शनिवार, 16 मई 2015

अपनों का बिछुड़ना

हमारे अपने जो इस दुनिया के मेले में हाथ छूट जाने के कारण बिछुड़ जाते हैं वे दुबारा हमें नहीं मिलते। हम चाहे लाख सिर पटक लें या उन्हें दुनिया जहान में उन्हें क्यों न ढूँढ लें सब व्यर्थ हो जाता है। चाहे उनकी गुमशुदगी की हम कितनी ही रिपोर्ट लिखवा दें या सीआईडी या किसी जासूसी संस्था को पीछे लगा दें पर कोई भी उन्हें ढूँढकर हमारे सुपुर्द नहीं कर सकता है क्योंकि उनको ढूँढना पुलिस, सीआईडी या किसी जासूस के बस की बात नहीं। हम भी ऐसे हैं कि उनको वापिस नहीं ला सकते। दिन-रात उनके वियोग में रोते-बिसूरते रहते हैं बस पर हल नहीं खोज पाते।
          उनका और हमारा साथ इसलिए छूट जाता है कि उनके साथ हमारा संबंध इतना ही होता है। हमारा साथ कितना होना चाहिए यह हमारे कर्म सुनिश्चित करते हैं। यह असार संसार मात्र मंडी की तरह है। जैसे मंडी से हम अपनी आवश्यकता के अनुरूप पदार्थ पा लेते हैं। उसी प्रकार इस मंडी में हमारे कर्म हमें रिश्तों की सौगात देते हैं।
         कर्म प्रधान इस व्यापारिक मंडी में केवल वही रिश्ते हमें मिलते हैं जिनके साथ पूर्वजन्मों में हमारे लेनदेन के संबंध होते हैं। वे हमारे दादा, दादी, नाना, नानी, माता, पिता, चाचा, चाची, ताऊ, पति, पत्नी, भाई, बहन, मित्र, पड़ौसी या कोई भी किसी भी रूप में हो सकते हैं। जिन संबंधों से हमने लेना या देना होता है वे हमारे पास किसी-न-किसी संबंध के नाम से हमें मिल जाते हैं।
        यह लेनदेन बीमारी के नाम पर खर्च, धन-संपत्ति देना,  शारीरिक विकलांगता के कारण सारी आयु सेवा करना, घर-परिवार की जिम्मेदारियाँ निभाना आदि किसी भी रूप में एक-दूसरे के साथ जुड़ने का कारण बनता है। इस सबके लिए हम स्वतन्त्र नहीं हैं। ये सब हमारे कर्मभोग कहलाते है।
       अपने आसपास हम देखते हैं जिन घरों में संतान नहीं होती वे ऐसे बच्चे को गोद ले लेते हैं जिसके साथ हमारा कोई खून का संबंध नहीं होता, न ही हम उन मातापिता को जानते हैं और न ही वे हमारे करीब रहते हैं। वे बच्चे उस परिवार में इसीलिए अपने आप ही आ जाते हैं। इसका कारण है पूर्वजन्म के संबंध का लेनदेन का हिसाब चुकता करना होता है।
          इसी प्रकार जीवन के हर क्षेत्र स्कूल कालेज, दफ्तर, पड़ौसी, सहयात्री आदि  अपने-अपने लेनदेन के अनुसार मात्र उतने समय के लिए मिलते और फिर अपने रास्ते चले जाते हैं।
        कभी-कभार चलते-फिरते अनजाने में किसी की ठोकर या धक्का लग जाता है जो यदा-कदा कष्टदायी बन जाता है। इसके विपरीत कोई अनजाना व्यक्ति सहायता कर देता है। इसी प्रकार हम किसी अतिथि का सत्कार भी करते हैं जिसे हम जानते तक नहीं।
       ऐसे भी उदाहरण मिलते हैं जहाँ किसी अनजान व्यक्ति ने की सहायता और कोई बच्चा पढ़कर ऊँचे पद पर आसीन हो गया। इसके विपरीत भी बहुत से उदाहरण मिल जाते हैं जहाँ बच्चों का बचपन छीन कर उन्हें दाने-दाने का मोहताज बना दिया गया। कुछ सड़कों पर बलात भीख माँगने, चोरी करने, जेब काटने आदि दुष्कर्मों को करने के लिए मजबूर किए जाते हैं।
         जो लोग हमें छोड़कर चले गए उनके लिए ईश्वर से प्रार्थना कर सकते हैं। परन्तु जो हमारे साथ हैं उनकी कद्र करें। पता नही इस जीवन में हमारे प्रारब्ध से कौन हमारा साथ कब छोड़ जाए। ईश्वर की ओर से जिसकी घंटी बज जाती है उसे इस संसार से और अपने प्रियजनों से विदा लेनी ही होती है। इसलिए जीवन का एक-एक खूबसूरत पल अपनों के साथ गिला-शिकवा भूलकर सौहार्द से व्यतीत करना चाहिए।

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