गुणग्राही होना मनुष्य का स्वभाव होता है। आपने अन्तस में सद् गुणों का समावेश करते हुए वह गुणों का पारखी बन जाता है। उसे लोग हंस की तरह नीरक्षीर विवेकी मानने लगते हैं। विश्व के अन्य जीव-जन्तुओं से यही गुण उसकी एक अलग पहचान बनाते हैं।
रामकृष्ण परमहंस ने एक बार कहा था कि मक्खियाँ दो प्रकार की होती हैं। एक शहद की मक्खियाँ होती हैं जो शहद के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं खाती। दूसरी साधारण मक्खियाँ होती हैं जो शहद पर भी बैठती हैं और यदि सड़ता हुआ घाव दिखाई दे जाए तो तुरन्त शहद को छोड़कर उस पर भी जाकर बैठ जाती हैं।
मक्खी का यह उदाहरण मनुष्यों पर भी बिल्कुल सटीक बैठता है। शहद वाली मक्खी की तरह गुणग्राही लोग सदा शहद यानी अच्छाई के ही पक्षधर होते हैं। ये लोग हर स्थान पर कुछ-न-कुछ शुभ तलाश ही लेते हैं।
ऐसे महानुभाव गन्दगी में से अपने मतलब की अच्छाई को खोज निकालते हैं। कितनी भी गन्दगी क्यों न हो उसमें से जैसे हीरे को निकाल लेना समझदारी कही जाती है उसी प्रकार ये पारखी लोग अपना हित कहीं भी रहते हुए साध लेते हैं। इसके लिए उन लोगों को किसी तरह का कोई भी अतिरिक्त प्रयास नहीं करना पड़ता बल्कि यह उनके स्वभाव की विशेषता और दृढ़ता का परिचायक ही कहलाता है।
ऐसे महानुभाव दुर्जनों के संग नहीं करते, इन्हें केवल सज्जनों की संगति ही रास आती है। सद् ग्रन्थों का परायण और स्वाध्याय करते हैं। बस उसी में उनका मन रमता है। इसीलिए अपने जीवन में भौतिक साधनों के स्थान पर सदा आत्मोन्नति को प्रश्रय देते हैं।
दिन-रात उसी के बारे में सोचते रहते हैं और उसी मस्ती में डूब जाते हैं। ये सन्त प्रकृति के लोग दूसरों के लिए उदाहरण बन जाते हैं और दिशादर्शन कराते हैं।
समाज इन्हें सदा आदरणीय व्यक्ति का मान देता है। इसके विपरीत दूसरे प्रकार के अन्य लोग मक्खियों की तरह इधर-उधर हर स्थान पर भिनभिनाते रहते हैं। जहाँ उन्हें अपना लाभ दिखाई देता है, वे वहीँ के हो जाते हैं। इन्ही लोगों के लिए शायद कहा गया है- 'जहाँ देखी तवा-परात वहीँ बिताई सारी रात।'
यानी जहाँ उनके स्वार्थ पूर्ण होते हैं वे वहीँ के होकर रह जाते हैं। उन्हें किसी से कोई लेना देना नहीं होता। ये लोग अच्छाई की ओर जाते अवश्य हैं, अच्छा बनना भी चाहते हैं परन्तु जहाँ अधिक लाभ होता हुआ प्रतीत होता है उस और आकृष्ट होकर अच्छाई की ओर से मुँह मोड़ लेते हैं।
ये लोग अच्छाई का लबादा ओढ़कर गलत कार्य करने से परहेज नहीं करते। अपनी सफेदपोशी बनाए रखने के लिए तरह-तरह के षडयन्त्र रचते रहते हैं।
ऐसे लोग जो केवल अपने भौतिक स्वार्थो को अधिक महत्त्व देते है, वे कभी भी किसी की धोखेबाज या चालबाज के धोखे या चाल का आसानी से शिकार बन जाते हैं। इसका कारण है कि वे इन्हें अपने जल में फँसाने के लिए आकर्षक जाल या चारा डालते रहते हैं। अपने मस्तिष्क से विचार न कर पाने और किसी सयाने से परामर्श न करने के कारण ये उन शातिर लोगों के झाँसे में आकर अपना बहुत कुछ गँवा बैठते हैं।
कुछ समय पश्चात जब परेशानी में फँस जाते हैं तो हैरान रह जाते हैं कि उन्होंने क्या कर डाला? तब उन्हें अपनी गलती का अहसास होता है तो वे इतनी दूर निकल गए होते हैं कि वहाँ से उनकी वापिसी सम्भव नहीं हो पाती।
अपने तुच्छ भौतिक स्वार्थों का मोह छोड़कर इन्सान को विचारशील बनना चाहिए ताकि कोई उसे आसानी से न छल सके। अपने आस्तीन के साँपों से सावधान रहना चाहिए और शहद की मक्खी की भाँति अपने लक्ष्य पर डटे रहना चाहिए। न अपने जीवन मूल्यों का त्याग करना चाहिए और न ही स्व्यं को सन्तापों की भट्टी में झोंकना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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मंगलवार, 9 अगस्त 2016
मनुष्य का गुणग्राही होना
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