दूसरों की नकल करने का स्वभाव हमारे उस विवेक को कुंठित कर देता है जो हमें अच्छाई और बुराई के अन्तर का ज्ञान कराता है। नकल करते समय हम अपने मस्तिष्क का नहीं बल्कि दिल का कहना मानते हैं।
यद्यपि नकल करते हुए मनुष्य को सदा अपनी अक्ल का ही इस्तेमाल करना चाहिए जो ईश्वर ने हमें उपहार के रूप में दी है- ऐसा सदा ही समझदारों का मानना है। हमें दूसरों नकल करते समय मक्खी पर मक्खी न मारकर इस विषय पर गहन विचार करना चाहिए कि जो काम हम करने जा रहे हैं उससे हमारी जग हंसाई तो नहीं होगी।
विद्यार्थी अपने अध्ययन काल में कामचोरी के कारण जब गृहकार्य नहीं कर पाते तब साथी की कापी लेकर नकल कर लेते हैं। उस समय उन्हें यह भी ध्यान नहीं रहता कि वे अपने नाम के स्थान पर बिना समझे जल्दबाजी में साथी का नाम आदि की जानकारी लिख देते हैं जिससे अध्यापक को ज्ञात हो जाता है कि किसकी नकल करके वह कार्य किया गया है। इसी तरह परीक्षा के समय भी होता है। कभी-कभी अपने सही उत्तर को साथी के गलत उत्तर के कारण गलत लिखकर अपने अंक कम करवा लेने पर पछताना पड़ता हैं।
आस-पड़ौस या बन्धु-बान्धवों के घर कोई भी नई वस्तु आ जाने पर हमारी अकुलाहट शुरू हो जाती है। चाहे वह उनका नया बड़ा घर हो अथवा महंगी नई गाड़ी हो। इनके अतिरिक्त बड़ा टीवी, बड़ा फ्रिज, महंगा नया फोन या आईपेड कुछ भी हो सकता है। हमारे मन में उन वस्तुओं को देखकर हीन भावना आने लगती है। तब हम सोचने लगते हैं कि कब हम उन अनावश्यक वस्तुओं को खरीद पाएँगे।
उन वस्तुओं को खरीदने वालों को हम भाग्यशाली कहते हुए अपने दुर्भाग्य को कोसने लगते हैं। ईश्वर पर भी दोषारोपण करने से भी हम नहीं चूकते कि उसने हमें ये सब खरीदने की सामर्थ्य क्यों नहीं दी।
तब हम अपने बैंक अकाऊँट खंगालते हैं। पड़ौसी के घर आने वाली नई वस्तुओं की नकल करके हम भी वस्तुएँ खरीद लेते हैं। उस समय हम उन वस्तुओं को खरीदने के लिए इतने अधिक उतावले हो रहे होते हैं कि यह भी विचार नहीं कर पाते कि उसे खरीदने के लिए हमारे पास साधन हैं भी या नहीं। यदि अपने पास धन है तो ठीक नहीं तो जुगाड़ हो जाएगा वाली सोच का सहारा लेते हैं।
तब हम पैसे का जुगाड़ करने में जुट जाते हैं। यदि हमें किसी अपने के माध्यम से धन मिल जाए तो बढ़िया नहीं तो फिर हम किसी व्यक्ति से अथवा बैंक से कर्ज लेकर वह वस्तु खरीदकर परेशानी अवश्य मोल ले लेते हैं। आखिर उधार लिया हुआ पैसा चुकाना भी तो पड़ता है जिससे घर का मासिक बजट गड़बड़ा जाता है। कई आवश्यक खर्चों को मजबूरन रोकना पड़ जाता है।
दूसरों की होड़ करते हुए हम अपने घर में यदा-कदा ऐसी वस्तुएँ भी एकत्रित
कर लेते हैं जिनकी हमें आवश्यकता ही नहीं होती। इससे घर में जगह तो घिरती ही है और व्यर्थ ही पैसा भी बरबाद हो जाता है। इसलिए यथासंभव भेड़चाल न करते हुए दूसरों की नकल करने से बचना चाहिए। अपने विवेक का सहारा लेकर स्वयं को भविष्य में आने वाले कष्टों से बचाने में ही बुद्धिमत्ता कहलाती है।
चन्द्र प्रभा सूद
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बुधवार, 26 अक्तूबर 2016
नकल से विवेक कुण्ठित
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