दूसरों का मूल्यांकन करते समय हमें ऐसा प्रतीत होता है कि फलाँ व्यक्ति में तो ऐसी कोई विशेष योग्यता नहीं है जिसकी चर्चा अवश्य करनी चाहिए। इस संसार में कोई भी व्यक्ति दूसरे को योग्य कहकर उसकी प्रतिष्ठा नहीं करना चाहता।
अपने घर की ओर नजर डालिए वहाँ आपका बेटा अथवा बेटी इतने योग्य हो सकते हैं कि दफ्तर में उनके अधीन अनेक कर्मचारी हों। आफिस में उनका अनुशासन इतना अधिक हो कि कोई कर्मचारी गलत काम न कर सकता हो। वह स्वयं भी दिन-रात कार्य करते हुए अपने अधीनस्थों से वैसा ही कार्य करवाते हों जैसा वे चाहते हैं। उनके विरोधी भी उनका लौहा मानने के लिए विवश हों।
ऐसे योग्य बच्चों के माता-पिता को यही लगता है कि उनके बच्चे बेशक बहुत पढ़-लिख गए हैं और बड़े हो गए हैं पर फिर भी अभी नादान हैं, बहुत भोले हैं और उन्हें तो दुनियादारी की बिल्कुल भी समझ नहीं है। अपनी ओर से वे उन्हें अपनी छत्रछाया में संरक्षित करना चाहते हैं। अपने बच्चों के लिए आयुपर्यन्त ही संवेदनशील बने रहना चाहते हैं।
प्राय: पति भी अपनी पत्नी के विषय में सोचते हैं कि उनकी पत्नी तो मूर्ख है उसे क्या समझ है? यह भी हो सकता है यदि वे उसकी योग्यता के विषय में सोचने लगे तो उसे स्वयं ही समझ में आ जाए कि उनकी सोच बहुत गलत थी। उनकी पत्नी में तो बहुत से गुण हैं यानि कि वह मल्टी टेलेंटेड औरत है। वह घर और बाहर दोनों ही मोर्चों पर सफल है। जितनी कुशलता व लगन से वह अपने दफ्तर के कार्य निपटाती है उसी ही निष्ठा से घर-गृहस्थी व बच्चों के कामों को भी करती है। अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए नित्य अनावश्यक बहाने नहीं बनाती।
प्रायः पत्नियाँ भी अपने पतियों के विषय में इसी प्रकार के नकारात्मक विचार रखती हैं। उन्हें भी ऐसा लगता है उनके पति को कोई समझ नहीं है। न वे घर का कार्य कर पाते हैं और न बाहर के दायित्वों का निर्वहन कर सकते हैं। हाँ, घर पर जितना समय रहते हैं अशान्ति ही फैलाते रहते हैं। इसलिए दोनों एक-दूसरे के प्रति असहिष्णु हो जाते हैं और हर समय ही अपने साथी को सहन न कर सकने का रोना रोते रहते हैं।
पति और पत्नी घर में एक-दूसरे को नासमझ मानकर परस्पर दोषारोपण करते रहते हैं। उन दोनों में से कोई भी अपने मन से यह स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होता कि उनका जीवनसाथी किन्हीं विशेष योग्यताओं वाला हो सकता है। जिसके कारण उसका सम्मान उसके अधीनस्थ करते हैं। उससे सम्पर्क में आने वाले उसके काम करने के तरीकों से प्रभावित हो जाते हैं। अपने फील्ड में लोग उसकी कार्यशैली और उसकी पर्सनेलिटी से ईर्ष्या करने के लिए विवश हो जाते हैं।
मित्र, बन्धु-बान्धव, भाई-बहन आदि भी अपने संबंधियों के प्रति सकारात्मक विचार नहीं रखते। उनकी कल्पना से परे की बात होती है कि उनका प्रियजन इतना महत्त्वपूर्ण व्यक्ति है जो बड़े-से-बड़े चैलेंज जीतकर आज इतना प्रतिष्ठित हो गया है। उससे मिलने के लिए भी समय लेना पड़ता है और प्रतीक्षा करनी होती है।
हमें किसी की भी वेशभूषा अथवा रहन-सहन से उसके प्रति कोई पूर्वाग्रह नहीं पालना चाहिए। उसका मूल्यांकन करते समय सचेत रहना चाहिए। किसी को भी कमतर नहीं समझना चाहिए। दूसरे का मूल्यांकन करते समय उसकी योग्यता और पद आदि को ध्यान में रखना बहुत ही आवश्यक है।
चन्द्र प्रभा सूद
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सोमवार, 24 अक्तूबर 2016
दूसरों का मूल्यांकन
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