उन्मुक्त गगन में उड़ने वाले
बादलों से परे जा नील गगन को
बारबार छूने की होड़ करते मेरे अंतस
तुम अब ऐसे निश्चेष्ट और उदास से बैठे हो
तुम्हारे स्वर्णिम पंखों पर
बहुत गर्व था अब तक मुझको
लगता है वे कतर दिए गए हैं शायद
तुम्हारी उड़ान पर प्रतिबंध लगाने के लिए
हो सकता है उन लोगों को
न भाया हो स्वचछंद विचरण
तुम्हारे नयेपन का अदम्य साहस
इसीलिए तुम्हें जकड़ना चाहते हैं बेड़ियों में
कभी परिवार का वास्ता
तो कभी समाज का भय दिखा
और कभी धर्म की रूढ़ियों में बांध
वे तुम्हें सदा जीवन में मात देते जा रहे हैं
तुम ऐसे नादान हो कि
उनके बुने जाल में फंसते
छटपटा रहे हो अनवरत ही
यह मकड़जाल न जीने देगा तुम्हें पलभर
तोड़कर इन खोखले
बंधनों की जंजीरों को तुम
अपना मानस तैयार कर लो
एक नयी सुबह अब आने को मचल रही है
बाहें पसार करके
उसके स्वागत की करो
तैयारियाँ बहुत जोश व होश से
न बहका सके कोई तुम्हारे मानस को अब।
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