बुधवार, 10 दिसंबर 2025

दूसरों का मूल्यांकन

दूसरों का मूल्यांकन

दूसरों का मूल्यांकन करने का अर्थ होता है किसी व्यक्ति विशेष के विषय में पूर्ण जानकारी जुटाए बिना अपनी धारणाओं, अनुभवों‌ और पूर्वाग्रहों के आधार पर हम अपनी राय बना लेते हैं। उसी के अनुरूप हम किसी निष्कर्ष पर पहुॅंच जाते हैं और कोई निर्णय ले लेते हैं। हमें अपने ऊपर इतना विश्वास होता है कि हम किसी दूसरे की व्यक्ति की योग्यता, उसके चरित्र अथवा उसकी नियत का आकलन करने लगते हैं। वास्तव में यह एक स्वाभाविक मानसिक प्रक्रिया है। 
          यह सामाजिक परिस्थितियों को समझने में हमारी सहायता करती है। हमारी सोच कभी-कभी नकारात्मक भी हो सकती है। दूसरों का मूल्यांकन करते समय हमें ऐसा प्रतीत होने लगता है कि फलाँ व्यक्ति में तो ऐसी कोई विशेष योग्यता नहीं है, हमें जिसकी चर्चा अवश्य करनी चाहिए। इस सत्य से हम मुॅंह नहीं मोड़ सकते कि संसार में कोई भी व्यक्ति दूसरे को योग्य कहकर उसकी प्रतिष्ठा नहीं करना चाहता।
           अपने घर की ओर नजर डालते हैं, वहाँ आपका बेटा अथवा बेटी इतने योग्य हो सकते हैं कि दफ्तर में उनके अधीन अनेक कर्मचारी हों। आफिस में उनका अनुशासन इतना अधिक हो कि कोई कर्मचारी गलत काम करने का साहस न कर सकता हो। वे स्वयं भी दिन-रात कार्य करते हुए, अपने अधीनस्थों से वैसा ही कार्य करवाते हों जैसा वे चाहते है। उनके विरोधी भी उनका लौहा मानने के लिए विवश हो जाते हों।
          ऐसे योग्य बच्चों के माता-पिता को यही लगता है कि उनके बच्चे बेशक बहुत पढ़-लिख गए हैं और बड़े हो गए हैं परन्तु फिर वे भी अभी नादान हैं, बहुत भोले हैं। उन बेचारों को तो दुनियादारी की बिल्कुल भी समझ नहीं है। अपनी ओर से वे उन्हें सदैव अपनी छत्रछाया में संरक्षित करना चाहते हैं। अपने बच्चों के लिए आयुपर्यन्त ही संवेदनशील बने रहना चाहते हैं।
            प्राय: पति भी अपनी पत्नी के विषय में सोचता है कि उसकी पत्नी तो मूर्ख है उसे दुनियादारी की क्या समझ है? यह भी हो सकता है वह यदि उसकी योग्यता के विषय में सोचने लगे तो उसे स्वयं ही समझ में आ जाए कि उसकी सोच बहुत गलत थी। उसकी पत्नी में तो बहुत से गुण हैं यानी कि वह मल्टी टेलेंटेड औरत है। वह घर और बाहर दोनों ही मोर्चों पर सफल है। जितनी कुशलता व लगन से वह अपने दफ्तर के कार्य निपटाती है उसी ही निष्ठा से घर-गृहस्थी व बच्चों के कामों को भी करती है। अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए अनावश्यक ही नित्य नए बहाने नहीं बनाती।
           प्रायः पत्नियाँ भी अपने पतियों के विषय में इसी प्रकार के नकारात्मक विचार रखती हैं। उन्हें भी ऐसा लगता है उसके पति को कोई समझ नहीं है। न वह घर का कार्य कर पाता है और न बाहर के दायित्वों का निर्वहन कर सकता है। हाँ, घर पर जितना समय रहता है अशान्ति ही फैलाता रहता है। इसलिए दोनों एक-दूसरे के प्रति असहिष्णु हो जाते हैं और हर समय ही अपने साथी को सहन न कर सकने का रोना रोते रहते हैं।
             पति और पत्नी घर में एक-दूसरे को नासमझ मानकर परस्पर दोषारोपण करते रहते हैं। उन दोनों में से कोई भी अपने मन से यह स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होता कि उनका अपना जीवनसाथी किन्हीं विशेष योग्यताओं वाला हो सकता है। जिसके कारण उसका सम्मान उसके अधीनस्थ करते हैं। उसके सम्पर्क में आने वाले उसके काम करने के तरीकों से बहुत प्रभावित हो जाते हैं। अपने फील्ड में लोग उसकी कार्यशैली और उसकी पर्सनेलिटी से ईर्ष्या करने के लिए विवश हो जाते हैं। 
            मित्र, बन्धु-बान्धव,भाई-बहन आदि भी अपने सम्बन्धियों के प्रति सकारात्मक विचार नहीं रखते। उनकी कल्पना से परे की बात होती है कि उनका प्रियजन इतना महत्त्वपूर्ण व्यक्ति है जो बड़े-से-बड़े चैलेंज जीतकर आज इतना प्रतिष्ठित हो गया है। उससे मिलने के लिए भी समय लेना पड़ता है और प्रतीक्षा करनी होती है। उन्हें यह यह सब उसका अहं प्रतीत होता है।
             हमें किसी की भी वेशभूषा अथवा रहन-सहन से उसके प्रति कोई पूर्वाग्रह नहीं पालना चाहिए। उसका मूल्यांकन करते समय सचेत रहना चाहिए। किसी को भी कमतर नहीं समझना चाहिए। दूसरे का मूल्यांकन करते समय उसकी योग्यता और पद आदि को ध्यान में रखना बहुत ही आवश्यक है।
चन्द्र प्रभा सूद 

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