असार संसार के सभी भौतिक रिश्ते-नाते मनुष्य के जीवनपर्यन्त रहते हैं। मृत्यु आते ही सभी सम्बन्ध इसी धरा पर छूट जाते हैं। आँख बन्द होते ही ये रिश्ते पराए से हो जाते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी, मित्र-पड़ौसी, सभी स्नेही जन मनुष्य के जीते-जी उसके साथी होते हैं। उसके मरणोपरान्त अपना प्रिय केवल यादों में ही रह जाता है। उसके साथ सारे सम्बन्ध टूट जाते हैं, मानो वह कोई पराया हो।
मनुष्य का अपना कहा जाने वाला यह शरीर भी उससे प्राणों के निकल जाने के उपरान्त उसका साथ छोड़ देता है। कहने का तात्पर्य यह है कि जिस शरीर पर सारा जीवन मान किया, उसे सजाकर और संवारकर रखा, वह भी एक निश्चित समय के पश्चात साथ छोड़ देता है। अपने कहे जाने वाले प्रियजन भी उसे कुछ घण्टे तक सहन नहीं कर पाते। वे यथाशीघ्र ही उसे अग्नि को समर्पित करने के लिए उतावले हो जाते हैं।
इन विचारों को एक कथा के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं। इसे बहुत पहले कहीं पढ़ा था। आप लोगों ने भी यह कथा पढ़ी या सुनी होगी। कथा कुछ इस प्रकार है।
कभी किसी स्थान पर एक पहुँचे हुए महात्मा जी आए। उनकी प्रसिद्व को सुनकर एक दुखियारी महिला उनके पास आई और बोली, "महात्मा जी, मेरे जीने का एकमात्र सहारा मेरा बेटा असमय मृत्यु को प्राप्त हो गया है।'"
महात्मा जी उसे बीच में ही टोकते हुए कहा, " मृत्यु तो जीवन का सत्य है, इससे कोई भी बच नहीं सकता।"
वह स्त्री रोते हुए महात्मा जी से बोली, "आप समर्थ हैं, आप मुझे मेरे बेटे से एक बार मिलवा दीजिए।"
महात्मा जी ने कहा, "यह असम्भव है। एक बार जिसकी मृत्यु हो जाती है, वह पुनः लौटकर नहीं आता।'
उस महिला ने हाथ ठान ली कि वह अपने पुत्र से एक बार मिले बिना वहाँ से नहीं जाएगी। उसकी जिद को देखते हुए महात्मा जी ने उससे कहा कि वह दूर से अपने बेटे को एक बार देख सकती है, पर उसे छुएगी नहीं। उस स्त्री ने महात्मा जी की बात मान ली।
अब महात्मा जी के चमत्कार के कारण उस स्त्री को उसके बेटे जैसे बहुत से बच्चे दिखाई दिए। वह हैरान हो गई कि इस भीड़ में से वह अपने बेटे को कैसे ढूंढे। खैर, अन्ततः उसे उनमें अपना बेटा जाता हुआ दिखाई दिया। उसका मन प्रसन्न हो गया कि अब वह अपने बेटे से बस एक बार तो मिल सकेगी।
यह क्या? उसने अपने बेटे को बड़े प्यार से पुकारा। वह अनसुना करके चलता रहा। उसने दूसरी बार, तीसरी बार बेटे को पुकारा पर परिणाम वही रहा, ढाक के तीन पात। अब चौथी बार जब अधीर होकर उस माता ने अपने बेटे को पुकारा, तब उसने पीछे मुड़कर उसकी ओर देखा। उस बालक ने उससे पूछा, "तुम कौन हो? मुझे क्यों इस तरह पुकार रही हो?"
महिला ने प्रसन्न होते हुए उस बच्चे से कहा,"बेटा, तुम मेरे पुत्र हो और मै तेरी माँ हूँ।"
यह सुनकर उस बालक ने कहा, "कौन बेटा और कौन माँ? आप मेरे किस जन्म की माँ हैं?"
वह स्त्री बेटे के मुँह से यह सुनकर रोने लगी। उस बालक ने फिर कहा,"न जाने मेरे कितने जन्म हो चुके हैं और आपके भी अनगिन जन्म हो चुके हैं। जन्म और मृत्यु का यह खेल अनवरत चलता रहता है। मेंने पता नहीं कितनी बार बेटे, भाई, पति आदि के रूप में जन्म लिया। पता नहीं कितनी ही स्त्रियाँ मेरी माता बनीं और कितनों का में पुत्र बना।"
इस रहस्य को समझकर उस स्त्री को जन्म, मृत्यु और सभी रिश्तों का ज्ञान हो गया। इसके लिए उसने महात्मा जी को धन्यवाद किया।
कहने का तात्पर्य यही है कि सभी रिश्ते अस्थायी है, जो केवल जन्म और मृत्यु तक कि अवधि तक के लिए मिलते हैं। ये सभी पूर्वजन्मों के कर्मानुसार लेनदेन के सम्बन्धों का भुगतान करने के लिए होते हैं। अपना-अपना हिसाब चुकता करने के बाद ये सभी दूसरे लोक चले जाते हैं। इस सत्य को मनुष्य जितनी जल्दी समझ ले, उतना ही अच्छा है, नहीं तो रोने-झींकने से भी कोई हल नहीं मिल सकता।
चन्द्र प्रभा सूद
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रविवार, 22 सितंबर 2019
रिश्तों की सीमा
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