भारत में जड़ कर गई कुरीतियों में बाल विवाह एक ज्वलंत समस्या है।इक्कीसवीं सदी में जहाँ विश्व सफलता की बुलंदियों को छू रहा है हम इन सामाजिक कुरीतियों पर चर्चा कर रहे हैं। बड़े दुख की बात है कि टीवी व इन्टरनेट के जमाने में भी न जाने कितने मासूम इन ढकोसलों की बलि पर चढ़ जाते हैं।
वैदिक काल में भी बाल विवाह जैसी रूढ़ियाँ नहीं थी। तब पुरुष की विवाह की आयु 25 वर्ष निश्चित थी।
भारतीय कानून के अनुसार, विवाह योग्य आयु पुरुषों के लिए 21 वर्ष एवं महिलाओं के लिए 18 वर्ष है। यदि कोई इससे कम आयु में यदि किसी का विवाह होता है तो वह विवाह को निरस्त घोषित कर सकता है।
जिस उम्र में बच्चे गुड्डे-गुड़ियों से खेलते हैं इन्हें शादी के मंडप में बिठा दिया जाता है। पढ़ने-लिखने की सुविधा से ये वंचित रह जाते हैं। इसका परिणाम सारी जिन्दगी इन लोगों को भुगतना पड़ता है। अशिक्षित हो जाने के कारण अच्छी नौकरी नहीं मिल पाती। जीवन की मुँह बाये खड़ी समस्याओं से जूझना बहुत कठिन हो जाता है। उन्हें पग-पग पर कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। साथ ही कच्ची उम्र में विवाह का उपहार इन्हें बीमारियों के रूप में मिलता है। कम उम्र में सेक्स की शुरुआत एवं गर्भधारण से जुड़ी स्वास्थ समस्याएँ अक्सर होने की सम्भावना होती है। इस आयु में मातृत्व एवं शिशु मृत्यु की दरें अधिकतम होती है।
कम उम्र की लड़कियाँ परिपक्व नहीं होतीं। अक्सर घरेलू हिंसा, सेक्स सम्बन्धी ज़्यादतियों एवं सामाजिक बहिष्कार का शिकार होती हैं।
विभिन्न राज्यों में अठारह वर्ष से कम आयु में विवाहित हो रही लड़कियों का प्रतिशत खतरनाक है- मध्य प्रदेश में 73 %, उत्तर प्रदेश में 64%, राजस्थान में 68%, आन्ध्र प्रदेश में 71%, बिहार में 67%।
यूनीसेफ की “विश्व के बच्चों की स्थिति- 2009” रिपोर्ट के अनुसार भारत की 47 प्रतिशत महिलाएँ कानूनी रूप से मान्य आयु सीमा– 18 वर्ष से कम आयु में ब्याही गईं, जिसमें 56 प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों से थीं।
यूनीसेफ के अनुसार (‘विश्व के बच्चों की स्थिति-2009’) विश्व के बाल विवाहों में से 40 प्रतिशत भारत में होते हैं।
वास्तव में इस प्रथा का प्रचलन मुगल काल में हुआ। माना उस समय लड़कियों की सुरक्षा हेतु इसका प्रचलन हुआ होगा।
आज हमारा देश स्वतंत्र है। अब इस समय हम इन समस्याओं से सरलता से मुक्त हो सकते हैं फिर इन्हें सीने से लगाए रखने की कोई आवश्यकयता महसूस नहीं होती।
बाल विवाह उन्मूलन हेतु सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं की पहल पर इसके विरुद्ध कानून बनाया है। इसी कड़ी में राज्यों ने भी इसके कानून पारित किए हैं। लड़कियों की शिक्षा को सुगम बनाना चाहिए। हानिकारक सामाजिक नियमों को बदलना चाहिए। सामुदायिक कार्यक्रमों को सहायता देनी चाहिए। युवा महिलाओं को आर्थिक अवसर प्रदान करने चाहिएँ।
प्रत्येक विवाह को वैध मानने के लिए सरकार ने उसका पंजीकरण आवश्यक कर दिया है।
बच्चों के खुशहाल व स्वस्थ जीवन की कामना करते हुए मैं आप सभी सुधी जनों से अनुरोध करती हूँ कि कुरीति को जड़ से उखाड़ने में सहायता करें। हालांकि हमारे समाज सुधारक सैंकड़ों वर्षों से इन कुरीतियों की मुक्ति के लिए प्रयास करते रहे। सरकार से भी कड़े कानून बनाने की अपील करती हूँ जिससे बाल विवाह की कुप्रथा पर लगाम कसी जा सके।
सोमवार, 4 मई 2015
बाल विवाह
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