बुधवार, 3 दिसंबर 2025

माता-पिता का मान बेटियॉं

माता-पिता का मान बेटियाँ

बेटियाँ अपने माता-पिता का मान होती हैं। अपने मायके की शान होती हैं। अपने भाइयों की जान होती हैं। उनकी भी भाइयों में जान बसती है। उन्हें घर-परिवार में बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान दिया जाता है। उनकी राय को सदा ही अहमियत दी जाती हैं। उनकी चहचहाहट से सारा घर गुलजार रहता है। उनके कहीं चले जाने पर मानो घर में उदासी का साम्राज्य फैला जाता है। उनकी उपस्थिति उनके घर को सदा जीवन्त बनाए रखती है।
              सभी माता-पिता अपनी प्यारी बेटी को खूब पढ़ा-लिखाकर अपने पैरों पर खड़ा हुआ देखना चाहते हैं। आज बेटियॉं अपने माता-पिता की इच्छा का सम्मान करते हुए जी-जान से प्रयत्न कर रही हैं। अपने माता-पिता का नाम रौशन करती हुईं वे उच्च पदों पर आसीन हैं।
           समयानुसार जब बेटी की शादी हो जाती है तो उसका दायित्व बहुत बढ़ जाता है। तब उसे मायके के साथ-साथ अपने ससुराल की भी चिन्ता करनी चाहिए। उसे केवल मायके के बारे में सोचते हुए अपने ससुराल के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को नहीं भूलना चाहिए। मायके में हर दूसरे दिन जाना या अपनी ससुराल की छोटी-मोटी नोकझोंक को नमक-मिर्च लगाकर माता-पिता की सहानुभूति बटोरने से बचना चाहिए। इससे सम्बन्धों में दरार आने की सम्भावना बढ़ जाती है जिससे दोनों घरों में अनावश्यक तनाव बढ़ने लगता है और मनमुटाव होने लगता है।
             पढ़ी-लिखी समझदार लड़कियों से समाज समझदारी की उम्मीद रखता है। जब तक पानी सिर से ऊपर होने की नौबत न आए तब तक सदा ही अपने परिवार में मिलजुलकर सामंजस्य बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए।
          भाई की शादी के बाद तो बेटी को अधिक सावधानी बरतनी चाहिए। जहाँ तक सम्भव हो सके मायके को अपने भाई और भाभी के सुपुर्द कर देना चाहिए। वे अपने घर को कैसे भी रखते हैं, उसमें दखलअंदाजी नहीं करनी चाहिए। भाभी और ननद के सम्बन्धों की बुनियाद आपसी प्रेम व विश्वास पर टिकी होती है क्योंकि वे रक्त सम्बन्ध नहीं होते। इस रिश्ते में कटुता न आने पाए, इसलिए सदा सावधान रहना चाहिए।
            हर व्यक्ति सुरुचिपूर्ण तरीके से, अपनी इच्छा से ही अपने घर की साज-सज्जा करना चाहता है। उसमें जाकर व्यर्थ ही मीनमेख निकालना सर्वथा अनुचित होता है। ऐसा करने से उनके मन में आपके प्रति रोष उत्पन्न होने लगता है। उन्हें ऐसा लगता है कि उनके घर में आप अनावश्यक रूप से हस्ताक्षेप कर रही हैं। यह बेरुखी वाला व्यवहार धीरे-धीरे बढ़ता हुआ विनाश के कगार पर पहुँच जाता है। 
              अपने माता-पिता की चिन्ता हर बेटी को निस्सन्देह रहती है। भाई-भाभी को यह कहकर अपमानित करना कि वे उनका ध्यान नहीं रखते अनुचित है। वे उनके भी माता-पिता हैं। इसलिए वे यथासम्भव उनका सम्मान करते हैं तथा ध्यान रखते ही हैं।
          सबसे बड़ी समस्या तब आड़े आती है जब बेटी भाई-भाभी के विरुद्ध अपने माता-पिता के कान भरती है और वे भी उसकी बातों में आकर अपने बेटे-बहू को दोष देने लगते हैं। मैं सबसे प्रार्थना करूँगी कि ऐसी स्थितियों से यथासम्भव बचने का यत्न करना चाहिए। सभी रिश्तों को यथोचित बनाए रखना चाहिए। बेटी के अथवा किसी रिश्तेदार के या पड़ोसी के बरगलाने पर अपने घर की शान्ति कभी भी भंग नहीं करनी चाहिए। रहना तो अपने घर में ही है तो फिर ऐसे वैमनस्य से बचना चाहिए।
           यदि अपने घर में कलह का वातावरण बनाकर रखेंगे तो फिर आप अपना ठिकाना कहॉं बनाऍंगे? ऐसी अवस्था में यदि बेटी चाहे भी तो माता-पिता को अपने साथ नहीं रख पाती। दूसरी और न ही वे अपने बेटे का घर छोड़कर बेटी के पास रहना चाहते हैं। इसका कारण हमारा है पारिवारिक व सामाजिक ढाँचा इस प्रकार का है कि बेटे के पास ही माता-पिता रहना चाहते हैं। आजकल समय और परिस्थितियों में कुछ बदलाव आया है कि जहॉं इकलौती बेटी होती है वहॉं माता-पिता उसके ही साथ रहते हैं।
              बेटियों को एक बात का और ध्यान रखना चाहिए कि मायके में अनावश्यक दखल देते हुए अपने ससुराल की ओर से लापरवाह नहीं होना चाहिए। कहीं ऐसी  स्थिति न हो जाए -
          दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम।
अर्थात् बेटी का मायके से सम्बन्ध बिगड़ जाए और ससुराल में भी सम्मान कम हो जाए।
             यह बात हमेशा ही स्मृति में रखनी चाहिए कि माता-पिता का साथ सबको सीमित समय तक ही मिलता है। परन्तु बहन को अपने भाई और भाभी के साथ आयु पर्यन्त निभाना होता है। अतः अपनी ओर से ऐसा व्यवहार करना चाहिए जिससे घर-परिवार में सबका सम्मान बना रहे और जग हंसाई भी न हो। 
चन्द्र प्रभा सूद 

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