मनुष्य को अपनी खुशियों और धन को सदा सम्हालकर रखना चाहिए। खुशियों के पल बहुत काम समय के लिए जीवन में आते हैं। इन्हें सहेजकर रखना चाहिए, किसी भी मूल्य पर अपने हाथ से इन्हें गँवाना नहीं चाहिए। मनुष्य को अपने व्यवहार और अपनी सोच पर नियन्त्रण रखना चाहिए। यदि कोई उसकी सत्ता को न मानकर उसे चुनौती देता है तो तब भी उसे अपना आपा नहीं खोना चाहिए।
मनुष्य को सदा प्रसन्न रहना चाहिए और अपनी जिन्दगी से निराश नहीं होना चाहिए। जीवन में सफल व्यक्ति कहलाने के लिए पैसों की आवश्यकता होती है। परन्तु पैसे को सदा अपनी जेब में रखना चाहिए। उसे अपने मन-मस्तिष्क पर सवार नहीं होने देना चाहिए।
यदि मनुष्य इस धन का उपयोग घर-परिवार की आवश्यकताओं को पूर्ण करने और दान आदि कार्यों में व्यय करता है तो उसका सदुपयोग होता है। इसके विपरीत यदि यह धन सिर पर चढ़कर बोलने लगे तो इन्सान का दिमाग खराब होने लगता है। वह अपने बराबर किसी दूसरे को नहीं समझता।
उसके बच्चे भी उसकी देखादेखी घमण्डी बनने लगते हैं जो किसी भी तरह उचित नहीं कहा जा सकता। वह हर किसी को देख लेने की धमकी देने लगता है। यहाँ तक कि स्वयं को भी खुदा समझने लगता है। ईश्वर की सत्ता को भी चुनौती देने से परहेज नहीं करता।
यहाँ एक बात बताना चाहती हूँ कि मनुष्य अपनी कमाई से गरीब नही होता बल्कि अपनी जरूरत के अनुसार गरीब होता है। जब जब मनुष्य अपनी कामनाओं को असीम बनाता जाता है तब तक वह चैन से नहीं बैठ सकता। यही उसकी परेशानी का कारण बन जाता है।
इसी भाव को हम दूसरे शब्दों में इस प्रकार कह सकते हैं कि यदि इन्सान अपनी कमाई से अधिक पैर फैलता है तो सदा ही उसे दुःख-तकलीफों का सामना करता है।
यानि वह कर्जों के बोझ तले दबा रह सकता है। तब उसकी परेशानियों का चक्र घूमने लगता है और उसका जीवन नरक बन जाता है।
इस सत्य को कभी नहीं भूलना चाहिए कि जब तक इन्सान के पास पैसा है तभी तक यह दुनिया पूछती है और सम्मान देती है। अन्यथा मिट्टी के मोल भी नहीं पूछती। इसलिए धन-दौलत पर अभिमान करना व्यर्थ है। केवल उसे साधन मानना उचित है, उसे साध्य मन लेने से भटकाव होने लगता है। फिर जीवन में स्थिरता नहीं आ सकती।
जीवन की दूसरी सच्चाई यह है कि माया महाठगिनी और बहुत चंचल है। इस पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए। यह पलक झपकते ही, देखते-ही-देखते राजा को रंक बनाकर रुला देती है और रंक को राजा बनाकर उसे मालामाल कर देती है।
जब लोग हमारी परेशानी होने पर बुराई करते हैं तो निराश नहीं होना चाहिए। पीठ पीछे बुराई करने वालों की कमी नहीं होती। यह मानना चाहिए की वे कायर हैं, उनमें सामने से आकर कुछ बोलने की सामर्थ्य नहीं है। अतः यह बात गाँठ बाँध लेनी चाहिए कि उन दोगले लोगों पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए।
दुनिया की परवाह तभी तक करनी चाहिए तब तक वे आपके और आपके सपनों के बीच में न आएँ। जब तक मनुष्य में सामर्थ्य है उसे सफलता प्राप्ति के सपनों को साकार कर लेना चाहिए।
हर समस्या का समाधान हम दृढ़ प्रतिज्ञ बनकर या डटकर कर तभी कर सकते हैं यदि उसमें हमारी भी सक्रिय भागीदारी हो। उससे मुँह मोड़कर या पीठ दिखाकर भाग जाने से किसी भी समस्या का निदान का पाना असम्भव होता है।
दुनिया के सब अनुराग-विराग की परवाह छोड़कर प्रसन्न रहने का अभ्यास कीजिए। अपनी इच्छाओं को समेटते हुए अपनी मेहनत की कमाई में सन्तुष्ट रहने का यत्न कीजिए। यकीन मानिए ईश्वर की कृपा से सब शुभ होगा।
चन्द्र प्रभा सूद
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मंगलवार, 2 अगस्त 2016
खुशियाँ और धन सम्हालें
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