गुरुवार, 28 जुलाई 2016

सृष्टि में लोगों की श्रेणियाँ

परमपिता परमात्मा की इस सुन्दर सृष्टि में विभिन्न प्रकार के लोग हैं। ईश्वर के प्रति उनके कैसे भाव हैं, इसे आधार बनाकर यदि उनका वर्गीकरण किया जाए तो उन लोगों को हम तीन श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं। यानि इस संसार में तीन तरह के लोग होते हैं।
         प्रथम श्रेणी में वे लोग आते हैं जो परमपिता परमात्मा के प्रति अपने मन में अतिशय अनुराग रखते है। ऐसे मनुष्य ईशचर्चा के अतिरिक्त कभी कोई अन्य बात करना ही नहीं चाहते। सोते-जागते, उठते-बैठते वे प्रभु भक्ति में ही लीन रहना चाहते हैं। ऐसे लोगों को हम ईश्वर का सच्चे भक्त कहते हैं।
         उन्हें लगता है कि यह  जीवन उस मालिक की अमानत है। इसलिए निस्वार्थ भाव से उसका ध्यान और स्मरण करना ही अपने जीवन का एकमात्र उद्देश्य है। ऐसा विचार करते हुए वे लोग सदा अपनी सच्ची साधना बिना ही किसी दिखावे के करते रहते हैं।
          दुनिया के लोग उनके विषय में कुछ भी कहते रहेँ वे अपनी धुन के पक्के होते हैं और अपने चुने हुए मार्ग पर बिना पीछे मुड़कर देखे आगे बढ़ते रहते हैं। ऐसे ही लग्नशील लोग अन्ततः प्रभु की शरण में जाते हैं और इस संसार के चौरासी लाख योनियों के बन्धन से मुक्त हो जाते हैं। यही उत्तम कोटि के प्रभु भक्त कहलाते हैं।
         दूसरी श्रेणी में वे लोग आते हैं जो सदा ही सांसारिक क्रियाकलापों में संलग्न रहते हैं। उनका मन संसार में रमता है। वे सदा ही भौतिक वस्तुओं के पीछे भागते रहते हैं। वे ईश्वर नाम की किसी सत्ता को नहीं मानते। कभी उसकी सत्ता को चुनौती देने से परहेज नहीं करते। स्वयं को भगवन कहलाने में वे आनन्दित होते हैं।
        जो लोग उस मालिक के परमभक्त हैं, वे उनका उपहास करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। वे उनके लिए अपशब्दों का प्रयोग करते हैं। जब उन पर अत्यधिक कष्ट आते हैं तब मजबूरी में उसकी शरण में जाते हैं। फिर उस मालिक को कोसने और गाली-गलौच करने से भी बाज नहीं आते। ये लोग अधम कोटि के कहलाते हैं।
       तीसरी श्रेणी में वे लोग आते है जो प्रभुचर्चा करते अवश्य हैं परन्तु उनकी वृत्ति उसमें नहीं लगाती। फिर भी वे चाहते हैं कि सभी लोग उनको भक्त मानें, उनकी सराहना करें और भक्त होने का मान दें। इसलिए वे दान का प्रदर्शन करते हैं और प्रभुभक्ति का ढोंग करते हैं।
          इसके साथ-साथ कालाबाजारी, हेराफेरी करना, भ्रष्टाचार में लिप्त होना, किसी का गला काटना आदि दुष्कार्य करने में भी परहेज नहीं करते। इस तरह उनकी भक्ति का दिखावा और दुर्व्यसनों में वृत्ति एकसाथ चलते रहते हैं। उनकी सफेदपोशी बनी रहे इसके लिए अनेकानेक तिकड़में भिड़ाते रहते हैं।
        ये मध्यम कोटि के लोग सदा ही दो नावों पर सवार होना चाहते हैं। पर भूल जाते हैं कि दुनिया का दस्तूर यही है कि दो नावों पर सवार होने वाले कभी तरते नहीं, डूब जाते हैं।
        उत्थान और पतन एक सहज गति है। ईश्वरोन्मुख व्यक्ति सदा आध्यात्मिक उन्नति करते हैं और उससे विमुख रहने वाले पतन या अधोगति की ओर जाते हैं।
अवचेतन की पाशविक प्रवृत्तियाँ मनुष्य को पुनः पुनः अपने जाल में फंसाती रहती हैं। वे उसे विषय-भोगों की और प्रवृत्त करती हैं।
        अब यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि वह किस और जाना चाहता है। अपनी मानवीय कमजोरियों पर अंकुश लगाकर जन्म-जन्मान्तरों के बन्धनों से मुक्त होकर वह सद् गति प्राप्त करना चाहता है अथवा विषय भोगों में डूबकर चौरासी लाख योनियों में भटकता हुआ जन्म-मरण के बन्धन में बँधे रहना चाहता है।
चन्द्र प्रभा सूद
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