माँ अपने बच्चों के लिए बहुत ही पोसेसिव होती है। उनके सुख-दुख उसके अपने होते हैं। वह अपने बच्चों को गर्म हवा तक नहीं लगने देना चाहती।
परन्तु जब यही माँ एक सास बनती है तो वह इतनी असहिष्णु क्यों बन जाती है? उसका प्यार, उसकी ममता कहाँ गायब हो जाते हैं? न जाने उसे किस बात का डर सताने लगता है?
ये कुछ प्रश्न हैं जो सबके लिए पहेली बने रहते हैं और सुलझ नहीं पाते। चलिए आज हम इसी विषय पर चर्चा करते हैं।
माँ का अपनी संतान से जो रिश्ता होता है वह उसकी मृत्यु के पश्चात भी नहीं टूटता। यह सत्य है कि बच्चा यदि बूढ़ा भी हो जाता है तो कष्ट के समय माँ को ही याद करता है। यदि बच्चे को संस्कारी बनाया हो तो फिर किस बात का डर?
हमारे पारिवारिक ढ़ाँचे में हर बेटी को विवाह के उपरान्त अपने माता-पिता का घर छोड़कर अपने पति के घर ससुराल जाना होता है।
माँ बहुत चाव से बेटे का विवाह करती है। अपनी मनपसंद दुल्हन अपने घर लेकर आती है। उसे चाहिए कि अपने सपनों को साकार करने के लिए वह घर आई लक्ष्मी का खुले दिल से स्वागत करे। उसे पराया न समझते हुए वही मान-सम्मान दे जो वह अपनी बेटी को देती है।
हर घर के तौर-तरीके, खान-पान, व्यवहार आदि में अन्तर होता है। बहु की किसी भी कमी पर उसे या उसके मायके वालों को कोसने के स्थान पर उसकी गलती को नजरअंदाज कर देना समझदारी होती है। उसे प्यार से समझाइए वह समझ जाएगी।
बेटे और बहु को शादी के बाद से ही पराया न करें। पत्नी उसकी जिम्मेदारी है। यदि उसकी सुने तो उसे जोरु का गुलाम कहकर न धिक्कारें। छींटाकशी से रिश्तों में खटास आती है।
अपनी बेटी और बहु के लिए एक जैसा व्यवहार करना चाहिए। बहु को अपनी बेटी मानकर ऊँच-नीच हो जाने पर उसे नजर अंदाज कर दें। जहाँ तक हो सके दूसरों के सामने बहु की प्रशंसा कीजिए बुराई कदापि नहीं।
लड़की सपने लेकर ससुराल आती है उन्हें बड़ों को विश्वास में लेकर पूरा करना चाहिए। सच्चे मन से सास-ससुर को माता-पिता और देवर-ननदों को भाई-बहन मानना चाहिए। बहु को यही प्रयास करना चाहिए कि रिश्तों की मर्यादा रखते हुए बड़ों को कभी पलटकर जवाब न दे ताकि संबंधों में कटुता न आए। उस समय यदि वह चुप्प लगा ले होने वाले बहुत से झगड़ों से बच सकती है।
गलती हो जाने पर दोनों को ही बिना किसी पूर्वाग्रह के अपना अहम छोड़कर क्षमा याचना कर लेनी चाहिए इससे उनके रिश्ते मजबूत बने रहते हैं।
माता-पिता बेटी की खुशी चाहते हैं। बेटी को चाहिए कि वह हर छोटी-बड़ी बात माता-पिता को न बताए और वे अपनी बेटी को ससुराल में सामंजस्य रखने की सलाह दें व बेटी के घर में दखल न दें।
सास और बहु के संबंधों में कड़वाहट न हो इसके लिए दोनों को सावधान रहना चाहिए।अन्यथा घर का सुख-चैन अंगूठा दिखाने लगता है।
बहु को ताने देना या दहेज के लिए प्रताड़ित नहीं करना चाहिए। बहु का भी कर्तव्य है कि छोटी-सी बात को तूल देकर घर न छोड़े। अनावश्यक रूप से पुलिस व कोर्ट जाने की धमकी न दे।
खटपट के लिए सास और बहु दोनों ही दोषी होते हैं। यदि दोनों ही थोड़ी-सी समझदारी से काम लें तो घर सुखी व खुशहाल हो जाता है।
शनिवार, 9 मई 2015
माँ सास के रूप में
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