हमारे पारिवारिक ढ़ाँचे में हर बेटी को विवाह के उपरान्त अपने माता-पिता का वह घर जहाँ उसने बचपन से अब तक का समय बिताया को छोड़कर अपने पति के घर ससुराल जाना होता है। बहू दूसरे घर से आती है। अतः अपेक्षा की जातिउसे अपने ससुराल के तौर-तरीके शीघ्र अपना लेने चाहिएँ ताकि टकराव से बचा जा सके।
हर लड़की कुछ सपने संजोय अपने ससुराल आती है। उसे चाहिए कि घर के बड़ों को विश्वास में लेकर उन्हें पूरा करे। उसे सच्चे मन से सास-ससुर को माता-पिता और देवर-ननदों को भाई-बहन मानना चाहिए। उनके साथ व्यवहार करने में कभी अपनी ओर से कमी नहीं रखनी चाहिए।
बहू का यही प्रयास होना चाहिए कि रिश्तों की मर्यादा रखते हुए वह बड़ों को कभी पलटकर जवाब न दे ताकि संबंधों में कटुता न आए। उस समय यदि वह चुप्प लगा ली जाए तो होने वाले बहुत से झगड़ों से बचा जा सकता है। कहते हैं-
एक चुप सौ सुख।
एक चुप सौ को हराए।
उसे यह हमेशा याद रखना चाहिए कि उसका पति पहले किसी का बेटा या भाई है। यदि उन्होंने अपने बेटे या भाई से कुछ आशा रखी है तो यह स्वाभाविक है। उसे रोड़ा बनने का कार्य नहीं करना चाहिए। उनके प्रति दायित्वों को निभाने में पति की सहायता करे। फिर देखिए उसे कितना सम्मान मिलता है जिसे हर बहू को कमाना पड़ता है।
बहू को यह भी चाहिए कि घर के कामकाज में बराबर का सहयोग दे वैसे तो प्रायः घरों में सफाई और बर्तन का कार्य तो करवा लिया जाता है। कपड़े धोने के लिए भी मशीनों का प्रयोग किया जाता है।
सारी आयु सास अपने दायित्वों का निर्वहण करती है। उसे भी चाहत होती है कि बहू आए और घर सम्भाले। रिश्तेदारों व मेहमानों से अच्छे से मिले। इसमें कुछ गलत नहीं है यह मानकर चलना चाहिए।
बहू को अपने ससुराल में सदा सामंजस्य बनाकर रखना चाहिए। बेटी रूप में अपने मायके घर में उसे दखल नहीं देना चाहिए। इससे दोनों परिवारों में उसका सम्मान बना रहता है अन्यथा उसे व्यर्थ में अपमानित होना पड़ता है।
सबसे अहम बात यह है कि बहू को यह उम्मीद कदापि नहीं करनी चाहिए कि जो कुछ सास-ससुर के पास है वह उसे अपने जीते जी सौंप दे। उनको भी अपने रिश्तेदारों व दूसरे बच्चों के साथ वरतना होता है और अपनी वृद्धावस्था के लिए भी सिक्योरिटी चाहिए होती है।
माता-पिता बेटी की खुशी चाहते हैं। बेटी को चाहिए कि वह अपने पति या ससुराल की हर छोटी-बड़ी बात माता-पिता को न बताए। वे अपनी बेटी को ससुराल में सबके साथ तालमेल रखने की सलाह दें। उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि वे बेटी के ससुराल में अनावश्यक दखल न दें जब तक उसके साथ कोई अन्याय या अत्याचार न हो रहा हो।
कुछ बहुएँ ऐसी होती हैं जो घर में एडजस्ट नहीं होना चाहतीं। बिना बात लड़ाई के मौके तलाशती हैं। ऐसी वे छोटी-सी बात को तूल देकर या घर की अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए घर छोड़कर चली जाती हैं। अनावश्यक रूप से पुलिस व कोर्ट जाने की धमकी तक दे देती हैं। उन्हें अपने व्यवहार पर ध्यान देना चाहिए।
सास और बहू के संबंध ऐसे होते हैं कि उनमें कड़वाहट न आने पाए इसके लिए दोनों को सावधान रहना चाहिए।अन्यथा घर का सुख-चैन अंगूठा दिखाने लगता है। इसलिए उसे घर में बेटी बनकर रहना चाहिए।
रविवार, 10 मई 2015
बहु बेटी बने
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