पति और पत्नी का रिश्ता जन्म-जन्मान्तर यानि सात जन्मों का होता है, ऐसा हमारी भारतीय संस्कृति मानती है। इसीलिए कहते हैं कि जोड़ियाँ ऊपर से बनकर आती हैं। इस रिश्ते को सही तरीके से निभाना पति और पत्नी दोनों का ही दायित्व होता है। इसमें चूक होने की गुँजाइश कदापि मान्य नहीं होती।
स्कूल में पढ़ते समय अंग्रेजी भाषा की एक कहानी पढ़ी थी। उसमें जिम और डैला दोनों पति-पत्नी थे। वे सुविधा सम्पन्न नहीं थे। वे अभावग्रस्त जीवन व्यतीत कर रहे थे। जिम के पास सुन्दर-सी सोने की एक घड़ी थी पर उसकी चेन सोने की नहीं थी। डैला चाहती थी कि जिम की घड़ी में सोने की चेन हो। डैला के बाल बहुत सुन्दर थे जिनके लिए जिम एक सोने का क्लिप खरीदना चाहता था। दोनों ही अपनी आर्थिक स्थिति के कारण बहुत मजबूर थे। चाहकर भी सोने की चेन अथवा सोने का क्लिप खरीदना उनके बूते से बाहर था।
समय बीतते जिम का जन्मदिन आया। उस दिन डैला ने जिम की घड़ी के लिए सोने की चेन उपहार स्वरूप खरीदने की सोची। परन्तु पैसे तो उसके पास नहीं थे। वह पार्लर गई और उसने अपने सुन्दर बाल बेच दिए। उन पैसों से उसने घड़ी के लिए सोने की चेन खरीदी। उधर जिम ने अपनी पत्नी को रिटर्न गिफ्ट देने के लिए अपनी घड़ी बेच दी और उसके लिए सोने का क्लिप खरीद लिया।
शाम के समय उन्होंने एक-दूसरे को सोने की चेन और क्लिप भेंट किए। अपनी-अपनी पूँजी को गँवाकर भी वे एकदम-दूसरे के प्रति समर्पण भाव से विभोर हो उठे।
ऐसा समर्पण भाव पति-पत्नी के मध्य होना आवश्यक होता है। उन दोनों में आपसी प्रेम और विश्वास होना आवश्यक है। इसके बिना आपस में सामञ्जस्य नहीं स्थापित किया जा सकता। उन दोनों को दो जिस्म और एक जान की तरह जीवन व्यतीत करना चाहिए। तभी उनके जीवन में खुशियाँ बरकरार रह सकती हैं।
दोनों के सुख-दुख भी साझे होने चाहिए। उन दोनों के मध्य किसी स्थिति में तीसरे की गुँजाइश नहीं होनी चाहिए। आपसी विश्वास गृहस्थ जीवन की पहली सीढ़ी है। दोनों को सहनशीलता अपनानी चाहिए। यदि दोनों में से कोई एक अपने साथी से विश्वासघात करता है तब रिश्ते दरकने लगते हैं। उसका अन्त अलगाव होता है। उनका अलग होना घर-परिवार को तोड़ देता है। मासूम बच्चे बिना किसी दोष के सबसे अधिक कष्ट भोगते हैं।
अपने-अपने पूर्वाग्रह त्याग करके उन्हें भावी जीवन के लिए योजनाएँ बनानी चाहिए। उन दोनों का व्यवहार परस्पर सहृदयतापूर्वक होना चाहिए। मन, वचन और कर्म से इस पावन रिश्ते को निभाना चाहिए। इससे आपसी मनमुटाव बिल्कुल नहीं होता। पति-पत्नी दोनों में प्रेम और विश्वास दिन-प्रतिदिन बढ़ता है।
इस प्रकार का व्यवहार जब उन दोनों के बीच होता है तब उनके मध्य की सभी दूरियाँ समाप्त हो जाती हैं और उनके हृदयों के तार जुड़ जाते हैं। जिसे हम दूसरे शब्दों में टेलीपेथी कह सकते हैं। यही टेलीपेथी उनके जीवनों के जुड़ाव का प्रमाण होती है। उन्हें इसे सिद्ध करने के लिए किसी शपथ को खाने की आवश्यकता नहीं होती।
पति-पत्नी में ऐसी प्रगाढ़ता सफल दाम्पत्य जीवन का मूल मन्त्र होती है। ऐसा घर सबके लिए एक उदाहरण बन जाता है। वहीं स्वर्ग जैसी सुख-शान्ति होती है। धन-वैभव की यदि कभी कमी भी हो तो उनके व्यहार में कोई परिवर्तन नहीं आता। वे एकजुट होकर संकटों से दो-दो हाथ करने के लिए तैयार रहते हैं।
हर माता-पिता को अपने बच्चों में ऐसे संस्कार बचपन से ही देने चाहिए कि कैसी भी परिस्थिति हो वे अपने जीवन साथी के साथ, सारा जीवन एक-दूसरे की कमियों को अनदेखा करते हुए, राजी-खुशी व्यतीत करके सबके समक्ष उदाहरण प्रस्तुत करें। इसी में सबका सुख-चैन निहित है।
चन्द्र प्रभा सूद
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बुधवार, 13 अप्रैल 2016
जन्म-जन्मांतर का रिश्ता
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