मनुष्य को स्वयं बताने की आवश्यकता नहीं होती कि वह बहुत अच्छा इन्सान है। आओ और उसकी उसकी अच्छाई देख लो। उसकी अच्छाई या उसके सद् गुण कभी-न-कभी दूसरों के सामने प्रकट हो ही जाती है। समय अवश्य लगता है पर एक दिन वह अपना प्रभाव दिखा ही देती है। इसके लिए मनुष्य को धैर्य पूर्वक प्रतीक्षा करनी पड़ती है। यह कदापि नहीं भूलना चाहिए कि जब उसका समय आएगा तो निश्चित ही लोग उसे पहचानेंगे।
अपनी अच्छाई रूपी गुणों का एक-एक तिनका चुनकर पक्षियों की तरह कठोर परिश्रम करके मनुष्य अपने जीवन का घरौंदा बनाता है। जहाँ वह गलत रास्ते पर चलकर बुराई को अपनाने लगता है तो वही एक पल ही उसे मिट्टी में मिला देने के लिए पर्याप्त होता है।
अहंकार रूपी दानव जब राहू-केतु की भाँति उसे ग्रसने लगता है। तब वह इस बात को भूल जाता है कि वस्तुत: प्रशंसा उसके गुणों की हो रही है उसकी नहीं। उस समय वह अपने भले-बुरे का या अपने-पराए में अन्तर करने का मानो विवेक ही खो देता है।
मनुष्य की सबसे बड़ी विडम्बना है कि वह अपनी चापलूसी भरी झूठी तारीफ सुनकर बड़ा प्रसन्न होता है। दूसरौ के स्वार्थ पूरे करने के लिए बरबाद होना भी पसन्द कर लेता है। यदि कोई हितैषी उसकी सच्ची आलोचना करे तो वह आग बबूला हो जाता है। सम्हलना तो दूर की बात है वह अपने ही हाथों अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार लेता है।
उसे चाहिए कि इस अभिमान को अपने जीवन में स्थान न दे। इसका यह अर्थ नहीं कि अपने स्वाभिमान को ताक पर रख दे। हमेशा याद रखना चाहिए कि अभिमान पतन का कारक है वह मनुष्य को सम्हलने का अवसर नहीं देता जबकि उसका स्वाभिमान उसे महान बनाता है और गिरने नहीं देगा। संसार में उन्नति वही मनुष्य करता है जिसकी योजनाएँ फलदायी होती हैं।
मनुष्य को इसकी चिन्ता नहीं करनी चाहिए कि कौन क्या कर रहा है? कैसे कर रहा है? अथवा क्यों कर रहा है? वह जितना इन चक्करों से दूर रहेगा उतना ही उसका भला होगा और फिर वह खुश रहेगा।
किसी भी व्यक्ति की कोई बात यदि बुरी लगे तो उसे एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देने का प्रयास करना चाहिए। परन्तु यदि किसी सयाने ने कोई बात कही है तो निश्चित ही वह महत्वपूर्ण होगी, तब उसे हितोपदेश समझकर सदा उस पर मनन करना चाहिए उसे कभी भी अनदेखा नहीं करने की भूल नहीं करनी चाहिए।
मनुष्य जब हम चुप रहकर भगवान शिव की तरह विषपान करता है तब वह दुनिया को पसन्द आता है। इसका सीधा-सा अर्थ यही है कि जब तक मनुष्य बिना प्रतिकार किए दूसरों की कटु आलोचनाओं को सहन करे तो वह भलामानस कहलाता है।
किन्तु यदि एक बार भी कोई मनुष्य सच्ची बात कह दे तो उससे बुरा कोई और होता ही नहीं है। वास्तविकता यही है कि कोई भी इन्सान अपनी कमियों को इंगित करने वाले को पसन्द नहीं करता। ऐसा व्यक्ति सबको जहर की तरह कड़वा लगता है। उसे किनारे कर देने में लोग कोई परहेज नहीं करते।
जहाँ हम व्यक्ति की पहचान की चर्चा कर रहे हैं तो मैं यह भी जोड़ना चाहती हूँ कि मनुष्य को किसी की चापलूसी करके सफलता मिलती तो वह बहुत समय तक प्रसन्नता नहीं दे सकती। अपने कठोर परिश्रम से यदि वह सफलता अर्जित करता है तो वह चिरस्थायी होती है।
मनुष्य जीवन में क्या घटने वाला है यह भविष्य के गर्भ में छिपा रहता है। कोई कितना भी प्रयत्न कर ले उसे बदल नहीं सकता। किन्तु जब मानव अपने व्यवहार व अपनी आदतें बदलने के लिए कटिबद्ध हो जाता है तब उसका भविष्य बदलने से कोई नहीं रोक सकता।
अतः मनुष्य को अपनी अच्छाई को कभी त्यागना नहीं चाहिए। यही उसकी अच्छाई ही उसकी ताकत बनकर उसका मनोबल बढ़ाती है।
चन्द्र प्रभा सूद
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रविवार, 4 सितंबर 2016
मनुष्य अच्छाई न त्यागे
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