कल रात पड़ौस में अचानक शोर-शराबा होने लगा। हर कोई इसका कारण जानने के लिए उत्सुक हो रहा था। पर क्या करें, आजकल समय ही ऐसा आ गया है कि कोई किसी के फटे में टाँग नहीं अड़ाता। किसी के दुख-सुख में शरीक होने के लिए न्यौता चाहिए। ऐसे में पड़ौसी धर्म निभाना तो मानो पुराने जमाने की बात हो गई।
बड़ी हिम्मत जुटाकर मैं वहाँ पहुँची तो देखती हूँ पूरा अस्त-व्यस्त हुआ पड़ा है। आज जब सारा परिवार बाहर किसी पार्टी में गया हुआ था तब उनके घर चोरी हो गई थी। घर में रखा हुआ कई लाख नगद व लाखों के आभूषण और साथ ही बहुत-सा कीमती सामान चोर लूटकर ले गए थे।
समस्या यह थी कि चोरी किए गए सामान की लिस्ट में क्या लिखें? सारा सामान तो हेराफेरी से कमाए हुए पैसे से खरीदा गया था। हमारा पड़ौसी नौकरी करता था और उसने अपनी आमदनी से कहीं अधिक धन-दौलत इकट्ठी की हुई थी।
उन्हें डर था कि यदि छानबीन हो गई तो लेने के देने पड़ जाएँगे। चोर तो लूटकर ले गए हैं पर सरकार की तरफ से जो तहकीकात होगी सो अलग। उस पर सजा मिलने का खतरा भी मँडरा रहा था। अब प्रश्न था कि पुलिस को बुलाएँ भी तो कैसे?
सहानुभूति प्रदर्शित करके मैं घर तो आ गई पर सोचती रही कि कैसी मजबूरी है पड़ोसियों की जो अपनी शिकायत भी थाने में दर्ज नहीं करवा सकते।
चन्द्र प्रभा सूद
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शुक्रवार, 22 जुलाई 2016
शिकायत दर्ज नहीं
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