपड़े बड़ी कठिनाई से प्रेस करने पड़ते हैं। समय के अभाव में यह एक झंझट और बढ़ जाता है।
इसी प्रकार घर में बिजली के कार्य के लिए इलेक्ट्रिशियन, नल या फ्लश आदि के लिए पलम्बर,
लकड़ी का काम करवाने के लिए कारपेंटर, केबल वाला, माली, नाई आदि के न मिल पाने की स्थिति में भी मनुष्य को अनावश्यक रूप से परेशानी होने लगती है। आजकल इन्टरनेट जिसके बिना एक पल भी नहीं चल पाता उसकी रिपेयर के लिए भी काम करने वाले की आवश्यकता पड़ती है।
वैसे जब तक सब ठीक-ठाक चलता रहता है तो बढ़िया अन्यथा हम स्वयं को दुनिया का सबसे दुखी इन्सान समझने लगते हैं। जरा-सी भी परेशानी आने पर हम ईश्वर को दोष देने लगते हैं और उसे कोसते रहते हैं।
अपने गिरेबान में यदि झॉंककर देखें तो हमें स्वयं पर ग्लानि होने लगेगी। बहुत से ऐसे लोग हैं जो अपने पास काम करने वाले नौकर, माली, ड्राइवर आदि को नाम से पुकारने में भी अपनी हेठी समझते हैं। उनके बिना एक कदम भी नहीं चल सकते पर पैसे का ऐसा नशा है जो उन सबको एक इन्सान मानने से भी इन्कार करते हैं जैसे उनका कोई वजूद ही नहीं है। सभी कार्य करने वालों को उनका मानदेय (हक का पैसा) ऐसे देते है जैसे उन पर उपकार कर रहे हों।
कभी उन सब लोगों को उनके नाम से पुकार कर देखिए, उनकी दुख-परेशानियों में उनसे सहानुभूति जताइए, उनके कन्धे पर हाथ रखकर यह दिखाइए कि वे भी आप ही की तरह इन्सान हैं, वे सब आपके मुरीद हो जाएँगे। आपके कष्ट के समय एक ही इशारे पर भागे चले आएँगे। इसके विपरीत अपना काम निकल जाने पर उनके साथ अभद्र व्यवहार करना अथवा उनका मानदेय काटकर पैसे देने से वे दुबारा आने में आनाकानी करते हैं।
इसलिए किसी भी व्यक्ति को उसके व्यवसाय को आधार मानकर उससे घृणा करना छोड़ दीजिए। कोई कितना भी बड़ा क्यों न हो, उसे दूसरे लोगों की आवश्यकता पड़ती ही है। इस सत्य को सदा स्मरण करना चाहिए। ईश्वर की बनाई सृष्टि के जीवों से जो व्यक्ति भेदभाव करता है या नफरत करता है उससे वह बहुत नाराज होता है। जब वह सबको समान दृष्टि से देखता है तो किसी को हक नहीं देता कि वह अन्य जीवों से घृणा करें या उनके साथ अन्याय करे।
चन्द्र प्रभा सूद
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