सुनी-सुनाई अफवाहों पर हमें ध्यान नहीं देना चाहिए। अफवाहें फैलाने वाले बेसिर-पैर की बातों को उड़ाते रहते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि फैलाई गयी सारी खबरों में सच्चाई हो। कभी-कभी उनकी सत्यता की परख करने पर परिणाम शून्य होता है। उस समय हमारे मन को कष्ट होता है कि काश हमने इन अफवाहों को सुनकर व्यक्ति विशेष के लिए राय न बनाई होती। तब तक सब हाथ से निकल जाता है। हमने जो भी लानत-मलानत करनी होती है वह हम कर चुके होते हैं।
ये अफवाहें हमारे लिए रास्ते का काँटा बन जाती हैं। यदि हम गम्भीरता से विचार करें तो आज इस भौतिकतावादी युग में सब कुछ सम्भव है। लोगों को दूसरों की छिछालेदार करने में अभूतपूर्व सुख मिलता है। उन्हें मिथ्या आत्मतोष मिलता है कि उन्होंने दूसरे को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लोग अपने विरोधियों पर कीचड़ उछाल करके उन्हें अपमानित करने के अवसर से नहीं चूकते। परन्तु ऐसा दुष्कृत्य करने वाले वे भूल जाते हैं कि कल जब उनकी बारी आएगी तो फिर उन्हें कैसा लगेगा?
इन कुत्सित अफवाहों से हम अपना ध्यान थोड़ा हटा करके तर्कशास्त्र की इस उक्ति पर हम विचार करते हैं। तर्कशास्त्र का मानना है- 'यत्र यत्र धूम: तत्र तत्र वह्नि:।' अर्थात जहाँ-जहाँ धुआँ होता है वहाँ-वहाँ अग्नि अवश्य होती है। यदि आग जलेगी तो धुआँ भी होगा। वह धुआँ दूर-दूर तक उड़कर जाता है। दूर तक उड़ते हुए उस धुँए के कारण यदि किसी को जलती हुई आग नहीं दिखाई देती तो उसका यह अर्थ हम कदापि नहीं लगा सकते कि कहीं भी आग नहीं जल रही है।
अपने इस सूत्र को सिद्ध करने के लिए तर्कशास्त्र उदाहरण देता है कि एक मोटा-सा देवदत्त नामक व्यक्ति है जो दिन में नहीं खाता। इसका सीधा-सा यही अर्थ निकलता है कि देवदत्त खाना खाता ही नहीं है। अब प्रश्न यह उठता है कि फिर वह जीवित कैसे रहता है?
इस पर तर्क या विवाद करते हुए शास्त्र कहता है कि यदि वह देवदत्त दिन में नहीं खाता तो निश्चित ही रात को खाता होगा। क्योंकि कोई भी व्यक्ति बिना खाए बहुत समय तक जीवित नहीं रह सकता। यदि वह स्वस्थ है तो पक्की बात है कि वह सबसे नजर बचाकर छिपकर खाता है या फिर रात को खाता है। इसे कह सकते हैं तर्क की कसौटी पर परख कर विश्वास करना।
एक बात और मैं आपके सामने रखना चाहती हूँ जिससे आप सभी सहमत होंगे। मीडिया के इस युग में कम्प्यूटर के फोटोशाप के द्वारा किसी भी तरह के चित्र अथवा वीडियो बनाए जाते हैं। इसी प्रकार वायस मिक्सिंग करके आडियो भी बनाए जा रहे हैं। इन सबसे किसी को भी बदनाम किया जा सकता है। इस प्रकार आँखों से देखी और कानों सुनी पर भी विश्वास करना बहुत घातक हो सकता है।
अतः अपनी आँखों से देखी हुई और कानों से सुनी हुई किसी भी बात को आँख मूँदकर मानने से पहले उस पर अच्छी तरह विचार-विमर्श कर लेना चाहिए। उसे अपने विवेक की कसौटी पर कस लेना चाहिए, तभी उसे मानना चाहिए। अन्यथा अनर्थ की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता।
चन्द्र प्रभा सूद
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शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2016
अफवाहों पर ध्यान न दें
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