गुरुवार, 13 अक्तूबर 2016

मोबाइल संस्कृति

छोटे बच्चे से लेकर बड़ों तक सबके पास मौजूद इस मोबाइल ने दिलों और घर में दूरियाँ बढ़ा दी हैँ। सभी सदस्य इसी पर व्यस्त रहते हैं, एक ही घर में रहते हुए किसी से बात करने का समय उन्हें नहीं मिल पाता। यह चिन्ता का विषय है। इस मोबाइल की इतनी तल लग गई है कि न चाहते हुए भी इसके बिना रह पाना कठिन हो जाता है।
         वास्तव में मोबाइल ने हम सबको इस हद तक अपनी गिरफ्त में ले लिया है कि इसके बिना सब सूना लगता है। ऐसा लगता है मानो आदिम युग में आ गए हैं। पार्टी में, विवाह में या अन्य किसी कारण से इकट्ठे होने पर सभी अपने मोबाइल पर ही लगे रहते हैं। शायद उनकी इच्छा ही नहीं होती किसी से मिलने की। इसीलिए शायद एक-दूसरे से न मिल पाने के लिए आज सबके पास समय की कमी का बहाना रहता है।
         आज दूरियाँ और व्यस्तताएँ इतनी बढ़ गई हैं कि मनुष्य को खुद से ही संवाद करने का समय नही मिलता। आपस में मिल-बैठकर सुख-दुख बाँटने का समय भी किसी के पास नहीं है। बस सन्देश भेज दो और दायित्व से मुक्त हो गए।
          मोबाइल ने संवाद और रिश्तों को ऐप्स में समेट दिया है। किसी का हालचाल पूछना, जन्मदिन की शुभकामना देना, पार्टी या शादी में निमन्त्रण देना हो तो वाट्सअप कर दो। देखते-देखते हम में इतने सीमित हो गए हैं कि बाहरी दुनिया से संबंध-रिश्ते न के बराबर बचे हुए हैं। अब तो समय व्यतीत करने का माध्यम बस मोबाइल रह गया है।
     सबकी अपनी एक अलग दुनिया  है, जिसमें अपने मोबाइल के साथ बस खुश रहते हैं। जब उदास या परेशान होते हैं तब फेसबुक या ट्विटर पर कुछ भी लिखकर पोस्ट कर देते हैं। कुछ ‘लाइक’ और ‘कमेंट’ पाकर खुश या उदास हो जाते हैं।
        मजे की बात यह है कि अपनों की चिंता से अधिक आभासी दुनिया द्वारा चिंता किया ज्यादा अच्छा लगता है। बच्चे के पैदा होने की, बीमारी की अथवा किसी सम्बन्धी के मरने की खबर रिश्तेदारों को बताने से पहले फेसबुक पर डाली जाती है।
       इस मोबाइल-संस्कृति ने सबको आत्मकेन्द्रित कर दिया है। सोते-जागते  सदा ही घंटी बजने या मैसेज आने का आभास होता रहता है। मोबाइल की दुनिया बहुत तेजी से बदल रही है। मोबाइल के इस आकर्षण बच पाना असम्भव होता जा रहा है।
      यह बीमारी बच्चों में भी बढ़ती जा रही है। जब उन्हें फुर्सत मिलती है, तब मोबाइल पर अपना मन बहलाते हैं। आजकल दो-तीन साल के बच्चों की मोबाइल पर तेजी से चलती अंगुलियों को देखकर दंग रह जाते हैं। वास्तव में इन बच्चों को मोबाइल की दुनिया में धकेलने में माता-पिता का बहुत योगदान है। फिर वे उनसे परेशान होते हैं कि इसका ध्यान मोबाइल के अलावा कहीं लगता नहीं।
       मोबाइल का उपयोग उत्पादों और सेवाओं के आदेश देने, प्रतियोगिताओं में भाग लेने, विज्ञापन देने और सेवाएँ प्रदान करने के लिए किया जाने लगा है। भुगतान देय तिथियों तथा अन्य सूचनाओं के लिए भी मोबाइल आज का प्रयोग सरलता से किया जा रहा है।
        मोबाइल 'आल इन वन' हो गया है। इसके आने से हाथ की घड़ी, अलार्म घड़ी, म्यूजिक सिस्टम, डी वी डी प्लेयर, ट्राँजिस्टर, टेप रिकारँडर, कैमरा आदि के  इन सबकी आवश्यकता ही नहीं रह गई है। इनके साथ ही तार भेजने के स्थान पर मैसेज भेज दिए जाते हैं। इससे आन लाइन शापिंग, मनी ट्राँस्फर, बिलों का भुगतान किया जा सकता है। रेलवे व हवाई जहाज की टिकट बुक करना, सिनेमा टिकट लेना, होटलों मे बुकिंग आदि सुविधा से होने लगी है।
         यह मोबाइल बुजुर्गों के लिए समय बिताने का एक साधन है। इसके आने से देश-काल की सीमाएँ सिमट गई हैं। इससे अच्छे या बुरे हर तरह के संस्कार लिए जा सकते हैं। इस नई तकनीक का सदुपयोग अथवा दुरूपयोग करना हमारे अपने हाथ में है।
चन्द्र प्रभा सूद
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