शनिवार, 24 सितंबर 2016

इंसानियत से उठता विश्वास

इन्सानियत से दिन-प्रतिदिन मनुष्य का विश्वास उठता जा रहा है। संसार में प्रायः लोग अपना हित साधने में ही व्यस्त रहते हैं। इसलिए आज वे सवेदना शून्य होते जा रहे हैं। उनकी यह प्रवृत्ति निस्सन्देह चिन्ता का विषय बनती जा रही है। माना जाता है कि जिस व्यक्ति में संवेदना नहीं है वह तो मृतप्राय होता है। शायद कंक्रीट के जंगल में रहते हुए लोग वैसे ही बनते जा रहे हैं।
          ऐसे मनुष्य को लोग पत्थर दिल इन्सान कहते हैं यानी समाज वे क्रूर कहे जाते हैं क्योंकि उनके सीने में दिल नाम की चीज नहीं होती। वे पत्थर की तरह कठोर माने जाते हैं। उनके हृदय में दया, ममता, करुणा और सहृदयता आदि गुण बिल्कुल नहीं होते।
         इस श्रेणी में आतंकवादी, चोर, डाकू, समाज विरोधी गतिविधियाँ करने वाले नृशंस लोग आते हैं। इसलिए कोई भी इनके सामने नहीं आना चाहता। लोग उनसे भयभीत रहते हैं और उनके साथ सम्बन्ध बनाने में रुचि नहीं रखते।
         आज लोग ईश्वर की भक्ति भी अपने स्वार्थवश करते हैं। जो दाता सबके लिए अपने भण्डार खोले बैठा रहता है, उससे अपना काम करवाने के लिए, उसे रिश्वत देने का असफल प्रयास करते हैं। मनुष्य को जब कुछ चाहिए होता है अथवा कष्ट-परेशानी में होता है तो वह मालिक से प्रार्थना करता है परन्तु फिर बाद में उसे भूल जाता है।
        कहा जाता है कि पत्थर की मूर्तियों को लोग इसीलिए पूजने लगे हैं क्योंकि आज विश्वास करने लायक इन्सान बहुत कम मिलते है। यह सत्य है कि पत्थर से यदि प्रहार किया जाए तो वह सामने आने वाले सबको समान रूप से चोट पहुँचाता है अर्थात घायल कर देता है।
        इस पत्थर की यही तारीफ है कि कुछ भी उपाय कर लो वह पिघलता नहीं है लेकिन उसकी अन्य विशेषता यह भी है कि वह स्वयं कभी नहीं बदलता। उसे आकार विशेष देने के लिए प्रयास करना पड़ता है।
          पत्थर को जिस प्रकार सधे हुए हाथ तराशते हैं तो वे उसमें मानो प्राण डाल देते हैं। उसे मनचाहा आकार देने में मूर्तिकार समर्थ होते हैं। उसी प्रकार सज्जनों की संगति और सद् ग्रन्थों का स्वाध्याय करने से मनुष्य को भी मनचाहा आकार दिया जा सकता है।
         सुप्रसिद्ध रामचरित के प्रणेता महर्षि वाल्मीकि (रत्नाकर डाकू ) और बौद्धधर्म के सन्यासी (अंगुलिमाल डाकू) इसके प्रत्यक्ष उदाहरण कहे जा सकते हैं। इसी प्रकार के अनेक उदाहरण इतिहास की खोज करने पर मिल जाएँगे।
         मनुष्य में जब तक मानवोचित गुणों का समावेश नहीं होता तब तक उसका कद ऊँचा नहीं होता। इन्सानियत से ही इन्सान का कद बढ़ता है केवल चौखटों की ऊँचाई बढ़ा लेने से कुछ नहीं होता। मनुष्य की महानता का बखान तभी होता है जब वह मानवता की भलाई के लिए कार्य करता है। अन्यथा उसे भूल जाने में इस जमाने को बिल्कुल भी समय नहीं लगता।
         इस संसार में इन्सान सब कुछ बन सकता है, दुनिया के सारे कार्य-व्यवहार कर सकता है किन्तु एक सच्चा इन्सान बनना वास्तव में उसके लिए सबसे कठिन कार्य होता है।
         मनुष्य अपने इस जीवन में यदि सफलता की बुलन्दियों को छू लेता है तो उसे सबके साथ विनम्रतापूर्वक व्यवहार करना चाहिए। तभी वह लम्बे समय तक उस स्थान पर बना रह सकता है। उसे सदा स्मरण रखना चाहिए कि समाज में इस पद को पाने के लिए उसे कितना संघर्ष करना पड़ा है।
        परन्तु इसके विपरीत यदि वह उस मुकाम पर पहुँचने के बाद इन्सानियत को भूलकर अहंकारी अथवा स्वार्थी हो जाता है तो शीघ्र ही सबकी आँखों की किरकिरी बन जाता है। तब उसे पटकनी देने के लिए बहुत लोग तैयार हो जाते हैं। प्रयास यही रहना चाहिए कि इन्सान अपनी इन्सानियत को न छोड़े।
चन्द्र प्रभा सूद
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