आजकल प्रेम विवाह का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। लड़के और लड़की के बीच में जब प्रेम हो जाता है तो उसके पश्चात वे विवाह कर लेते है। हमारे ऋषि-मुनियों ने इस विवाह को शुभ नहीं माना। निश्चित ही उन्हें इसमें कुछ बुराई दिखाई दी होगी। इस प्रेम विवाह को हम गंधर्व विवाह की श्रेणी में रख सकते हैं।
यदि युवक और युवती की सहमति के साथ उन्हें घर-परिवार की सहमति भी मिल जाए तो सोने पर सुहागा हो जाता है। इस शुभ अवसर पर मिलने वाली खुशियाँ कई गुणा बढ़ जाती हैं।
इसके विपरीत यदि उन्हें किसी की सहमति न मिले और विरोध का सामना करना पड़े तो समस्या बढ़ जाती है। सभी का मन अशान्त हो जाता है। ऐसा लगता है कि खुशियाँ मानो रूठ गई हैं।
माता-पिता के मना करने के कई कारण हो सकते हैं। ये कारण धर्म, जाति, गौत्र, आर्थिक व सामाजिक आदि से सम्बन्धित हो सकते हैं। बेमेल जोड़ी बन जाना भी एक कारण हो सकता है। अन्जान जीवन साथी होने पर भी बड़ों की सहमति नहीं मिलती।
विवाह का अर्थ यही माना जाता है कि किसी शुभ मुहूर्त में अग्नि को साक्षी मानकर मन्त्रोच्चारण से विवाह संपन्न कराया जाए। इस शुभ अवसर पर सभी बन्धु-बान्धव उपास्थित रहें। कोर्ट मैरिज या किसी मन्दिर में किया गया विवाह वैधानिक तो हो सकता है पर हृदयों की दूरी बढ़ा देता है।
घर-परिवार के असहमत होने पर भागकर शादी को युवा विकल्प मान लेते हैं। यदि दोनों जीवन साथी इस विवाह का निर्वहण कर लें तब कोई समस्या आड़े नहीं आती। समय बीतते धीरे-धीरे वहाँ पर स्थितियाँ सामान्य होने लगती हैँ।
इस सन्दर्भ में मुझे महाकवि कालिदास रचित 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' का स्मरण हो रहा है। इसमें उन्होंने यह समस्या उठाई है। महाराज दुष्यन्त और ऋषि कण्व की पलिता पुत्री बिना किसी को बताए विवाह कर लेते हैं। पुनः आकर उसे ले जाने का वादा करके दुष्यन्त चले जाते हैं। शकुन्तला के गर्भवती होने का पता चलने पर सभी उसे कोसते हैं। पर जब उसे दुष्यन्त के पास भेंट हैं तो वह उसे पहचानने से इन्कार कर देता है। इसके कारणों की समीक्षा उद्देश्य नहीं।
समस्या अथवा चिन्ता वहाँ होती है जहाँ विवाह के नाम पर किसी पक्ष के द्वारा धोखा दिया जा रहा हो। युवक पैसे वाली किसी युवती को बहला-फुसलाकर शादी कर लेते हैं फिर सब कुछ हड़पकर छोड़ देते हैं। इसी प्रकार कुछ युवतियाँ भी ऐसा करती हैं कि मालदार लड़कों को अपने जाल में फँसा लेती हैं और फिर उन्हें कगाल बनाकर छोड़ देती हैं।
कभी-कभी प्यार का झाँसा देकर और शादी का वादा करके युवक युवती के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने के पश्चात उसे मंझधार में बेसहारा छोड़कर भाग जाते हैं। इससे भी बढ़कर हद तब होती है जब कोई पेशेवर युवक किसी युवती पर डोरे डालकर विवाह का नाटक करता है और फिर उसे बेच देता है या बड़ी बेशर्मी से उसे वेश्यावृत्ति के दलदल में धकेलता है।
आजकल इस तरह के धोखे कभी-कभार समाचार पत्रों में दिए गए वैवाहिक विज्ञापनों के साथ-साथ मैटरिमोनिल संस्थाओं के माध्मय से भी मिल जाते हैं। इनसे आए सम्बन्धों की बारीकी से जाँच करके ही अपने बच्चों का सम्बन्ध कराना चाहिए।
फेसबुक से बनाए गए सम्बन्धों में सबसे अधिक धोखे मिलने का अवसर होता है। वहाँ फेक आई डी बनाए लोग दूसरों को ठगने और धोखा देने की फिराक में रहते हैं।
समाचार पत्रों, टी वी और सोशल मीडिया में इस तरह की खबरें सुनते व पढ़ते रहते हैं। कई टी वी चैनल इन विषयों को उजागर करते रहते हैं। उन्हें देखकर नवयुवकों और नवयुवतियों सबको शिक्षा लेनी चाहिए और धोखा खाने से बचने का प्रयास करना चाहिए।
माता-पिता या घर-परिवार के सभी सदस्य अपनों से बहुत स्नेह रखते हैं। अतः वे नहीं चाहते कि उनका कोई अपना गलत हाथों में पड़ जाए और उसे जीवनभर पश्चाताप करना पड़े।
अपने घर-परिवार की सहमति से ही सम्बन्ध बनाने चाहिए। शादी अपनी पसन्द से चाहे की जाए पर उसमेँ भी सबकी सहमति होनी चाहिए। जहाँ तक हो सके पहले अच्छी तरह देखभाल करके सन्तुष्ट हो जाएँ तभी आगे कदम बढ़ाना चाहिए।
फेसबुक पर सूरज राजभर ने यह अनुरोध किया था-
आपसे अनुरोध है कि आप एक लेख उन लड़के-लड़कियों पर भी लिखें जो घरवालों की मर्जी के खिलाफ भागकर शादी करते हैं। घरवाले अगर इन्कार करते हैं या दोनों में से किसी एक को नापसन्द करते है तो उसके पीछे कोई कारण होता है लेकिन ये कुछ अन्धे एक प्यार पाने की खातिर अपने माँ-बाप,भाई-बहन,दादा-दादी सबका प्यार कुर्बान कर देते है और उनको छोडकर हमेशा के लिए दुनिया से अलग एक अपनी नयी दुनिया बसाते हैं।
कभी-कभी ऐसी भी घटनाएँ सामने आयी हैं कि प्रेमी लडकी को अपने प्रेम जाल मे फंसाकर भगा ले जाता है और उन्हे या तो बेच देता है या फिर यौन शोषण करके तंग हाल में छोड देते है।
चन्द्र प्रभा सूद
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सोमवार, 17 अक्तूबर 2016
भागकर विवाह करना
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