ईश्वर की आराधना या जाप करने के लिए हम एक सौ आठ मनकों की माला अपने हाथ से फेरते हैं। जाप करने के लिए माला रूद्राक्ष, तुलसी, स्फटिक या ऊन से बनी हुई कोई भी हो सकती है।
कुछ लोगों का मानना है कि ईश्वर हमें गिनकर नेमते नहीं देता तो उसका नाम हमें गिनकर नहीँ लेना चाहिए। मैं भी मानती हूँ कि गिनकर जाप नहीं करना चाहिए। आप उठते-बैठते, सोते-जागते, चलते-फिरते हुए दिन-रात मालिक का स्मरण कीजिए। पर नियम का पालन भी आवश्यक है।
प्रत्येक ज्योतिर्विद अथवा तान्त्रिक जब भी किसी कष्ट को दूर करने का उपाय बताते हैं तो एक माला से लेकर सवा लाख माला तक का जाप प्रायः बताते हैं। इसके अपवाद स्वरूप कभी-कभी इससे अधिक भी बता देते हैं।
भारतीय विद्वानों का मानना है कि जाप करते समय जपसरिणी का उल्लंघन नहीं करना चाहिए। माला में एक मनका जो गाँठ लगा हुआ होता है उसके ऊपर एक फुम्मन सा बना होता है उसे जप सरिणी कहते हैं। इसका यह अर्थ होता है कि यह 108वाँ मनका है। वहीं से माला को घुमा दिया जाता है और वह आखिरी मनका नम्बर एक हो जाता है।
अपने विचार मैं आप सुधीजनों के समक्ष रखते हुए इतना ही कहना चाहती हूँ कि हम सांसारिक लोग हैं। दिनभर हम दुनिया के पचासों पचड़ों में फंसे रहते हैं। अत: उनका प्रभाव हमारे मन एवं मस्तिष्क पर पड़ता है। ईश्वर का स्मरण करते समय भी वे हमें परेशान करते हैं। इस दुनिया में जिसने हमें भेजा है उस मालिक का नित्य ही स्मरण करना हमारा दायित्व है।
कबीरदास ने कहा था-
माला फेरत जुग भया फिरा न मन का फेर।
कर का मनका डारि के मन का मनका फेर।
इस दोहे के माध्यम से वे कह रहे हैं कि वर्षों माला फेरते रहे पर मन हेराफेरी करता रहता है।
इसलिए हाथ के पकड़े मनके को छोड़कर हमारे अंतस में निरन्तर चलने वाली माला को फेरो। अर्थात अपने श्वासों की माला पर ध्यान लगाकर मन को साधकर प्रभु का ध्यान करना चाहिए।
यदि हम बिना माला के एक घंटे के लिए जाप करने की सोचेंगे तो मेरा मानना है यह संभव नहीं हो पाएगा। अभी हम इतने बड़े तपस्वी नहीं हैं कि एक घंटे के समय के जाप करने के नियम का पालन कर सकें। हर थोड़ी बाद घड़ी देखने से मन नहीं रमेगा। यदि एक घंटे का हम अलार्म लगाएँगे तो ध्यान इसी में रहेगा कि शायद अभी घंटा नहीं हुआ, अलार्म नहीं बोल रहा आदि। इसके अतिरिक्त जाप कहीं और छूट जाएगा और हम सपनों में कहीं खो जाएँगे या दुनिया के व्यवहारों में भटक जाएँगे। इसलिए माला से जाप करने के उपरान्त जितना चाहे और भी जाप कर सकते हैं इस प्रकार बिना गिनती का जाप करना भी संभव हो सकेगा
इसलिए मन लगे या न लगे अपना नियम अवश्य निभाना चाहिए। मन को साधने में तो बड़े- बड़े ऋषि-मुनियों को भी बरसों लग जाते हैं। हम लोग साधारण मनुष्य हैं। नियमपूर्वक जो भी कार्य किया जाता है धीरे- धीरे उसमें मन रमने लगता है। उसी की कड़ी है माला से जाप करना। यदि हाथ में माला होती है तो भटकते हुए मन को मोड़ना सरल हो जाता है।
सभी लोग अपनी सुविधा एवं निमय के अनुसार ईश्वर की आराधना करने में स्वतन्त्र हैं। किसी पर भी किसी को कोई जोर-जबरदस्ती नहीं करनी चाहिए। मेरे मन में कुछ विचार आए थे इसलिए उन्हें आपके साथ साझा किया है।
बुधवार, 27 मई 2015
माला
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें