गुरुवार, 4 दिसंबर 2025

सागर की भॉंति गम्भीर

सागर की भाँति गम्भीर

मनुष्य को सागर की भाँति गम्भीर होना चाहिए। सागर की गम्भीरता की थाह हम मनुष्य नहीं पा सकते। वह अपने गर्भ में न जाने कितने अनमोल रत्नों को छिपाए हुए है जिनके बारे में हमें जानकारी तक नहीं है। जितना ही गहरे हम सागर में पैठते जाते हैं उतना ही इसकी विशालता का ज्ञान होता है। सागर की भॉंति मनुष्य को भी अपने अन्तस में रखे सभी रहस्यों को गुप्त रखना चाहिए, उन्हें आत्मसात करना चाहिए। किसी भी परिस्थिति में दूसरों के समक्ष उनको उद्घाटित नहीं करना चाहिए। इसी से ही उसकी गम्भीरता एवं महानता का ज्ञान होता है।
        सागर की सबसे बड़ी महानता यह है कि इसने हमें एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने का मार्ग देता है। मनुष्यों और सामान से लदे हुए भारी-भरकम समुद्री जहाजों को यह आवागमन से कभी नहीं रोकता। इस कारण लोगों को आने-जाने की सुविधा हो जाती है। इसकी महानता के कारण हम अनेकानेक वस्तुओं का सुविधापूर्वक आयात-निर्यात करके उनका उपभोग कर पाते हैं। यही कारण है कि विश्व के किसी भी कोने में बने हुए सामानों का हम उपयोग कर पाते हैं।
          अनेक नदियों को अपने अन्तस में समाकर सागर उन्हें एकाकार कर लेता है। इसका जल विभिन्न आकार-प्रकार के इतने अनेक खूबसूरत जलचरों की आश्रय स्थली है जिनके विषय में हमें कोई जानकारी नहीं है। उनकी खोज करने के लिए बारबार वैज्ञानिक आकर इसका सीना चीरते रहते हैं। अनेक खजानों को समेटने वाला यह सागर सदा ही सबके लिए आकर्षण का केन्द्र रहा है। इसकी लहरों का उतार-चढ़ाव किसी चमत्कार से कम नहीं है। लोग बहुत दूर-दूर से इसकी लहरों का आनन्द उठाने आते हैं।
          महापुरुषों की यही पहचान है कि वे अपने अन्तस में न जाने किन-किन दीन-दुखियों की गाथाओं को रहस्य बनाकर, अपने मन के किसी कोने में छिपा देते हैं। सम्पर्क में आने वाले लोगों की अच्छाइयों और बुराइयों को केवल अपने तक सीमित रखते हैं। उन्हें सबके समक्ष प्रसारित करके उन लोगों का अपमान‌ नहीं करते। सागर की लहरों की तरह हर प्रकार के उतार-चढ़ावों को ये लोग स्थिति से झेल लेते हैं पर उसकी आँच किसी पर नहीं आने देते। 
          अपने साथ अन्याय करने वालों को सागर की तरह विशाल हृदय बनकर क्षमा कर देते हैं। किसी से बदला लेने के बारे में ये महापुरुष विचार तक नहीं करते हैं। ऐसे महानुभावों की संगति सदा करनी चाहिए।
          पौराणिक कथा के अनुसार देवताओं और राक्षसों ने समुद्र मन्थन किया था। मन्थन से मिलने वाले रत्नों का बटवारा तो हो गया परन्तु हलाहल विष को बाँटने के लिए कोई भी देवता या असुर तैयार नहीं हुए। तब भगवान शंकर ने उस विष का पान सृष्टि की भलाई के लिए किया था। यही कार्य सज्जन भी करते हैं। वे सदा दूसरों को सद् गुणों और खुशियों को लुटाने रहते हैं। लोगों के व्यंग्य बाणों को ये लोग भोले बाबा की तरह हंसते हुए सह जाते हैं।
           रामायण में एक प्रसंग आता है कि भगवान राम को रावण से युद्ध करने के लिए लंका पर चढ़ाई करनी थी। लंका में जाने के लिए समुद्र को पार करना आवश्यक था। उन्होंने सागर से मार्ग देने की प्रार्थना की थी। हम लोगों की तरह अनावश्यक अधिकार जमाने का प्रयास नहीं किया था। यह उनकी सज्जनता थी और महानता थी।
        भगवान भोलेनाथ के विषय में प्रचलित है कि वे इतने भोले हैं जो हर भक्त की सच्चे मन से की साधना से प्रसन्न होकर उसे मनचाहा वरदान दे देते हैं। परन्तु यदि वे किसी कारण से कुपित हो जाएँ तो फिर उनके ताण्डव से सृष्टि में कोई भी नहीं बच सकता। इसीलिए लोग उन्हें प्रसन्न करने का भरसक प्रयत्न करते हैं।
            सागर हमें सब सुख देता है परन्तु फिर भी हम मनुष्य उसे दूषित करने से संकोच नहीं करते। वहॉं कचरा डालने से बाज नहीं आते। इस कारण उसका जल स्तर बढ़ जाता है। उसका परिणाम उसके उफान यानी 'ज्वार भाटा' के रूप में प्रकट होता है जो किसी भी समय इस पृथ्वी पर भयंकर विनाश कर सकता है। ऐसी चेतावनी वैज्ञानिक समय-समय पर देते रहते हैं। परन्तु हम लोग उनकी चेतावनियों को अनसुना करके अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का कार्य करते हैं।
          सागर की तरह घोर गम्भीर सज्जन लोग हमारे जीवन के मार्गदर्शक व प्रेरक होते हैं। वे समाज की धरोहर होते हैं। अत: उनका सम्मान करने की आदत हम सबको होनी चाहिए। ऐसे महापुरुष संसार में बहुत विरले होते हैं। उनको खोने के विषय में सोचना भी नहीं चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद 

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